• Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
  4. Bhuj The Pride of India, Ajay Devgn, Sonakshi Sinha, Movie Review in Hindi
Written By
Last Updated : शनिवार, 14 अगस्त 2021 (00:12 IST)

भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया : फिल्म रिव्यू

भुज : द प्राइड ऑफ इंडिया : फिल्म रिव्यू - Bhuj The Pride of India, Ajay Devgn, Sonakshi Sinha, Movie Review in Hindi
अतिश्योक्ति, भुज द प्राइड देखते समय यह शब्द बार-बार दिमाग में आता है। लगता है कि इस फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति को इस शब्द से बहुत प्यार है। एक्टर, डायरेक्टर, राइटर, बैकग्राउंड म्यूजिक वाला, वीएफएक्स डिजाइन करने वाला, सभी ने अपनी तरफ से हर सीन को, हर बात को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है। मानो उनमें अतिरंजित करने की होड़ लगी हो। 80 के दशक में कई हिट फिल्म बनाने वाले राजकुमार कोहली की भी याद आ जाती है जो फिल्म की ग्रामर का बिलकुल ध्यान नहीं रखते थे। कोई भी, कभी भी, कुछ भी करता हुआ उनकी फिल्म में नजर आता था। यही हाल ‘भुज द प्राइड ऑफ इंडिया’ का है। 
 
देशभक्ति पर आधारित फिल्म बनाने की इस समय बॉलीवुड में होड़ लगी हुई है क्योंकि दर्शक भी  इन फिल्मों को हाथो-हाथ ले रहे हैं, लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं है कि इस भावना के आड़ में कुछ भी माल टिका दो। देशभक्त किरदार या देशभक्ति से ओतप्रोत हर फिल्म अच्छी हो ये जरूरी नहीं है। 
 
यह फिल्म भुज हवाई अड्डे के तत्कालीन प्रभारी IAF स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के जीवन से प्रेरित है। 1971 में भारत पर पाकिस्तान ने हमला बोल दिया था, जब ज्यादातर भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान में हालात संभाल रहे थे। भुज में भारतीय वायुसेना की हवाई पट्टी नष्ट की दी गई थी। इसके बाद विजय कार्णिक के नेतृत्व में स्थानीय महिलाओं ने एयरबेस का फिर से निर्माण किया ताकि भारत उन पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ सके जो भारत में घुस रहे थे।  
 
संदेह नहीं है कि यह एक कमाल का कारनामा था। अच्छी फिल्म बनाई जा सकती थी, लेकिन विजय कर्णिक के ये प्रयास फिल्म में अत्यंत ही लचर तरीके से दिखाए गए हैं। निर्देशक अभिषेक दुधैया ने शायद मान लिया कि तेज गति से बनाई गई फिल्में ज्यादा अपील करती है। दर्शकों को सोचने का मौका नहीं देना है, लेकिन उन्होंने स्पीड इतनी तेज रखी है कि दौड़ शुरू होते ही तेज भागने के चक्कर में औंधे मुंह गिर पड़े है। 
 
हर पात्र जल्दबाजी में नजर आता है। हर किरदार अत्यंत लाउड हो गया है। हर सीन नकलीपन की हद पार करता है। हर कैरेक्टर नाटकीय अंदाज में बात और व्यवहार करता है। नोरा फतेही और सोनाक्षी सिन्हा के किरदार तो हास्यास्पद हैं। अलग-अलग सीन फिल्मा लिए गए हैं और उन्हें जोड़-तोड़ कर फिल्म तैयार कर दी गई है।
 
सोनाक्षी का पहला सीन देख आप बाल नोंच सकते हैं। उसे बहादुर दिखाना था तो उसने एक झटके में ही तेंदुए का काम तमाम कर दिया। दिखा दिया कि ये नारी सब पर भारी है। नोरा तो ऐसे जासूसी करती हैं मानो यह दुनिया का सबसे आसान काम हो।  


 
विजय कर्णिक सहित सारे सैनिकों और महिलाओं को इस कारनामे की बहादुरी का श्रेय नहीं लेने दिया गया है। ऐसा लगता है कि सभी भगवान ने किया है। कौन से भगवान को याद नहीं किया गया? शिव, गणेश, हनुमान, करणी देवी, अल्लाह, वाहेगुरु सहित सभी को याद किया गया है। इससे दिल नहीं भरा तो शिवाजी के गुणगान कर दिए। नारी की महिमा बता दी गई। जातियों के श्रेष्ठता का बखान कर दिया गया। 
 
नाटकीय फिल्म इतनी कि एयरबेस पर प्लेन उतर रहा है और सारी स्त्रियां नगाड़े बजा कर स्वागत कर रही हैं। पाकिस्तानी सैनिकों को तो महामूर्ख बताया गया है। उनकी जासूसी करना आसान, उनको मूर्ख बनाना उससे भी आसान। इससे पूरी फिल्म कमजोर पड़ गई है। 
 
संजय दत्त तो बम ऐसे फेंकते हैं कि दस फीट दूर से ज्यादा दूर नहीं गिर सकता, लेकिन फिल्म में ऐसे दिखाया गया है कि वे ‘नीरज चोपड़ा’ को भी पछाड़ दे। फिल्म में तो उन्हें महामानव बता दिया गया है। हजार-दो हजार सैनिक तो उन्होंने ही गाजर-मूली की तरह काट दिए हैं। क्लाइमैक्स देख कर तो सिर ही पीटा जा सकता है। क्या ऐसा सचमुच हुआ था?  
 
अभिषेक दुधैया क्या सचमुच में इस फिल्म के निर्देशक हैं? फिल्म देख कर तो लगता है कि बिना ड्रायवर के ट्रक चल रहा हो। न कहानी के अते-पते। न दृश्यों में कोई तालमेल। न किसी कैरेक्टर के बारे में कोई ठोस जानकारी। क्या तेज गाड़ी चलाने से ही कोई अच्छा ड्राइवर बन जाता है? फिल्म का सबसे बड़ा पंच तो ग्रामीण महिलाओं द्वारा हवाई पट्टी को फिर तैयार करने का था। असल में ये महिलाएं रियल हीरो थीं। इस पक्ष को पूरी तरह इग्नोर कर दिया गया है। न ही इस हिस्से को ज्यादा फुटेज दिए गए हैं।  
 
फिल्म एडिटर ने इस तरह काट-छांट मचाई है कि शर्ट बनाने के लिए कपड़ा दिया गया और रूमाल बना दिया। बैकग्राउंड म्यूजिक कान में समस्या पैदा करता सकता है। हवाई हमले और हवाई जहाजों द्वारा किए गए हमले पर फिल्म से जुड़े लोग बेहद मोहित लगे, इसलिए ये दृश्य खूब लंबे रखे गए हैं। 
 
अजय देवगन ने यह फिल्म क्यों की? यह सवाल उनसे कई लोग पूछेंगे। वे लीड रोल में थे, लेकिन उनसे ज्यादा फुटेज तो संजय दत्त को मिल गए। कहीं भी अजय अपने किरदार को पकड़ नहीं पाए। उनका मेकअप और लुक भी खराब नजर आया। 
 
सोनाक्षी सिन्हा की तो तब एंट्री होती है जब फिल्म खत्म होने वाली रहती है। संजय दत्त ने जो किरदार निभाया है उसके लिहाज से उनकी उम्र बहुत ज्यादा है। नोरा फतेही को डांस ही करना चाहिए, एक्टिंग उनके बस की नहीं लगती। शरद केलकर निराश करते हैं। सपोर्टिंग कास्ट ने भी जमकर ओवर एक्टिंग की है। प्रणिता सुभाष को तो शायद एक-दो संवाद मिले हैं। 
 
भुज द प्राइड ऑफ इंडिया में प्राइड करने लायक कुछ भी नहीं है। 
 
  • निर्माता : भूषण कुमार, गिन्नी खनूता, कृष्ण कुमार, कुमार मंगत पाठक, बनी
  • निर्देशक : अभिषेक दुधैया
  • कलाकार : अजय देवगन, संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, एमी विर्क, नोरा फतेही, शरद केलकर, प्रणिता सुभाष
  • संगीत: तनिष्क बागची, गौरव दासगुप्ता, लिजो जॉर्ज डीजे चीता, आर्को
  • डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर उपलब्ध 
  • सेंसर सर्टिफिकेट : यूए अवधि: 1 घंटा 53 मिनट 
  • रेटिंग : 1/5 
ये भी पढ़ें
मालवा के एक पायलट लड़के का जोक हंसा देगा आपको