भारत के लिए जान न्यौछावर करने वाले अनेक योद्धा हुए हैं। कुछ को खूब मान-सम्मान मिला, लेकिन कुछ अंधेरों में गुम हो गए जबकि उनका योगदान किसी से कम नहीं था।
ऐसे ही एक नायाब योद्धा 17 वीं शताब्दी तान्हाजी मालुसरे नाम से हुए थे, जिन पर अजय देवगन ने फिल्म बनाई है। अजय ऐसे योद्धाओं पर फिल्म की सीरिज़ बनाने वाले हैं जिनके योगदान के बारे में बहुत कम लोगों को पता है।
तान्हाजी ने कोंढाणा किले को मुगलों के चंगुल से छुड़ाया था और औरंगजेब के दक्षिण भारत पर मुगल साम्राज्य के विस्तार की योजना को असफल कर दिया था।
औरंगजेब ने मराठों से कोंढाणा किला ले लिया था। वहां पर वह अपने बहादुर और ताकतवर योद्धा उदयभान राठौर को भेजता है ताकि दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य को फैलाया जाए।
औरंगजेब के खतरनाक इरादों को छत्रपति शिवाजी महाराज भांप जाते हैं। वे कोंढाणा को किसी भी कीमत पर वापस लेना चाहते हैं। जब तान्हाजी को यह बात पता चलती है तो वे यह जिम्मेदारी लेते हैं।
पूरी फिल्म इसी पर आधारित है कि किस तरह तान्हाजी ने यह लड़ाई लड़ी? कैसे योजना बनाई? और उदयभान का किस तरह मुकाबला किया?
थ्रीडी इफेक्ट्स और सीजीआई से इस लड़ाई का विज्युल इम्पैक्ट शानदार है, खासतौर पर आखिरी के बीस मिनट जबरदस्त है जब उदयभान और उसकी सेना पर तान्हाजी हमला करते हैं।
फिल्म को ओम राउत ने लिखा और निर्देशित किया है। उन्होंने कलाकारों से अच्छी एक्टिंग करवाई है। स्पीड तेज रखी है। तकनीशियनों से अच्छा काम लिया है। क्लाइमैक्स बेहतरीन तरीके से फिल्माया है, लेकिन तान्हाजी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाए। तान्हाजी को और जानने की इच्छा अधूरी ही रह जाती है।
यही हाल फिल्म के अन्य मुख्य किरदार उदयभान का है। उदयभान मुगलों की क्यों इतनी मदद करता है? क्यों उनका वफादार रहता है? इन प्रश्नों के जवाब नहीं मिलते। उदयभान के अतीत का एक छोटा-सा प्रसंग दिखाया गया है, लेकिन उससे संतुष्टि नहीं मिलती। तान्हाजी और उदयभान पर रिसर्च में कमी नजर आती है।
ओम राउत के निर्देशन पर संजय लीला भंसाली का गहरा असर रहा है। उनके प्रस्तुतितकरण में 'बाजीराव मस्तानी' और 'पद्मावत' की छाप दिखाई देती है।
उदयभान को उन्होंने खिलजी की तरह पेश किया है। थोड़ा सनकी किस्म का जो मगरमच्छ खा जाता है। भंसाली की तरह उन्होंने कलर स्कीम का प्रयोग किया है। जब उदयभान का सीन होता है तो कलर डार्क हो जाते हैं।
निर्देशक की अच्छी बात यह है कि उन्होंने बात को ज्यादा लंबा खींचा नहीं है और फिल्म को तेज गति से चलाया है। कुछ सीन स्पीड ब्रेकर का काम करते हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है। अजय देवगन और सैफ अली खान के एंट्री वाले सीन शानदार बनाए हैं जो फिल्म के रोमांच को बढ़ा देते हैं।
फिल्म का संगीत मूड के अनुरूप है, हालांकि एक-दो गीत कम किए जा सकते थे। 'शंकरा' अच्छा बन पड़ा है और उसकी कोरियोग्राफी बढ़िया है। तकनीशियनों का काम जबरदस्त है और फिल्म देखते समय आंखों को सुकून देती है। थ्री-डी इफैक्ट्स में मजा दोगुना हो जाता है।
तान्हाजी की भूमिका में अजय देवगन ठीक रहे हैं। उन्होंने इस रोल को विशेष बनाने के लिए कुछ किया नहीं है और साधारण तरीके से ही इसे निभाया है। कई बार यह भी महसूस होता है कि इस किरदार की डिमांड से उनकी उम्र ज्यादा है। एक्शन सीन उनके देखने लायक बने हैं।
काजोल के सीन कम हैं, लेकिन वे दमदार तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। अजय के साथ वाले दृश्यों में उनका अभिनय देखने लायक है।
निगेटिव रोल में सैफ अली खान अपना असर छोड़ते हैं। उदयभान को सनकीपन उनके अभिनय में झलकता है और उन्होंने इसे कैरीकेचर बनने से बचाया है।