सोनू सूद को क्या राजनीति के फिसलन भरे मैदान में उतरना चाहिए?
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सोनू सूद को दिल्ली सरकार ने हाल ही में आम आदमी पार्टी सरकार के देश का मेंटोर्स कार्यक्रम का ब्रांड एंबेसडर घोषित किया। इस कार्यक्रम के तहत छात्रों को अपना करियर तलाशने में मदद की जाएगी।
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इसके कुछ दिनों बाद ही आयकर विभाग के अधिकारी कर चोरी की जांच के सिलसिले में बुधवार को मुंबई व कुछ अन्य स्थानों पर सोनू सूद से संबद्ध परिसरों में पहुंचे।
इन दो घटनाओं को लोग अपने-अपने नजरिये से देख रहे हैं। आयकर विभाग को यह अधिकार है कि वह किसी का भी हिसाब चेक कर सकता है, लेकिन सोनू सूद के हिसाब की जांच करने की जो टाइमिंग है वो बहुत कुछ इशारा कर रही है। आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यक्रम से जुड़ते ही उन्हें कहीं निशाना तो नहीं बनाया जा रहा है?
आम आदमी पार्टी भी मौका गंवाना नहीं चाहती। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सोनू सूद के साथ भारत के उन लाखों परिवारों की दुआएं हैं, जिन्हें मुश्किल घड़ी में इस अभिनेता का सहयोग मिला था। केजरीवाल ने सूद के समर्थन में उतरते हुए ट्वीट में कहा कि सचाई की राह पर लाखों मुश्किलें हैं, लेकिन सच्चाई की हमेशा जीत होती है। सोनूजी के साथ भारत के उन लाखों परिवारों की दुआएं हैं, जिन्हें मुश्किल घड़ी में सोनू जी का साथ मिला था।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जब से कोरोना ने भारत में पांव पसारे, उसके बाद अपने नेक कार्यों के जरिये सोनू ने लोकप्रियता के मामले में फिल्म स्टार्स नहीं बल्कि बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं की भी छुट्टी कर दी। प्रॉपर्टी गिरवी रख कर उन्होंने कितने लोगों की मदद की है, यह बात किसी से छिपी नहीं है।
सोनू की 'मसीहा' वाली छवि का कई लोग इस्तेमाल करना चाहते हैं तो कई लोगों की आंखों में यह सोनू की सोने जैसी चमक चुभ रही है। संभवत: वे उन्हें नीचे खींचने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि सोनू ने देश का मेंटोर्स कार्यक्रम का ब्रांड एंबेसडर बनना क्यों मंजूर किया? क्या सोनू भी राजनीति में जा कर देश सेवा करना चाहते हैं। क्या उनके पंजाबी होने का फायदा पंजाब में होने वाले आगामी चुनाव के लिए उठाया जा रहा है। भारत में जातिगत समीकरणों का चुनाव में बहुत महत्व है। संभव है कि उन्हें पंजाब का सीएम बना दिया जाए।
राजनीति में किसी का जाना बुरी बात नहीं है। अच्छे लोगों को इस कीचड़ में उतरना ही चाहिए ताकि गंदगी साफ हो। लेकिन सोनू जिस लकीर पर चल रहे थे उसके लिए उनका किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ना जरूरी नहीं है। वे अपने स्तर पर समाज सेवा कर रहे हैं और उन्हें इसके लिए किसी की मदद की जरूरत अब तक नहीं पड़ी। शायद वे लकीर और बढ़ी करना चाहते हों जिसके लिए उन्हें संसाधनों की जरूरत हो जो किसी राजनीतिक पद के जरिये ही संभव है।
राजनीति की फिसलन भरी राह में उतरना चाहिए या नहीं, यह फैसला खुद सोनू ही करेंगे, लेकिन उनके फैंस इस बात पर दो धड़े में बंटे हुए हैं। उपरोक्त दो घटनाओं में कुछ तो कनेक्शन है।