22 नवंबर: भारतीय वीरांगना झलकारी बाई की जयंती
1. Jhalkari Bai : झलकारी बाई एक आदर्श वीरांगना थी। ऐसी महान वीरांगना महिला जिस पर समस्त भारतवासियों को गर्व महसूस होता है। ऐसी भारत की महान स्वतंत्रता सेनानी झांसी की 'झलकारी बाई' का जन्म बुंदेलखंड के एक गांव में 22 नवंबर को एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा उर्फ मूलचंद कोली और माता जमुनाबाई उर्फ धनिया था।
2. झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। बचपन से ही झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं की देख-रेख और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी।
3. एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था। वह एक वीर साहसी महिला थी। एक अन्य अवसर पर जब गांव के एक व्यवसायी पर डकैतों के एक गिरोह ने हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।
4. उनकी इस बहादुरी से खुश होकर गांव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, जो बहुत बहादुर था। झलकारी का विवाह झांसी की सेना में सिपाही रहे पूरन कोली नामक युवक के साथ हुआ। पूरे गांव वालों ने झलकारी बाई के विवाह में भरपूर सहयोग दिया। विवाह पश्चात वह पूरन के साथ झांसी आ गई।
5. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में वे महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं।
6. सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी सेना से रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था। रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अपने अंतिम समय अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया।
7. उस युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वे जमीन पर गिर पड़ीं। ऐसी महान वीरांगना थीं झलकारी बाई। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है।
8. रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में रहीं और महिला शाखा में दुर्गा दल की सेनापति रह चुकी ऐसी महान वीरांगना झलकारी बाई ने सन् 1857 की जंग-ए-आजादी का एक ऐसा नाम, जिसके हौसले और बहादुरी ने भारत के इतिहास को गौरवान्वित किया है।
9. झलकारी बाई के सम्मान में सन् 2001 में डाक टिकट भी जारी किया गया। भारत की संपूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए प्राणों का बलिदान करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का नाम आज भी इतिहास के पन्नों में अपनी आभा बिखेरता है। 4 अप्रैल 1857 को झांसी में झलकारी बाई का निधन हुआ था।
10. उनकी वीरता पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कुछ पंक्तियां
जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।