महत्वाकांक्षी अभियान पर निकला भारत का पहला चंद्रयान-प्रथम शनिवार को जटिल प्रक्रिया से गुजरकर सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। चंद्रयान के धरती से रवाना होने के 18 दिन बाद इसे चंद्रमा की कक्षा में दाखिल कराया गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अंतरिक्षयान पर लगे द्रव ईंधनों में 817 सेकंड तक फायरिंग कर इसे चंद्रमा की कक्षा में भेजा।
इसरो प्रवक्ता एस. सतीश ने कहा चंद्रमा की कक्षा में स्थापना का कार्य शाम चार बजकर 50 मिनट पर शुरू हुआ और यह 817 सेकंड 14 मिनट चला। उन्होंने कहा उपग्रह को 7502 किलोमीटर गुणा 500 किलोमीटर की चंद्रमा की दीर्घवृत्तीय कक्षा में स्थापित किया गया है।
यह कार्य होने पर राहत की साँस लेते हुए इसरो अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने कहा आज अभियान का सबसे अहम क्षण था। अंतरिक्षयान को 22 अक्टूबर को प्रक्षेपित किया गया था और चार नवंबर को उसे चंद्रमा की ट्रांस्फर टैजेक्टरी (स्थानान्तरण कक्ष) में स्थापित किया गया था।
धरती से 38 लाख 6 हजार किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगा रहे अभियान को शहर के बाहरी इलाके पीनया स्थित इसरो के टेलीमेट्री ट्रैकिंग एवं कमान नेटवर्क से ब्यालालु स्थित भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद से नियंत्रित किया गया।
चंद्रयान को अब धीरे-धीरे नीचे उतारा जाएगा और चंद्रमा के सतह से 100 किलोमीटर की दूरी पर वृत्तीय कक्षा में स्थापित किया जाएगा। तीन सौ छियासी करोड़ रुपए के चंद्र अभियान में चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक यान का दाखिला महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसकी सफलता आज की सफल या विफल प्रक्रिया पर निर्भर थी।
अंतरिक्ष विशेषज्ञों के अनुसार चंद्रमा की कक्षा में स्थापना का चुनौतीपूर्ण कार्य खतरे से खाली नहीं था, क्योंकि ऐसे क्षेत्र से गुजरना था, जिसमें पृथ्वी और चंद्रमा का गुरुत्व बल एक-दूसरे को लगभग शून्य कर देते हैं।
इसका नतीजा यह होता कि थोड़ा भी विचलन होने पर अंतरिक्ष यान चंद्रमा या पृथ्वी या गहरे अंतरिक्ष की ओर जाने वाले किसी नए रास्ते पर चल देता।
विशेषज्ञों ने याद दिलाया कि अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ के करीब 30 प्रतिशत मानवरहित चंद्र अभियान चंद्रमा की कक्षा में दाखिले के वक्त नाकाम हो गए थे।