•नवनीत कुमार गुप्ता
पृथ्वी की संरचना, सूर्य से उसकी दूरी और अन्य भौतिक दशाओं के कारण यहां जीवन का अस्तित्व है। हवा, पानी, मिट्टी और विविध वनस्पतियां प्रकृति के ऐसे उपहार हैं, जिनकी वजह से धरती पर जीवन संभव हुआ है। पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूप इसे एक अनूठा ग्रह बनाते हैं।
इस ग्रह और उसके अनूठे वातावरण का हमें सम्मान करना चाहिए, जिसके कारण यहां जीवन विकसित हुआ है। हर वर्ष 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस हमें पृथ्वी के वातावरण को सुरक्षित बनाए रखने का संदेश देता है। इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र की पहल पर की गई थी। विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया भर में पर्यावरण और उसके विभिन्न घटकों के संरक्षण से जुड़ा सबसे बड़ा अभियान है।
इस बार भारत 44वें विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी कर रहा है, जिसका केंद्रीय विषय ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ यानी ‘प्लास्टिक प्रदूषण को मात’ रखा गया है। दुनिया भर में इसी केंद्रीय विषय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन का उद्देश्य पर्यावरण की महत्ता एवं उसके संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक बनाना है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग उपयोग होते हैं, जो सभी प्रकार के अपशिष्टों का 10 प्रतिशत है। हमारे देश में प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है, जिसकी मात्रा निरंतर बढ़ती जा रही है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक हो गया है कि इस प्लास्टिक से पृथ्वी को पांच बार लपेटा जा सकता है।
समुद्र में करीब 80 लाख टन प्लास्टिक बहा दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि प्रति मिनट एक ट्रक कचरा समुद्र में डाला जा रहा है। यह स्थिति पृथ्वी के वातावरण के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है क्योंकि प्लास्टिक को अपघटित होने में 450 से 1000 वर्ष लग जाते हैं।
प्लास्टिक पदार्थों को जलाना भी बहुत हानिकारक है क्योंकि इसके कारण कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और डाइऑक्सिन जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है। सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि एक किलो प्लास्टिक कचरा जलाने पर तीन किलो कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा कारण है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्लास्टिक के पुनर्चक्रण से समस्या पर लगाम लगाने में मदद मिल सकती है। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा प्लास्टिक कचरे के निपटारे के लिए विकसित की गई प्रौद्योगिकी इसका एक उदाहरण कही जा सकती है। इस प्रौद्योगिकी के उपयोग से प्लास्टिक से सस्ती और टिकाऊ टाइलें बनायी गई हैं, जिनका उपयोग सस्ते शौचालय बनाने में किया जा सकता है। इस परियोजना को ''स्मार्ट टॉयलेट्स मेड ऑफ वेस्ट प्लास्टिक बैग्स'' का नाम दिया गया है। व्यर्थ प्लास्टिक बैग और बोतलों से टाइल बनाने की पूरी सुविधा इस प्रयोगशाला में है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रतिवर्ष करीब 9,205 टन प्लास्टिक कचरा एकत्र करके रिसाइकिल यानी पुनर्चक्रित किया जाता है। यह कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग 60 प्रतिशत है। जबकि, करीब 6,137 टन प्लास्टिक कचरे का एकत्रीकरण ही नहीं हो पाता है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी हरित और पर्यावरण हितैषी प्रौद्योगिकीयों का विकास है, जो प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को कम करने में मददगार साबित हो रही हैं। आईआईटी, हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक अपशिष्टों के पुनर्चक्रण के लिए संतरे के छिलकों की मदद से एक प्रभावी प्रौद्योगिकी का विकास किया है। इसी प्रकार वैज्ञानिकों के एक समूह ने प्लास्टिक से थर्माकोल जैसा एक ऐसा पदार्थ बनाया है, जो पानी से तेल को सोख सकता है। इस विधि से तेल के फैलाव जैसी समस्या का समाधान किया जा सकेगा।
चेन्नई स्थित केन्द्रीय प्लास्टिक्स इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (सिपेट) ने प्लास्टिक्स वेस्ट रिसाइक्लिंग सेवाओं के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों से निकलने वाले अपशिष्टों के पुनर्चक्रण के लिए पर्यावरण हितैषी प्रौद्योगिकी का विकास किया है। इस प्रौद्योगिकी के द्वारा विषैली गैंसों के उत्सर्जन के बिना प्लास्टिक अपशिष्टों को संसाधित किया जाता है।
गुजरात के भावनगर में स्थित केन्द्रीय नमक एवं समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को भी पोलिमर्स से रिवर्स ओसमिस तकनीक की मदद से मेम्ब्रेन तत्वों की जीवन-अवधि बढ़ाने में सफलता मिली है। इससे नए मेम्ब्रेन उत्पादन में कमी आएगी, जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी हो सकेगी। कम मेम्ब्रेन उत्पादन से बाद में अपशिष्ट में भी कमी आएगी। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल सकेगी।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर देशभर में सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं में पर्यावरण से जुड़े विभिन्न विषयों पर सम्मेलन, कार्यशाला, प्रदर्शनी तथा संगोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। हालांकि, इन सभा-संगोष्ठियों का लाभ तभी है, जब हम यह ठान लें कि औद्योगिक इकाइयों के साथ-साथ हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी प्लास्टिक से दूरी बनाने की जरूरत है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करना दीर्घकालिक समाधान हो सकता है। इससे काफी हद तक प्लास्टिक की समस्या के निपट सकते हैं। हालांकि, सबसे अच्छी पहल यही होगी की हम प्लास्टिक के उत्पादों से तौबा कर लें और उन्हें जीवनचर्या से दूर कर दें। ऐसा करके ही हम आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ पर्यावरण छोड़ पाएंगे।
(इंडिया साइंस वायर)