सलमान रावी
बीबीसी संवाददाता
हाई प्रोफाइल मर्डर हो या घोटालों के अभियुक्तों का बचाव। या फिर आय से अधिक संपत्ति के मामलों के अभियुक्तों को छुड़ाना। राम जेठमलानी हमेशा लहर के ख़िलाफ़ ही तैरते नज़र आए।
91 साल की उम्र में भारत के तब वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली के ख़िलाफ़ अदालत में मोर्चा संभाल लिया था। जेठमलानी तब अरविंद केजरीवाल की पैरवी कर रहे थे।
संयोग ऐसा रहा है कि महज कुछ ही सप्ताह के अंतराल पर जेटली और जेठमलानी, दोनों इस दुनिया में नहीं रहे। वैसे जेठमलानी 95 साल की की भरी पूरी जिंदगी जीने के बाद गुजरे हैं।
उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचने के बाद भी उनकी याद्दाश्त, सेंस ऑफ़ ह्यूमर और आक्रामक शैली में कभी भी ज़रा सी कमी नहीं देखने को मिली।
उनके पास वकालत का 78 साल का अनुभव था। यानी सुप्रीम कोर्ट के ज्यादातर जजों की उम्र जेठमलानी के अनुभव से उन्नीस ही रहा। विवादों से उन्हें कभी परहेज़ नहीं रहा और देश के लगभग हर बड़े मामले में वकील या नेता के रूप में भूमिका रही थी। सिर्फ 17 साल की उम्र में क़ानून की डिग्री लेने वाले राम जेठमलानी ने 13 साल की उम्र में ही मैट्रिक पास कर ली थी।
शुरू से ज़हीन माने जाने वाले जेठमलानी ने अविभाजित भारत के कराची शहर के एससी शाहनी लॉ कालेज से क़ानून में ही मास्टर्स की डिग्री ली और जल्द ही उन्होंने अपनी 'लॉ फर्म' भी बना ली।
कराची में उनके साथ वकालत पढ़ने वाले दोस्त एके बरोही भी उनके साथ 'लॉ फर्म' में थे। यह बात हो रही है विभाजन से पहले की। मगर जब भारत आज़ाद हुआ और विभाजन हुआ तो दंगे भड़क गए। अपने मित्र की सलाह पर जेठमलानी भारत चले आए।
संयोग देखिए कि बाद में दोनों मित्र अपने अपने देशों के क़ानून मंत्री बने। वर्ष 1923 के 14 दिसंबर को सिंध के शिकारपुर में जन्मे राम जेठमलानी ने अपने करियर की शुरुआत सिंध में बतौर प्रोफ़ेसर की थी। राम जेठमलानी ने हर काम उम्र से पहले ही किया। पढ़ाई भी और शादी भी।
18 साल की उम्र में ही उनकी शादी दुर्गा से हुई और बंटवारे से ठीक पहले उन्होंने अपनी तरह की वकील रत्ना शाहनी से शादी की। उनकी दोनों पत्नियां और चार बच्चे एक साथ रहते हैं। कराची से मुंबई आ जाने के बाद उन्होंने मुंबई गवर्नमेंट लॉ कालेज में पढ़ाना शुरू कर दिया फिर उन्होंने वकालत शुरू कर दी।
राजनीति में भी उनका सफर मज़ेदार रहा। उन्हें भारतीय जनता पार्टी से 6 सालों के लिए निष्कासित किया गया लेकिन वे लालू यादव की पार्टी आरजेडी से संसद में पहुंच गए। आपातकाल के दौरान राम जेठमलानी को गिरफ्तारी से बचने के लिए भागकर कनाडा जाना पड़ा जहां वे दस महीनों तक रहे।
ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जमकर आलोचना की थी और उनके खिलाफ केरल की एक निचली अदालत ने ग़ैर ज़मानती वॉरंट जारी कर दिया था। जेठमलानी के समर्थन में 300 वकील साथ आए और बॉम्बे हाईकोर्ट ने वॉरंट को रद्द कर दिया था।
कनाडा में रहते हुए ही उन्होंने 1977 का लोकसभा चुनाव बॉम्बे उत्तर-पश्चिम सीट से लड़ा और जीत भी हासिल की। इसके अगले चुनावों में यानी 1980 में भी उन्होंने इस सीट से विजय हासिल की। हालांकि अगली बार यानी 1985 में वे कांग्रेस के सुनील दत्त से चुनाव हार गए थे।
मगर 1988 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। 1996 और 1999 में अटलबिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वे भारत के क़ानून मंत्री बने, लेकिन तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी से मतभेद के कारण प्रधानमंत्री ने उन्हें पद से हटा दिया।
बहुत कम लोगों को पता है कि राम जेठमलानी अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ़ लखनऊ से चुनाव भी लड़ चुके थे। उन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भी अपनी उम्मीदवारी घोषित की थी।
जेठमलानी पर हमेशा से ही अवसरवादी होने के आरोप भी लगते रहे। मगर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और जब चाहा जिस पार्टी में आते रहे और जाते रहे। इस बार भाजपा ने उन्हें निष्कासित किया तो उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल से हाथ मिलाया।
बतौर वकील भी जो मामले उन्होंने लड़े, उससे भी वो हमेशा चर्चा में रहे। चाहे वो हर्षद मेहता का मामला हो या प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान हुआ सांसद रिश्वत कांड।
जेठमलानी ने बड़े-बड़े मामलों में अभियुक्तों की पैरवी की और हमेशा कहा कि ऐसा करना बतौर वकील उनका कर्तव्य है। भारत में जब जब कानून, वकालत और अदालतों की बात होगी, राम जेठमलानी, उनकी बेबाकी और उनसे जुड़े विवाद लोगों को याद आएंगे।