• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Will Vodofone Idea leave India
Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 17 नवंबर 2019 (07:56 IST)

वोडाफ़ोन-आइडिया भारत से बोरिया-बिस्तर समेट लेगी?: नज़रिया

वोडाफ़ोन-आइडिया भारत से बोरिया-बिस्तर समेट लेगी?: नज़रिया - Will Vodofone Idea leave India
दूरसंचार उद्योग की स्थिति पर आशंकाओं को और बढ़ाते हुए भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में शामिल वोडाफ़ोन-इंडिया को दूसरी तिमाही में रिकॉर्ड 74,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।
 
बीबीसी ने इसके कारणों की पड़ताल करने की कोशिश की। इस बारे में अर्थशास्त्री विवेक कौल ने जो कुछ बताया, उन्हीं के शब्दों में हम आपको बता रहे हैं।
 
इतने बड़े बाज़ार में हो रहे नुकसान का कारण क्या है?
एक अरब से अधिक मोबाइल ग्राहकों के साथ भारत दुनिया के सबसे बड़े दूरसंचार बाज़ारों में से एक है। इसके बावजूद कंपनी को जो नुकसान हो रहा है इसके दो कारण हैं।
 
पहला यह कि जब कई वर्षों तक टेलीफ़ोन कॉल की कीमतें गिरने के बावजूद इसके डेटा की कीमतें लगातार ऊंची बनी रही। लेकिन तीन साल पहले जब रिलायंस जियो आया तो सब कुछ बदल गया। जियो के आने से डेटा की कीमतों में बेतहाशा गिरावट आई और इसने वॉयस के बाज़ार को डेटा बाज़ार में बदल दिया।
 
नतीजा यह हुआ कि भारत डेटा के मामले में दुनिया का सबसे सस्ता देश बन गया। लेकिन साथ ही इससे भारतीय बाज़ार में पहले से मौजूद कंपनियों पर गहरा असर पड़ा। उन्हें रिलायंस की कीमतों के अनुरूप अपने प्लान लाने पड़े। इसकी वजह से या तो उनका फायदा कम हुआ या फिर नुकसान हो गया।
 
दूसरा कारण इससे भी महत्वपूर्ण है। यह है एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) का मामला। इसका मतलब है कि दूरसंचार कंपनियों को अपनी कमाई का एक हिस्सा सरकार के दूरसंचार विभाग के साथ साझा करना होगा।
 
हालांकि, टेलीकॉम कंपनियां और सरकार के बीच एजीआर की परिभाषा को लेकर 2005 से ही मतभेद रहे हैं। कंपनियां चाहती हैं कि केवल टेलीकॉम से प्राप्त राजस्व को इसमें जोड़ा जाए लेकिन एजीआर को लेकर सरकार की कहीं व्यापक परिभाषा थी। वह गैर टेलीकॉम राजस्व जैसे कि जमा पर अर्जित ब्याज और संपत्ति की बिक्री को भी इसमें शामिल करना चाहती थी।
 
अब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हक़ में फ़ैसला दिया है जिसका मतलब ये है कि टेलीकॉम कंपनियां एडीआर का 83,000 करोड़ रुपए सरकार को भुगतान करेंगी। इनमें से अकेले वोडाफ़ोन इंडिया का हिस्सा 40,000 करोड़ रुपए का है। इस नए शुल्क का मतलब साफ़ है कि कंपनी को पहले से हो रहा नुकसान अब और बड़ा हो गया है।
 
क्या वोडाफ़ोन वाकई भारत छोड़ देगी?
अब सबसे पहले तो सवाल ये उठता है कि कंपनियों के पास इतना पैसा आएगा कहां से? और यही सवाल सभी टेलीकॉम कंपनियां भी पूछ रही हैं।
 
इस हफ़्ते की शुरुआत में वोडाफ़ोन के सीईओ निक रीड ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार दूरसंचार ऑपरेटरों पर भारी भरकम टैक्स और शुल्क का बोझ डालना बंद नहीं करती है तो भारत में कंपनी के भविष्य पर संकट आ सकता है।
 
वोडाफ़ोन ने भारत में आइडिया के साथ जॉइंट वेंचर शुरू किया था, अब इसे यहां वोडाफ़ोन-आइडिया के नाम से जाना जाता है। भारतीय टेलीकॉम बाज़ार में, राजस्व (रेवेन्यू) के मामले में, उसकी हिस्सेदारी 29 फ़ीसदी है।
 
मंगलवार को उन्होंने कहा था, "असहयोगी रेग्युलेशन और बहुत ज़्यादा टैक्स की वजह से हम पर बहुत बड़ा वित्त बोझ है, और अब इससे भी ऊपर सुप्रीम कोर्ट से हमारे लिए नकारात्मक फ़ैसला आया है।" लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने सरकार से माफ़ी मांगते हुए कहा कि भारत से बाहर निकलने की कंपनी की कोई योजना नहीं है।
 
लेकिन तथ्य यह है कि इस माफ़ी के बावजूद सबसे बड़ा मुद्दा तो यह है कि वोडाफ़ोन ने भारत के अपने निवेश की कीमत को शून्य दर्शाया है। साथ ही चर्चा यह भी है कि अब वोडाफ़ोन-आइडिया में और अधिक निवेश करने को लेकर न तो वोडाफ़ोन और न ही आदित्य बिड़ला समूह उत्सुक है।
 
लिहाजा जब तक कंपनी के मालिक अपने इस रुख को पलटते नहीं हैं और भारत में और निवेश नहीं करते, उनके भारतीय बाज़ार से कारोबार समेटने की संभावना और प्रबल हो जाती है।
 
बिजनेस के नज़रिये से यह कितना ख़राब?
अगर वोडाफ़ोन जैसी बड़ी कंपनी देश छोड़ने का फ़ैसला करती है तो इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर पड़ सकता है। यह केवल सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर नहीं है। वास्तविकता यह है कि बीते 10 साल से वोडाफ़ोन और भारत सरकार के बीच टैक्स का मुद्दा चला आ रहा है।
 
इसलिए अगर वोडाफ़ोन जैसा ब्रांड अगर अपनी दुकान भारत से समेटेगा तो यह उन अन्य निवेशकों के लिए भी चिंता का विषय होगा जो भारत में निवेश करना चाहते हैं। ऐसी कंपनियां भारत में निवेश से पहले दो बार सोचने को बाध्य हो जाएंगी।
 
क्या वोडाफ़ोन-आइडिया के ग्राहकों को चिंता करने की ज़रूरत है?
तुरंत नहीं, लेकिन ऐसा हो सकता है कि इस कंपनी के भारत छोड़ने के बाद टेलीकॉम सेक्टर में कीमतें बढ़ जाएंगी और बढ़ी कीमतों का बोझ उन पर पड़ेगा।
 
लेकिन कीमतों के बढ़ने का हमेशा ग़लत मतलब ही नहीं निकाला जाना चाहिए। एक सच्चाई यह भी है कि यह बाज़ार में कुछ प्रतिस्पर्धा करने का एकमात्र तरीका भी है। भारत में टेलीकॉम कंपनियों, और ख़ास कर वोडाफ़ोन के बने रहने और बढ़ने के लिए ऐसा होने की ज़रूरत है।
 
सच्चाई यह है कि वोडाफ़ोन के जाने के बाद देश में केवल दो ही बड़े ऑपरेटर बच जाएंगे और किसी भी बाज़ार में केवल दो कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा हो तो यह ग्राहकों के लिए बेहतर नहीं होता।
ये भी पढ़ें
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर कहीं लज़ीज़ और कहीं अज़ीब प्रतिक्रियाएं