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Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 11 जुलाई 2023 (21:36 IST)

ज्योति मौर्य मामले में सोशल मीडिया ट्रॉयल: महिला पर ही सवाल क्यों?

ज्योति मौर्य मामले में सोशल मीडिया ट्रॉयल: महिला पर ही सवाल क्यों? - Social media trial in Jyoti Maurya case
-सुशीला सिंह (बीबीसी संवाददाता)
 
Jyoti Maurya: सोशल मीडिया पर इन दिनों उत्तरप्रदेश सरकार की अधिकारी एसडीएम ज्योति मौर्य और उनके पति आलोक मौर्य का मामला छाया हुआ है। सोशल मीडिया पर आलोक मौर्य ने आरोप लगाया था कि एसडीएम बनने के बाद उनकी पत्नी ज्योति मौर्य ने उन्हें छोड़ दिया। आलोक मौर्य ने सोशल मीडिया पर उन्होंने अपनी पत्नी से चैट का एक वीडियो भी पोस्ट किया था। वीडियो सामने आने के बाद इस मामले पर लोग सोशल मीडिया पर अलग-अलग विचार रख रहे हैं। सोशल मीडिया इस सारे विवाद पर दो हिस्सों में बंटा हुआ नज़र आ रहा है।
 
एक पक्ष का कहना है कि ये ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य का निजी मामला है और मीडिया या जनता को इस मामले में फ़ैसले लेने का कोई अधिकार नहीं है। दूसरा पक्ष ऐसे वीडियो डाल कर ये दावा कर रहा है इस घटना के बाद कई पतियों ने अपनी पत्नी की आगे की पढ़ाई पर रोक लगा दी है।
 
इस साल जून महीने में आलोक मौर्य का कुछ पत्रकारों से बातचीत का वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्होंने रोते हुए ज्योति मौर्य पर धोखा देने और अपने बच्चों से मिलने न देने का आरोप लगाया। अलोक मौर्य ने बताया था कि वे उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में पंचायतीराज विभाग में क्लास-4 के कर्मचारी हैं और उनकी शादी ज्योति से साल 2010 में हुई थी। आलोक का दावा है कि शादी के बाद ज्योति मौर्य की पढ़ाई के लिए कर्ज़ भी लिया। साल 2015 में दंपति को जुड़वां बेटियां हुईं।
 
इसके बाद ज्योति ने उत्तरप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास कर ली। लेकिन इसके बाद मामले में नया मोड़ आया और आलोक मौर्य ने ज्योति मौर्य पर आरोप लगाए और शुरू हो गया आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला। ज्योति ने दावा किया कि आलोक ने कहा था कि वे ग्राम पंचायत में अधिकारी हैं। लेकिन शादी के बाद पता चला कि वे सफ़ाईकर्मी का काम करते थे।
 
इस मामले से महिलाओं पर असर
 
इस सारे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के 2 वकीलों सत्यम सिंह और दीक्षा दादू ने राष्ट्रीय महिला आयोग को एक खुली चिट्टी लिख कर कार्रवाई की मांग की है। सत्यम सिंह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सुरक्षा परिषद में लीगल सेल के महासचिव हैं। सत्यम का दावा है कि इस मामले के सामने आने के बाद कई परिवारों से बहुओं की पढ़ाई बंद करवा दी है।
 
एक एनजीओ चलाने वाले सत्यम सिंह कहते हैं, 'ये मामला केवल ज्योति मौर्य तक सीमित नहीं रह गया, इसका असर उन लड़कियों या शादीशुदा महिलाओं पड़ा है जो पढ़ना चाह रही हैं। उन्हें अब रोका जा रहा है। इसने पितृसत्तात्मक सोच को और मज़बूत कर दिया है।' सत्यम ने बताया कि महिलाओं की पढ़ाई के प्रति हाल में कुछ बदलाव आया था और कई परिवारों ने बहुओं को पढ़ने के लिए प्रेरित भी किया था लेकिन ऐसे मामले सामने आने से इन प्रयासों को झटका लगेगा।
 
पंजाब यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ विमेन स्टडीज़ में डॉक्टर अमीर सुल्ताना एक अन्य पहलू की बात करती हैं। वे कहती हैं, 'भारतीय संविधान में सभी को समानता का अधिकार दिया गया है तो इससे किसी महिला को कैसे महरूम रखा जा सकता है।' डॉ. सुल्ताना ने बीबीसी को बताया, 'भारत में कितने मामले मिल जाएंगे, जहां महिलाएं घर में अकेले कमाने वाली होती हैं और पति, परिवार बैठकर खा रहे होते हैं। वो घरेलू हिंसा बर्दाशत कर रही होती हैं लेकिन ऐसे मामलों पर तो सोशल मीडिया पर चर्चा नहीं होती।'
 
'इस मामले में सोशल मीडिया ट्रॉयल की कोई आलोचना नहीं करता जबकि ये निजता का मामला है और इस मामले में दोनों पक्ष क़ानूनी सहारा लेकर अपनी लड़ाई लड़ सकते हैं।' दिल्ली स्थित आंबेडकर यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्री और जेंडर मुद्दों पर काम कर रहीं डॉ. दीपा सिन्हा कहती हैं कि ये साफ़तौर पर ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य का निजी मामला है जिसपर किसी को कुछ बोलने का मतलब नहीं है।
 
'लेकिन सोशल मीडिया पर अक्सर ये देखा गया है कि जब भी कोई मामला सामने आता है तो लोग वहीं न्याय करने लग जाते हैं।।।लोग महिला की छवि और चरित्र पर सवाल उठने लगते हैं।' उनके अनुसार, 'एक महिला को घर में रहना चाहिए, बच्चे और परिवार को देखना चाहिए, इन सभी भेदभावों को और बढ़ावा दिया है। ये समाज की महिलाओं के प्रति सोच को दिखाता है।'
 
दीपा सिन्हा तेलंगाना में स्कूलों में किए गए एक शोध का उदाहरण देती हैं। वे कहती हैं कि कोई लड़का अगर किसी स्कूल में लड़की का नाम दीवार लिख देता था तो अभिभावक एक के बाद एक अपनी लड़कियों का नाम कटवा लेते थे, क्योंकि सारी चीज़ इज़्ज़त से जुड़ जाती हैं। दीपा सिन्हा कहती हैं कि महिलाओं और सियासतदानों को ऐसी महिलाओं के हक़ में खड़ा होना चाहिए।
 
वकील सत्यम सिंह कहते हैं कि सोशल मीडिया पर भी लगाम लगाई कसी जानी चाहिए। उनका कहना है कि नकारात्मक विचारों को रोकने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग या महिलाओं से जुड़ी संस्थाओं को ऐसे मामलों में संज्ञान लेना।