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Last Modified: बुधवार, 30 सितम्बर 2020 (08:29 IST)

राउत और फडणवीस की मुलाक़ात, क्या पास आ रहे हैं शिवसेना-बीजेपी

राउत और फडणवीस की मुलाक़ात, क्या पास आ रहे हैं शिवसेना-बीजेपी - Raut and Fadnavis meet, are shiv sena and bjp coming closer
कमलेश, बीबीसी संवाददाता
सितंबर-अक्टूबर, 2019- जब महाराष्ट्र की राजनीति गरमाई हुई थी। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव थे और बीजेपी-शिवसेना मिलकर चुनाव में उतरे थे।
 
चुनाव के नतीजे आए और बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन की जीत हुई। लेकिन, मुख्यमंत्री पद को लेकर टकराव के बाद शिवसेना और बीजेपी की 30 साल पुरानी दोस्ती नहीं बच सकी और शिवसेना ने बीजेपी को छोड़ राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के साथ 'महा विकास अघाड़ी' की सरकार बनाई।
 
अब सितंबर, 2020 में महाराष्ट्र की राजनीति में फिर सरगर्मी है और इसकी वजह है शिवसेना नेता संजय राउत और बीजेपी नेता व महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस की मुलाक़ात।
 
26 सितंबर को संजय राउत ने मुंबई में ग्रैंड हयात होटल में देवेंद्र फडणवीस से मुलाक़ात की है। लेकिन, दोनों नेताओं ने इस मुलाक़ात के राजनीतिक मायने होने से इनकार किया है।
 
क्या कहा राउत और फडणवीस ने
इस मुलाक़ात के संदर्भ में संजय राउत ने कहा, "मैं देवेंद्र फडणवीस से कुछ मुद्दों पर बात करने के लिए मिला था। वह पूर्व मुख्यमंत्री हैं। वह विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं और बीजेपी के बिहार चुनाव के प्रभारी हैं।"
 
"मैं उनका 'सामना' के लिए इंटरव्यू लेना चाहता था। हमारी मुलाक़ात पहले से तय थी लेकिन, कोरोना वायरस के कारण ये मुलाक़ात पहले नहीं हो पाई। हमारे बीच वैचारिक मतभेद हैं लेकिन हम दुश्मन नहीं हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इसके बारे में पता था।"
 
वहीं, इस मामले पर देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "संजय राउत के साथ बैठक में कोई राजनीतिक बात नहीं हुई। वो मेरा 'सामना' के लिए इंटरव्यू लेना चाहते थे। ये मुलाक़ात इसी सिलसिले में हुई थी और मैंने कुछ शर्तें भी रखीं। जैसे कि इंटरव्यू असंपादित रहना चाहिए और इंटरव्यू के दौरान मुझे अपना कैमरा रखने दिया जाए।"
 
फडणवीस ने कहा, "शिवसेना से हाथ मिलाने या सरकार गिराने का हमारा कोई इरादा नहीं है। लोग इस सरकार के कामकाज से नाराज़ हैं। हम एक मजबूत विपक्ष की तरह काम कर रहे हैं। जिस दिन ये सरकार गिरेगी, हम जवाब देंगे कि एक वैकल्पिक सरकार कैसे बनेगी।"
 
बिहार का उदाहरण
संजय राउत बीजेपी पर लगातार हमले करते रहे हैं, फिर चाहे वो प्रत्यक्ष तौर पर मीडिया में बयान देना हो या शिवसेना के मुखपत्र सामना के ज़रिए।
 
ऐसे में दोनों नेताओं की मुलाक़ात को लेकर तरह-तरह के कयास लगना स्वाभाविक है। ये अटकलें और तेज़ तब हो गईं जब रविवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार से सीएम उद्धव ठाकरे ने मुलाक़ात की।
 
वहीं, केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी कहा कि शिवसेना को बीजेपी से फिर से हाथ मिला लेना चाहिए। अगर शिवसेना हमारे साथ नहीं आती है, तो मैं शरद पवार को राज्य में विकास के लिए एनडीए के साथ जुड़ने की अपील करता हूं। वो भविष्य में बड़ा पद पा सकते हैं।
 
ऐसा पहली बार भी नहीं है जब कोई पार्टी मौजूद गठबंधन को तोड़ बीजेपी के साथ आई हो। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी जदयू और राजद ने मिलकर चुनाव लड़ा और सरकार बनाई थी। लेकिन, सरकार बनाने के लगभग डेढ़ साल बाद जदयू ने राजद से गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।
 
अब राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज़ हैं कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में भी ऐसा ही कोई बदलाव आने वाला है? क्या शिवसेना फिर से बीजेपी के क़रीब आ सकती है या शिवसेना कोई और संकेत देना चाहती है?
 
बीजेपी को चेतावनी
जानकार इस मुलाक़ात के आधार पर शिवसेना-बीजेपी का फिर से साथ आना तो मुश्किल मानते हैं लेकिन वो इसे एक संकेत की तरह ज़रूर देखते हैं।
 
वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन इस मुलाक़ात को सत्ता परिवर्तन का संकेत तो नहीं लेकिन एक चेतावनी के रूप में ज़रूर देखती हैं। शिवसेना खुद पर हो रहे लगातार हमलों और विवादों को लेकर बीजेपी को साधना चाहती है ताकि बीजेपी का रुख नरम पड़ जाए।
 
महाराष्ट्र सरकार कोरोना वायरस के मामले को लेकर दबाव में है। राज्य में कोरोना वायरस के 13 लाख से ज्यादा मामले आ चुके हैं। देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया है कि सरकार में फैसला लेने की क्षमता का अभाव है, गठबंधन पार्टी में समन्वय नहीं है और अधिकारियों में भी समन्वय की कमी है, जिसकी वजह से हालात खराब हुए।
 
इसी बीच अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में उद्धव ठाकरे के बेटे और राज्य में मंत्री आदित्य ठाकरे का नाम उठाया जा रहा है। मराठा आरक्षण के मुद्दे को भी बीजेपी बढ़चढ़कर उठा रही है। 10 अक्टूबर को राज्य में बंद बुलाया गया है और ये मुद्दा उद्धव सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है।
 
वहीं, शरद पवार, उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे को चुनाव हलफनामे में घोषित की गई संपत्ति के आधार पर आयकर नोटिस भी भेजा गया है।
 
सुजाता आनंदन कहती हैं, "लगातार चौतरफा हमला झेल रही शिवसेना अब जवाब देना चाहती है। संजय राउत शायद देवेंद्र फडणवीस को ये चेतावनी देना चाहते हैं कि अगर बीजेपी नहीं रुकती है तो उनकी सरकार से जुड़े मामले भी बाहर आ सकते हैं। जैसे समृद्धि एक्सप्रेसवे में फडणवीस सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में शिवसेना की बंद मुठ्ठी मे भी बहुत कुछ है।"
 
कृषि क़ानून पर असमंजस क्यों
लेकिन, नए कृषि क़ानूनों को लेकर माना जा रहा है कि शिवसेना चुप रहकर कहीं ना कहीं बीजेपी को परोक्ष समर्थन दे रही है। शिवसेना ने संसद में वोटिंग के दौरान लोकसभा में कृषि बिल का समर्थन किया था और राज्यसभा में वॉक आउट कर दिया था।
 
इन क़ानूनों पर शिवसेना का रुख स्पष्ट नहीं है जबकि एनसीपी और कांग्रेस इसके पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं। क्या ये भी उस मुलाक़ात की एक कड़ी है।
 
इसे लेकर सुजाता आनंदन मानती हैं कि ये बीजेपी को समर्थन देना नहीं है। दरअसल, किसान जिस तरह एनसीपी का वोटबैंक रहे हैं, उस तरह से वो शिवसेना की राजनीति का हिस्सा नहीं हैं। इसलिए भी शिवसेना इस तरह के मामलों पर बहुत सक्रिय नहीं रहती। हालांकि, महाराष्ट्र की राजनीति में किसानों की बहुत बड़ी भूमिका है और इसलिए शिवसेना मौन तो रह सकती है लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जा सकती।
 
पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 105 सीटें, शिवसेना को 62 सीटें, एनसीपी को 54 सीटें और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक समर खड़स कहते हैं कि बीजेपी हर गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में ही रहेगी। शिवसेना बीजेपी के साथ चली भी जाती है तो उसे उल्टा नुक़सान ही होगा।
 
समर खड़स का मानना है कि जिस दौरान बीजेपी उद्धव ठाकरे और उनके बेटे पर लगातार हमला कर रही है तब शिवसेना बीजेपी के साथ नहीं जाएगी। इस तरह तो शिवसेना की ही छवि कमज़ोर हो जाएगी।
 
एनसीपी और कांग्रेस को संदेश
लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई इसकी एक अलग वजह मानते हैं। वह कहते हैं कि शिवेसना कहीं ना कहीं एनसीपी और कांग्रेस को संतुलित रखना चाह रही है।
 
ये कहा जाता है कि महा विकास अघाड़ी में शरद पवार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उद्धव ठाकरे वही करते हैं जो शरद पवार कहते हैं। एनसीपी और कांग्रेस का दबाव उद्धव ठाकरे पर बना रहता है।
 
कृषि क़ानून को लेकर भी एनसीपी नेता और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार कह चुके हैं कि बिना क़ानूनी सलाह के कृषि विधेयकों को महाराष्ट्र में लागू नहीं किया जाएगा। महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यमंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा है कि राज्य में बिल लागू नहीं किया जाएगा। जबकि उद्धव ठाकर ने साफतौर पर इसे लेकर कुछ नहीं कहा है।
 
वहीं, इसी साल मुंबई के पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह के 10 डिप्टी कमिश्नर के ट्रांसफर को सरकार ने रद्द कर दिया था। उस समय भी सरकार में समन्वय ना होने की बात सामने आई थी। कंगना रनौत के ऑफिस पर बीएमसी की कार्रवाई पर भी शरद पवार ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि बीएमसी की कार्रवाई ने गैर ज़रूरी तौर पर लोगों को बोलने का मौका दे दिया।
 
संजय राउत की देवेंद्र फडणवीस के साथ मुलाक़ात के बाद महाराष्ट्र की राजनीति गरमा गई है। ऐसे में शिवसेना भी अपनी अहमियत दिखाने की कोशिश कर रही है कि उसके पास भी विकल्प मौजूद हैं।
 
हेमंत देसाई कहते हैं, "पिछले साल तीनों दलों का गठबंधन तो बन गया था लेकिन इसमें तीनों की भूमिका एक समान नहीं है। पर्दे के पीछे शिवसेना और एनसीपी में कुछ फ़ैसलों को लेकर टकराव रहा है। इसलिए शिवसेना बीजेपी के साथ खुद को जोड़कर एनसीपी और कांग्रेस को संकेत देना चाहती है कि वो उसे मजबूर ना समझें। हमारे पास भी दूसरे रास्ते हैं।"
 
वहीं, हेमंत देसाई बताते हैं कि इस इंटरव्यू से शिवसेना और बीजेपी दोनों के नेता खुश नहीं हैं। अगर सरकार बनाने के संदर्भ में बात नहीं हो रही है तो 'सामना' को इंटरव्यू देने की क्या ज़रूरत है। इससे कार्यकर्ताओं में उलझन पैदा हो गई है।
 
अब भले ही संजय राउत और देवेंद्र फडणवीस अपनी मुलाक़ात को गैर-राजनीतिक कह रहे हैं लेकिन अचानक सामने आए इस बदलाव ने महाराष्ट्र की राजनीति में कई संभावनाओं और आशंकाओं को जन्म दे दिया है।
 
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