बॉलीवुड की ज्यादातर फिल्मों में प्रेमियों को मिलाने की कोशिश की जाती है, लेकिन 'सोनू के टीटू की स्वीटी' में सोनू अपने भाई से भी बढ़ कर दोस्त टीटू की स्वीटी के साथ जोड़ी तोड़ने की कोशिश में लगा रहता है। सोनू को टीटू के लिए स्वीटी सही लड़की नहीं लगती है जिसके साथ टीटू की शादी होने वाली है। रोमांस बनाम ब्रोमांस का मुकाबला देखने को मिलता है।
सोनू (कार्तिक नारायण) और टीटू (सनी सिंह) बेहद अच्छे दोस्त हैं। टीटू का कई लड़कियों से ब्रेक-अप हो गया है और वह अरेंज मैरिज के लिए तैयार हो जाता है। स्वीटी (नुसरत भरूचा) से उसकी शादी तय हो जाती है। स्वीटी बहुत ही अच्छी लड़की है और इस वजह से सोनू को उस पर शक होने लगता है कि वह बनावटी है। वह स्वीटी को गलत साबित करने की तमाम कोशिश करता है, लेकिन हर बार मात खा जाता है। टीटू के परिवार के हर शख्स का दिल स्वीटी जीत लेती है।
जब वह यह स्वीकार कर लेता है कि स्वीटी अच्छी लड़की है तब स्वीटी खुद सोनू को बता देती है कि वह चालू लड़की है। वह सोनू को चैलेंज देती है कि अब रिश्ता तोड़ कर दिखाए। क्या स्वीटी सच कह रही है? क्या सोनू यह कर पाएगा? इसके जवाब फिल्म में मिलते हैं।
कहानी में कुछ बात खटकती है। यदि स्वीटी 'बदमाश' है और सोनू को उस पर शक है तो वह क्यों आगे रह कर उसे बताती है कि वह 'बदमाश' है। जबकि आधी फिल्म में वह यह जताने की कोशिश करती है कि एक अच्छी लड़की है। स्वीटी यदि अच्छी लड़की नहीं है तो यह दर्शाने के लिए कुछ भी नहीं बताया गया है कि आखिर वह क्यों अच्छी लड़की नहीं है। वह टीटू से शादी कर क्या पाना चाहती है? इसलिए स्वीटी से इतनी नफरत नहीं होती जितनी की कहानी की डिमांड थी।
कमियों के बावजूद यदि फिल्म अच्छी लगती है तो इसका श्रेय स्क्रीनप्ले और निर्देशक लव रंजन को जाता है। कई मजेदार सीन रखे गए हैं जो यदि कहानी से ज्यादा ताल्लुक नहीं भी रखते हैं तो भी इसलिए अच्छे लगते हैं कि उनसे मनोरंजन होता है।
सोनू, टीटू और स्वीटी के किरदारों के साथ-साथ आलोकनाथ, वीरेन्द्र सक्सेना सहित अन्य सीनियर सिटीजन्स के किरदारों पर भी मेहनत की गई है। ये किरदार समय-समय पर आकर फिल्म के गिरते ग्राफ को उठा लेते हैं। सोनू के साथ इनके सीन बढ़िया हैं। सोनू और स्वीटी के मुकाबले वाले दृश्य भी अच्छे लगते हैं।
निर्देशक के रूप में लव रंजन का काम अच्छा है। वे 'प्यार का पंचनामा' भाग एक और दो बना चुके हैं और उनकी युवा दर्शकों पर अच्छी पकड़ है। 'सोनू के टीटू की स्वीटी' में भी उन्होंने वही फ्लेवर बरकरार रखा है। उनके द्वारा रचा गया फैमिली ड्रामा सूरज बड़जात्या या करण जौहर की फिल्मों से बिलकुल अलग है और दादी, मां, पिता, चाचा के किरदार बड़े दिलचस्प हैं। हालांकि इन किरदारों का किससे क्या रिश्ता है, यह बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं होता।
फिल्म को यदि वे छोटा रखते तो बेहतर होता, खासकर सेकंड हाफ में कुछ प्रसंग गैरजरूरी लगते हैं, जैसे एम्सटर्डम जाने वाली बात। कहानी की कमियों को उन्होंने मनोरंजक प्रस्तुतिकरण के जरिये बखूबी छिपाया है।
लव रंजन ने अपने एक्टर्स से भी अच्छा काम लिया है। फिल्म के तीनों मुख्य कलाकार कार्तिक नारायण, नुसरत भरूचा और सनी सिंह का अभिनय बेहतरीन है। तीनों ने अपने किरदारों को बारीकी से पकड़ा और पूरी फिल्म में यह पकड़ बनाए रखी। आलोकनाथ, वीरेन्द्र सक्सेना और अन्य कलाकारों का अभिनय भी लाजवाब है। उनके रोल छोटे हैं, लेकिन वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
म्युजिक फिल्म का प्लस पाइंट है। 'बम डिगी डिगी' जैसे हिट गीत को फिल्म में जगह दी गई है। इसके साथ ही 'दिल चोरी', 'सुबह सुबह', 'तेरा यार हूं मैं' जैसे गीत भी सुनने लायक हैं।
कुल मिलाकर 'सोनू के टीटू की स्वीटी' कमियों के बावजूद मनोरंजन करती है।