वेबदुनिया से राणा दग्गुबाती की खास बातचीत : हाथी मेरे साथी ने मुझे बदल कर रख दिया
फिल्म 'हाथी मेरे साथी' में एक पशु प्रेमी की तरह नजर आने वाले राणा दग्गुबाती अपने इस रोल को लेकर काफी एक्साइटेड हैं। मीडिया से बात करते समय राणा ने कई बातें साफ की। राणा बताते हैं कि मैं कभी भी अपने रोल को सीरियसली नहीं लेता हूं लोग मुझे भल्लालदेव के लिए याद रखेंगे तो साथ ही मैं ये भी देखता हूं कि वो मुझे दूसरे किरदार के लिए भी याद रखें।
राणा ने कहा, इस फिल्म में मैं वनदेव का किरदार निभा रहा हूं। ये रोल करने के लिए मुझे बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी लेकिन इस रोल ने मुझे काफी हद तक बदल दिया। राणा आगे बताते हैं कि वनदेव वो शख्स है जिसे आप अपने आस पास देखना चाहते हैं। ये एक अच्छा इंसान है जो सही बातों के लिए लड़ता है। इस रोल के लिए मैंने साल भर तक जंगल में शूट किया है वहीं रहा हूं। मेरे इस अनुभव ने मुझे अंदर से बहुत बदल कर रख दिया। मेरे इस अनुभव ने मेरे दिल में बहुत असर छोड़ा है।
बिल्कुल, ये 17 हाथी थे। मैंने 17 हाथियों के साथ काम किया है। मेरे लिए ये बहुत नई बात थी। जब मैं सेट पर पहुंचा तो बहुत नया अनुभव रहा। मैं इन हाथियों को जानता नहीं था तो मैं नहीं जानता था कि जब मैं काम करूंगा तो ये कैसे रिएक्ट करने वाले हैं। मज़ेदार बात भी ये ही थी कि मैं काम करता था और ये हाथी बहुत अलग तरह से उस बात पर रिएक्ट करते। मैंने इसीलिए बहुत कुछ सीखा।
आपके दादा डी रामानायडु का आपके जीवन में कितना असर है।
जाहिर है आज मैं जो हूं वो उन्ही की वजह से हूं। आप जानते हैं कि मैंने अपना करियर 2003 में फिल्मों में विजुअल इफेक्ट डिपार्टमेंट से शुरू किया था। उसके बाद मैंने फिल्में प्रोड्यूस की। और इस सबके बाद एक्टिंग करना शुरु किया। तो मेरे दादा और दादी दोनों की वजह से मुझे फिल्मों के बारे में जानना मिला। उन्हीं की वजह से मुझे फिल्मों में काम भी करना मिला। मेरे दादाजी के बारे में मैं इतना कह सकता हूं कि उन्होंने 80 के दशक में दक्षिण और हिंदी फिल्मों का मिलवाने का काम किया और अब हम वो काम कर रहे हैं।
आपकी नई नवेली शादी है। आपकी पत्नी कहीं कोई मदद करती हैं।
अभी तो वो ये समझ रही है कि मैं आखिर करता क्या हूं। मुझे लगता है कि एक ना एक दिन वो मेरे साथ काम करेंगी फिर वो किसी भी डिपार्टमेंट में हो। लेकिन वो समय कब आएगा अभी तो मैं कुछ नहीं कह सकता।
राणा आपने जंगलों में शूट किया कितना मुश्किल रहा था यह शूट करना।
मेरे हिसाब से जंगल बहुत ही बेहतरीन जगह है। हां, उसके अपने कुछ चुनौती हैं, कुछ परेशानियां हैं, लेकिन हम लोग बहुत अंदर तक जाकर शूट किया करते थे, जहां पर मोबाइल के सिग्नल भी नहीं मिला करते थे। हम सुबह 4:30 बजे उठ जाया करते थे और फिर तैयार होकर 5:30 बजे तक एकदम घने जंगल में पहुंच जाया करते थे। वहां जाकर ऐसा लगा कि हम साथ में जीते हैं। मुझे शिक्षा यह मिली कि जंगल में जैसे हर जीव एक दूसरे को साथ में रहते हुए साथ में लेते हुए जी रहा है। वैसा कोई मुश्किल नहीं होता है जीना।