OMG 2 रिव्यू : Sex Education के समर्थन में अक्षय कुमार की फिल्म
OMG 2 review: फिल्म ओ माय गॉड में भगवान के नाम पर होने वाले पाखंड और पाखंडियों का मजाक बनाया गया था। अब इस तरह की फिल्म बनाना और रिलीज करना संभव नहीं है इसलिए उत्सुकता थी कि ओएमजी 2 में क्या दिखाया जाएगा। ओएमजी 2 की कहानी सेक्स एजुकेशन को लेकर है। भारत में सेक्स पर बात करना शर्मिंदगी या अपराध माना जाता है। युवा होने की दहलीज पर खड़े लड़के-लड़कियां इस विषय पर न माता-पिता से बात कर पात हैं और स्कूल में टीचर से उनको कोई मदद नहीं मिलती।
हार कर वे इंटरनेट और किताबों के अधकचरे ज्ञान से अपनी जिज्ञासा को शांत करने के चक्कर में अनर्थ कर बैठते हैं। ओएमजी 2 स्कूल में सेक्स एजुकेशन को विषय के रूप में पढ़ाने का पुरजोर तरीके से समर्थन करती है और अपनी इस बात को सनातन धर्म से जोड़ कर वजनदार बनाती है। फिल्म के लीड कैरेक्टर को महाकाल का भक्त दिखाया गया और भगवान को खूबसूरती के साथ मूल कहानी से जोड़ा गया है।
यौन शिक्षा जैसे विषय पर फिल्म बनाना एक कठिन चुनौती थी। एक तो इस विषय पर बात करना भारतीय पसंद नहीं करते। दूसरा, फिल्म कहीं डॉक्यूमेंट्री न बन जाए। तीसरी चुनौती यह थी कि फिल्म पर अश्लीलता न हावी हो जाए। अमित राय, जिन्होंने इस फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है, इन चुनौतियों का सामना करने में सफल रहे हैं। उनका यह काम सधा हुआ है।
यौन शिक्षा पर उन्होंने लेक्चर नहीं पिलाए हैं कि दर्शक बोर हो जाएं। न ही विषय को बोझिल बनने दिया है कि दर्शक ऊंघने लगे। बल्कि एक ऐसी स्क्रिप्ट लिखी है जिसमें भरपूर मनोरंजन है जो दर्शकों को विषय पर सोचने के लिए मजबूर भी करती है।
अक्षय कुमार का किरदार, जो कि फिल्म के मुख्य कलाकार की उस समय पर आ कर मदद करता है जब वह मुश्किलों से घिर जाता है, उसे कुछ सूझता नहीं है, कहानी की मिठास को बढ़ाता है। अक्षय, भगवान शिव के भेजे गए दूत हैं। हालांकि ऐसा प्रयोग हम राजकुमार हिरानी की फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' में हम देख चुके हैं, जिसमें परेशानियों के हल मुन्नाभाई को गांधीजी से मिलते हैं।
उज्जैन में रहने वाला कांतिलाल मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) शिव भक्त है। उसकी अच्छी-भली जिंदगी में तब भूचाल आ जाता है जब उसके किशोर बेटे का स्कूल में हस्तमैथुन करते हुए एक वीडियो वायरल हो जाता है। साथ ही वह लिंग की लंबाई बढ़ाने के चक्कर में मेडिकल स्टोर से गलत दवाई खरीद कर खा लेता है और सड़क किनारे बैठे झोलाछाप डॉक्टर के चक्कर में भी पढ़ जाता है। स्कूल को लगता है कि उसकी इज्जत खराब हुई है और वह सारा दोष उस बच्चे पर मढ़ कर उसे निकाल देता है। 'गंदे काम' के लिए बच्चे की खासी बदनामी होती है।
कांतिलाल को भी पहले अपने बेटे की ही गलती नजर आती है, लेकिन भगवान शिव द्वारा भेजा गया दूत उसके अज्ञानता की पट्टी उतार कर समस्या की तह में जाने का मार्ग दिखाता है। कांतिलाल बदनामी की परवाह किए बिना मामले को अदालत में ले जाने का फैसला करता है और अदालत में उसका सामना तेज-तर्रार वकील कामिनी (यामी गौतम) से होता है।
कहानी का ज्यादातर हिस्सा कोर्टरूम ड्रामा है। अक्सर फिल्मकार एंटरटेनमेंट के नाम पर कोर्ट रूम ड्रामे को मजेदार बनाने के लिए थोड़ी छूट लेते हैं और यही काम ओएमजी 2 के डायरेक्टर अमित राय भी करते हैं। अंग्रेजी न जानने वाला और कोर्ट के प्रोटोकॉल से परिचित न होने के कारण कांतिलाल की हरकतों से हास्य पैदा होता है। खूबसूरत वकील का जादू उम्रदराज जज साहब पर भी होता है। छोटे-छोटे दृश्यों और संवादों का तड़का लगा कर दर्शकों को हंसाने का प्रयास अमित राय ने कोर्ट रूम सीन में किया है और ज्यादातर सीन निशाने पर लगते हैं।
हालांकि कहानी में कन्फ्यूजन भी पैदा होता है। वो ये कि कांतिलाल तो स्कूल के खिलाफ केस लड़ रहा है कि मेरे बच्चे को स्कूल में फिर से एडमिशन दिया जाए और क्योंकि स्कूल में यौन शिक्षा नहीं दी गई है। स्कूल की वकील कहती है कि यह सिलेबस में ही नहीं है।
फिर बात धीरे-धीरे एजुकेशन सिस्टम पर आ जाती है। स्कूलों में यौन शिक्षा की अनिवार्यता पर बहस होने लगती है और दो वकीलों की लड़ाई अलग मोड़ पर चली जाती है। लेकिन यह कमी फिल्म देखते समय अखरती नहीं है या दर्शक इस बात पर ज्यादा ध्यान इसलिए नहीं देते क्योंकि एंटरटेनमेंट का पलड़ा भारी रहता है।
बचाव कर रही वकील के पास पास दमदार तर्क नहीं रहते। यामी गौतम का होशियार वकील तो दिखाया गया है, लेकिन फिल्म के राइटर का झुकाव पंकज त्रिपाठी के किरदार के प्रति ज्यादा रहता है जो कोर्ट में अपना केस खुद लड़ता है। यामी के पास और तगड़े सवाल होना थे जिससे बचाव पक्ष भी मजबूत नजर आता।
फिल्म का अंत और बेहतर हो सकता था। कांतिलाल का एक्सीडेंट और चमत्कार वाली बात बहुत अपील नहीं करती और यह ट्रैक सिर्फ दर्शकों को चौंकाने के लिए रखा गया है।
बहरहाल, स्क्रिप्ट राइटर अमित राय ने छोटे-छोटे किरदारों पर मेहनत की है और यह बात फिल्म में निखर कर सामने आती है। एक निर्देशक के तौर पर भी उन्होंने ड्रामे को दिलचस्प अंदाज में पेश किया है। दर्शकों के मनोरंजन का ध्यान रखते हुए बेहतरीन संवादों के पास कड़वी दवा भी उन्होंने पिलाई है।
फिल्म बेहतरीन एक्टर्स से सजी हुई है। पंकज त्रिपाठी मंझे हुए कलाकार हैं। वे स्क्रीन पर गंभीर रह कर ऐसी बात बोल जाते हैं कि दर्शकों की हंसी छूट जाती है। पूरी फिल्म में उन्होंने अपनी पकड़ बना कर रखी है। उन्होंने अपने चिर-परिचित मैनेरिज्म को भी छोड़ा है जो अच्छी बात है।
यामी गौतम को लगातार अच्छे किरदार मिल रहे हैं जो दर्शाता है कि एक एक्टर के रूप में वे अपनी पहचान बनाने में सफल रही हैं। यामी ने वकील के किरदार में जान फूंक दी है। उनकी डायलॉग डिलीवरी बढ़िया है और उनके उच्चारण सुनने लायक हैं।
अक्षय कुमार का एक्सटेंडेड कैमियो है। 'जिंदा है तब तक निंदा है, वरना मरने के बाद तो तारीफ ही होती है' जैसे बेहतरीन वन लाइनर्स उन्हें मिले हैं। बहुत ही ठहराव और तल्लीनता के साथ उन्होंने एक्टिंग की है। उनका रोल और लंबा होना था। सर्पोटिंग कास्ट भी दमदार है। पवन मल्होत्रा, गोविंद नामदेव, बृजेन्द्र काला, अरुण गोविल ने अपने अभिनय से फिल्म को मजबूती प्रदान की है।
फिल्म का संगीत थीम के अनुरूप है। सिनेमाटोग्राफी से लेकर बैकग्राउंड म्यूजिक तक फिल्म स्तरीय है।
बात सेंसर बोर्ड की। इसे 'ए' सर्टिफिकेट क्यों दिया, समझ से परे है। यह फिल्म 14 वर्ष से बड़े बच्चों के लिए भी जरूरी है क्योंकि उनकी ही बात फिल्म में की गई है।
ओएमजी 2 एक बहस को छेड़ती है और इस बात पर जोर डालती है कि यौन शिक्षा स्कूलों में क्यों जरूरी है।