जब एक रिक्वेस्ट पर अपने फैन से फोन पर दिलीप कुमार ने की थी बात
98 साल की उम्र में ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार साहब इस दुनिया से रुखसत हो गए। वह अपने पीछे कई कहानियां छोड़कर गए हैं। एक छोटी सी कहानी मेरे पास भी है जो दिलीप साहब ने एक सौगात के तौर पर मुझे दी है। यूं तो दिलीप साहब से तीन से चार बार मुझे इंटरव्यू करने का मौका मिला। तब मैं टेलीविज़न न्यूज में चैनल हुआ करती थी। उनसे पहली और आखिरी मुलाकात अभी भी मुझे अच्छे से याद है।
बात कुछ यूं है कि जेडब्ल्यू मैरियट जो मुंबई का एक बहुत ही जाना माना होटल है वहां एक इवेंट था साल शायद 2005 था। इस इवेंट पर आशा भोसले, अमिताभ बच्चन, रानी मुखर्जी और जाने कितने सितारे आए हुए थे वहीं दिलीप कुमार साहब अपने शानदार व्यक्तित्व के साथ एक कुर्सी पर विराजमान थे।
मैं आशा भोसले जी से बात करने गई और उनसे इंटरव्यू लिया और उन्होंने ने फिर मुड़कर देखा और कहा, अरे तुम दिलीप साहब को भूल मत जाना। यह मेरे बड़े चाहिते हैं और ऐसा करके उन्होंने मेरा हाथ खींच कर दिलीप साहब के पास पहुंचा दिया। दिलीप साहब उनके पास में दूसरी कुर्सी पर बैठे थे। दिलीप साहब ने मुझे देखा या यह कहूं वह मुझे काफी समय से देख रहे थे कि मैं जिस तरीके से काम कर रही हूं, तब मुझे देख कर बोले, अरे! ऐनक वाली लड़की, आशा जी को कितना परेशान करेगी। चल बता मैं क्या बोलूं तुझे और उस समय मैंने जो मुझे समझ में ही नहीं आया कि ट्रेजेडी किंग के नाम से जिस शख्स की में ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म से लेकर रंगीन फिल्में देखती आई हूं, उनके गानों पर झूमती आई हूं और मस्ती भी करता हूं। वह शख्स मुझे कितने प्यार से बुला रहा है।
मैंने अपना इंटरव्यू किया और उन्होंने और आशा जी दोनों ने मिलकर पास ही पड़ी प्लेट में जो काजू बादाम थे, एक एक मुट्ठी मेरे हाथ में थमा दी है तो एक हाथ में तो मेरे पास अपने चैनल का माइक था तो दूसरे हाथ में बहुत सारे काजू और बादाम शायद इससे खूबसूरत याद मिलना मुश्किल होगी।
दिलीप साहब के साथ मेरी दूसरी सबसे बड़ी याद है वह उस समय की है जब मुग़ल-ए-आज़म का रंगीन कलर प्रिंट निकलने वाला था और अपने चैनल की तरफ से मैं उनका इंटरव्यू करने के लिए उनके घर पर पहुंची थी। उस समय दिलीप साहब घर पर नहीं थे और हमसे इंतजार करने को कहा गया। तकरीबन एक या डेढ़ घंटा हमने इंतजार किया क्योंकि वह अपनी पहली किसी मीटिंग में रह गए थे और मुंबई के ट्रैफिक ने इस इंतजार को और लंबा कर दिया। जैसे ही वह अपने काम से लौटे और हमें इंतजार करते हुए देख कर बोले 5 मिनट और बैठे फिर मैं आपसे बात करता हूं।
दिलीप साहब अपने कमरे में जाकर थोड़ा तैयार होकर हमारे सामने आए और एकदम किसी राजा महाराजा की तरह आकर बड़े ही अदब से पेश आए। मैंने भी अपना पूरा इंटरव्यू किया और अंत में बड़े झिझक के साथ पूछा, दिलीप साहब मेरे नाना जी आपके बहुत बड़े फैन हैं। इतने बड़े फैन हैं कि उन्होंने मेरी मां का नाम, मीना और अपने बेटे का नाम दिलीप रख दिया। अब क्योंकि मम्मी की शादी पिताजी से हुई और उनका नाम भी दिलीप है इसलिए बाद में मेरे मामा जी का नाम दीपक कर दिया गया। लेकिन बावजूद इसके मेरे नाना जी का आप के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ है तो अगर आपको ठीक लगे तो क्या आप मेरे नानाजी से मोबाइल पर बात करेंगे?
उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे हां कह दिया और बोले, यह ठीक है मैं 2 मिनट में आता हूं तब तक आप फोन करवा दीजिए। मैंने भी झटपट अपने मोबाइल फोन से मेरे नानाजी तक पहुंचने की कोशिश की और उनसे कहा कि यह फोन कॉल आपकी जिंदगी का सबसे सुंदर फोन कॉल होगा। जिस शख्स था कभी आपने सपना देखा है और जिसे पूजा है दिलीप साहब आप से बात करेंगे।
दिलीप साहब ने फोन अपने हाथों में लिया। और कुछ बातें कहीं, मतलब कैसे हैं क्या कर रहे हैं? मैं खुशी में निस्तब्ध सी बातें सुनकर रही थी, अंत में वो नानाजी से बोले कि आपकी नातिन बड़ी ही होनहार पत्रकार है। आपको मेरा बहुत सारा प्यार और आपकी नातिन को मेरा बहुत सारा आशीर्वाद यह कहते हुए उन्होंने मोबाइल वापस लौटा दिया। मैंने भी धन्यवाद कहा। हमारी शूट हो गई थी। हम घर की तरफ लौट पड़े। लेकिन मैं वह समय कभी नहीं भूलूंगी और शायद आज भी वह सोच कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
काश ऐसा होता कि उस समय मैं अपने नाना जी के सामने बैठी होती और उन्हें जो खुशी हो रही थी वह देख पाती। मेरे नाना जी का निधन हो चुका है। लेकिन अब दिलीप कुमार साहब भी नहीं रहे तो जाने क्यों ऐसा लगता है कि जाते-जाते दिलीप साहब को मेरे नाना जी की उस छोटे से फोन कॉल के लिए शुक्रिया कर दूं।
कहते हैं अपने बड़ों के लिए जितना कुछ करे वह कम है। ऐसे में मुझे यह हमेशा लगता रहा मेरे नाना जी को एक फोन कॉल करवा कर और उनकी बात उनके सबसे पसंदीदा कलाकार से करवा कर शायद मेरे हाथों बहुत ही पुण्य का काम हुआ। मेरे इस काम में सहभागी दिलीप कुमार साहब है जिन्हें में जितनी भी बार शुक्रिया करूं उतना इतना कम है। दिलीप साहब आप तो मेरे नानाजी की याद भी साथ ले गए...