कविता : आज का रावण
कलियुग है कलियुग
आज का रावण
एक नहीं हर जगह
दिखाई देने लगे
खूनी खेल, बलात्कार,
पाखंड, दबाव डालना
आदि क्रियाएं
प्राचीन रावण को भी पीछे
छोड़ती दिखाई देने लगी
आकाशवाणी मौन
सब बने हों जैसे धृतराष्ट्र
जवाब नहीं पता किसी को
जैसे इंसान को सांप सूंघ गया
आवाज उठाने की
हिम्मत हो गई हो परास्त
शर्मो हया रास्ता भूल गई
पहले के रावण का अंत
नाभि में एक बाण मार कर किया
आज के रावणों का अंत
कानून के तरकश में न्याय के तीर ने
कर डाला
जो उनको मानते/चाहते अब वो ही
उनसे मुंह छुपाने लगे
कतारें लगी जेलों में
उनकी अशोभनीय हरकतों से
आज के रावणों ने
आस्था के साथ खिलवाड़ करके
मासूमों का हरण करके
कई चीखों को दफन कर दिया
आज के इन रावणों ने
पूरी दुनिया इनकी हरकतों को
देख थू थू कर रही
आवाज उठाने वालों और न्याय ने मिलकर
किया शंखनाद
उखाड़ दी इनकी जड़
गर्व है हिंदुस्तान के न्याय पर हमें
और खुशी आज के रावणों के अंत की
मगर चिंता अब न हो कोई
आज के रावण जैसा पैदा
हिंदुस्तान धरा पर