तापसी पन्नू ने कभी नहीं पकड़ा था बैट, 'शाबाश मिट्ठू' के लिए करना पड़ी इतनी तैयारी
मुझे क्रिकेट देखना बहुत पसंद था। हालांकि मैंने कभी अपने हाथों में बल्ला नहीं लिया है। लेकिन फिर भी टेलीविजन में बचपन से जो अलग अलग तरीके के मैच आया करते मैं बैठकर देखा करती थी। फिर समय आया मैच फिक्सिंग का उसके बाद मैं अंदर तक इतनी हिल गई कि मुझे क्रिकेट से जितना भी प्यार था, वह सब खत्म हो गया। मैं बिल्कुल अंदर तक दुखी हो गई थी।
बीच-बीच में ऐसा होता था कि मैं मैच देखने बैठ गई कभी भारत के बड़े मैच होते थे तो मैं वह देख लेती थी। लेकिन यह मैच फिक्सिंग वाले मामले के पहले जब मैं मैच देखती थी तो मुझे अपने देश के ही नहीं बल्कि दूसरे देश के जितने खिलाड़ी हुआ करते थे, उनके बारे में बहुत कुछ मालूम हुआ करता था। इस दौरान क्रिकेट देखा, लेकिन बहुत कम ही हो गया था।
यह कहना है तापसी पन्नू का जो फिल्म 'शाबाश मिट्ठू' भारतीय महिला क्रिकेटर मिताली राज का किरदार निभा रही हैं। यह बायोपिक सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इसमें मिताली राज के पूरे करियर के कई बड़े बिंदुओं को लोगों के सामने लाने की कोशिश की गई है।
वेबदुनिया के सवाल का जवाब देते हुए तापसी ने कहा, मुझे भी लगता है कि बहुत सारे स्पोर्ट्स वाली मेरी फिल्में हो गई है। अब मुझे इससे ब्रेक ले लेना चाहिए। मुझे खेल में बचपन से रुचि रही है तो शायद जब मैं ऐसे कोई रोल निभाती हूं तो लोगों को दिखाई देता है कि मैं उस रोल को पसंद कर रही हूं। उसे बहुत मजे लेकर कर रही हूं तो दर्शक भी खुश हो जाते हैं और मैं तो खुश हो ही रही होती हूं इस तरीके के रोल निभा कर।
तापसी ने पत्रकारों को बताया कि इस रोल के लिए मुझे सारी मेहनत करनी पड़ी है। वह इसलिए क्योंकि क्रिकेट कभी खेला नहीं और कभी ऐसा हुआ भी कि मैं अपने घर के आस-पास के गलियों में क्रिकेट खेलने चली गई। बाहर लड़के क्रिकेट खेला करते थे और वो मुझे फील्डिंग पर खड़ा कर दिया करते थे ना बैटिंग मिलती थी ना बॉलिंग मिलती है। एक दिन मैंने बड़ा परेशान होकर कहा कि जाओ भाई मैं कुछ और ही सीख लूंगी।
जब यह रोल मुझे करना पड़ा तो बैट उठाने की तैयारी से लेकर स्क्वेयर कट मारना या हुक ऐसे शार्ट लगाना यह सब कुछ मुझे सीखना पड़ा तो मेहनत तो बहुत तगड़ी करनी पड़ी मुझको। मुझे फिल्म में एक बात का और भी ध्यान रखना था कि मिताली ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब वह 9 साल की थी। यानी मुझे बहुत सारा समय उनके जीवन का पर्दे पर उतारना था।
मैंने कुछ ऐसे किया कि परीक्षा देने के लिए सिलेब्स देकर परीक्षा नहीं दी। मैंने परीक्षा में आने वाले प्रश्नों के हिसाब से सिलेब्स बनाया और उसी की पढ़ाई कर ली। मतलब ये कि जब स्क्रिप्ट पढ़ रही थी तब समझ में आ गया था कि किन-किन बातों पर ध्यान देना जरूरी है तो जो सीन होते थे, मैं उस हिसाब से अपने आपको प्रेक्टिस करके तैयार कर लिया करती थी।
मिताली ने आपको कितनी मदद की
मैं मिताली से ज्यादा मिल ही नहीं सकी क्योंकि जब फिल्म बन रही थी तब वह एक्टिव प्लेयर थीं और सारे ही खिलाड़ियों को बायो बबल में रहने के लिए कहा गया था। या तो वह बायो बबल में होते थे या फिर वर्ल्ड कप के लिए प्रैक्टिस कर रहे होते थे और वहां पर भी उनको बायो बबल में ही रहना होता था। ऐसे में मिताली की तरफ से बहुत ज्यादा मदद हमें मिल नहीं सकती और फिर लॉकडाउन भी चल रहा था। ऐसे में उपाय निकाला गया और नौशीन जो कि मिताली की बहुत गहरी दोस्त है। बहुत सालों तक साथ में यह लोग क्रिकेट भी खेले हैं और एक ही शहर से आते हैं। उन्होंने मेरी मदद की और बहुत सारे पैंतरे उन्होंने मुझे समझाएं।
खेल जैसे करियर में आपको अपनी उम्र का ध्यान रखना पड़ता है। एक उम्र के बाद अच्छे अच्छे खिलाड़ियों को भी रिटायर होना पड़ता है। आपकी क्या सोच है।
मुझे तो ऐसे करियर बड़े अच्छे लगते हैं चाहे फिर वह एक्टर हो या स्पोर्ट्स पर्सन हो, कोई एथलीट ही हो जाए तो आप सोच कर देखिए। आपने अपनी जिंदगी के साठ साल तक एक ही काम किया। जबकि ऐसे चुनौतीपूर्ण करियर जब आप अपनाते हैं तो 30 या 40 साल तक आप एक काम कर रहे हैं। उसके बाद दूसरे काम में लग सकते हैं। आपको एक ही जिंदगी में अलग अलग तरीके के काम करने का मौका मिल जाता है।
हर व्यक्ति की जिंदगी में एक सुनहरा दौर होता है। इस सुनहरे दौर को आप सोच समझकर अच्छे से अगर इस्तेमाल करते हैं तो जल्दी रिटायर होने के बाद भी आप आराम से जिंदगी जी सकता है। मैं तो यही चाहती हूं कि कुछ समय तक खूब सारा काम कर लूं। उसके बाद तो मुझे ऐसी नौबत का सामना ना करना पड़े कि जहां मुझे पैसे कमाने है, इसलिए काम करना पड़ेगा। शौक से काम करते रहो बस।
आपको लगता है आपकी फिल्म से कई महिला खिलाड़ियों को बहुत प्रेरणा मिलेगी
बिल्कुल मैं यही सोचती भी हूं। मुझे ऐसा लगता है कि फिल्म देखने के बाद लोग यह न सोचे कि बल्ला महिला खिलाड़ी के हाथ में या पुरुष खिलाड़ी के हाथ में। वह एक खेल खेल रहे हैं। वह क्रिकेट खेल रहे हैं। महिलाएं खेले या पुरुष खेले, ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। यह सोच में तब्दीली आ जाएगी तो बहुत बड़ी बात होगी। अब शाबाश मिट्ठू के जरिए अगर लोग यह सोचने लग जाए कि खेल- खेल है। उस में कहीं भी किसी भी तरीके से लड़के और लड़की का काम नहीं है।
शाबाश मिट्ठू के जरिए मैं तो यह भी सोचती हूं कि जैसे सारी महिला क्रिकेट खिलाड़ी है, 10 साल तक वह लगातार खेलती रहीं। उनकी तरफ कोई ध्यान भी नहीं देता था। लेकिन फिर भी वह अपना काम करती रही। वह खेल रही थीं और फिर लोगों ने धीरे-धीरे उसे अपनाना शुरू किया है।
आपको स्पोर्ट्स ने क्या सिखाया?
मुझे स्पोर्ट्स ने सिखाया कि मुझे हर बार उठकर लड़ना होगा। इस दुनिया में ऐसा कोई भी महान से महान खिलाड़ी रहा हो। इसने बहुत सारी सफलता पाई हो, लेकिन वह हर बार नहीं जीता। उसे अगली बार उठ कर खड़ा होकर फिर खेलना होगा। स्पोर्ट्स ने मुझे सिखाया कि अगर एक शुक्रवार को मेरी फिल्म चल रही है तो अगले शुक्रवार को फिर से मेरा एक मैच है जहां पर मुझे फिर से परफॉर्म करना होगा। इसने मुझे जीरो से फिर नया स्कोर खड़ा करना सिखाया है।