चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता
बीते 15 साल में भारतीय रेल में 10 रेल मंत्री बदल गए, लेकिन रेलवे में हादसों की तस्वीर नहीं बदली है। रेल मंत्री से लेकर अधिकारी तक अक्सर हादसों को लेकर ज़ीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। पिछले दो दशकों से रेलवे में हादसों को रोकने के लिए कई तकनीक पर विचार ज़रूर हुआ है, लेकिन आज भी एक ऐसी तकनीक का इंतज़ार है जो रेलवे की तस्वीर बदल सके।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पिछले साल यानि मार्च 2022 में सिकंदराबाद के पास 'कवच' के ट्रायल में ख़ुद शरीक हुए थे। उस वक़्त यह दावा किया गया था कि कवच भारतीय रेल में हादसों को रोकने की सस्ती और बेहतर तकनीक है। रेल मंत्री ने ख़ुद ट्रेन के इंजन में सवार होकर इसके ट्रायल के वीडियो बनवाए थे।
क्या है 'कवच'
'कवच' स्वदेशी तकनीक है और दावा किया गया था कि इस तकनीक को भारतीय रेल के सभी व्यस्त रूट पर लगाया जाएगा, ताकि रेल हादसों को रोका जा सके।
लेकिन इन तमाम दावों के बाद भी रेल हादसों पर रोक नहीं लग पा रही है। यही नहीं रेलमंत्री के दावे के बावजूद शुक्रवार की शाम को ओडिशा में भारतीय रेल के इतिहास के बड़े हादसों में से एक हादसा हो गया।
ओडिशा रेल हादसे में अब तक 288 लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह के हादसे को रोकने के लिए 'कवच' को विकसित किया गया था, ओडिशा में ठीक वैसा ही हादसा हुआ है।
इसमें सबसे पहले कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन ने बाहनगा स्टेशन पर खड़ी एक मालगाड़ी को टक्कर मारी थी। इस टक्कर के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के कम से कम 12 डिब्बे पटरी से उतर गए।
वरिष्ठ पत्रकार और लंबे समय तक रेलवे की रिपोर्टिंग करने वाले अरुण दीक्षित कहते हैं, "रेल मंत्री ने कहा था कि कवच से 400 मीटर की दूरी पर ट्रेनों को रोका जा सकता है। उन्हें बताना चाहिए कि कहां है वो तकनीक। कैसे हो गए यह भीषण हादसा।"
ऐसी ही आरोप पूर्व रेल राज्य मंत्री और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने लगाया है। उनका कहना है, "मैं हमेशा कहता रहा हूं कि जो बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर है, उस पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। रेलवे में लापरवाही हो रही है जिसका नतीजा हम भुगत रहे हैं।"
भारतीय रेल के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा का इस मुद्दे पर कहना है कि ओडिशा में जिस जगह पर हादसा हुआ है वहां 'कवच' नहीं लगाया गया है।
दरअसल भारतीय रेल दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-कोलकाता रूट पर ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने की योजना पर काम कर रहा है और इन रूट पर सबसे पहले तकनीक को बेहतर करने की बात कही जाती है।
इस हादसे के बाद पूर्व रेल मंत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि अगर रूट पर एंटी कोलिजन डिवाइस लगा होता तो यह हादसा नहीं होता।
एंटी कोलिजन डिवाइस
ममता बनर्जी ने दावा किया है कि जब वो रेल मंत्री थीं तो ट्रेनों के आपस में टकराने से रोकने पर काम कर रही थीं। दरअसल भारत में दो ट्रेनों के आपस में टकराने (हेड ऑन कोलिजन) को रोकने के लिए गंभीरता से काम साल 1999 में हुए गैसल रेल हादसे के बाद शुरू हुआ था।
इस हादसे में अवध-असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन आपस में टकरा गई थीं, जिससे क़रीब 300 लोगों की मौत हो गई थी।
उसके बाद भारतीय रेल के कोंकण रेलवे ने गोवा में एंटी कोलिजन डिवाइन या एसीटी की तकनीक पर काम शुरू किया था। इसमें ट्रेनों में जीपीएस आधारित तकनीक लगाई जानी थी, जिससे दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर, एक-दूसरे के क़रीब आ जाएं तो सिग्नल और हूटर के ज़रिए इसकी जानकारी ट्रेन के पायलट को पहले से मिल जाए।
शुरू में इस तकनीक में देखा गया कि दूसरे ट्रैक पर भी कोई ट्रेन आ रही हो तब भी इस तरह से सिग्नल मिलने लगते हैं। रेलवे ने बाद में विजिलेंस कंट्रोल डिवाइस को विकसित कर इस तरह के हादसों को रोकने पर विचार भी किया था।
उसके बाद ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए ट्रेन प्रोटेक्शन वॉर्निंग सिस्टम या टीपीडब्लूएस और टीकैस यानी ट्रेन कोलिजन अवाइडेंस सिस्टम पर भी विचार हुआ।
इस तरह की तकनीक को विदेशों से ख़रीदने पर यह काफ़ी महंगा साबित हो रहा था, इसलिए रेलवे ने इसकी तकनीक ख़ुद विकसित करने पर ज़ोर दिया और इसी सिलसिले में 'कवच' नाम की देशी तकनीक को पिछले साल अपनाया गया था।
रेल हादसों को शून्य करने का दावा
भारतीय रेल अक्सर ज़ीरो टॉलरेंस टूवार्ड्स एक्सीडेंट की बात करती है। यानी रेलवे में एक भी एक्सीडेंट को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आमतौर पर हर रेल मंत्री की प्राथमिकता में यह सुनने को मिलता है। लेकिन पिछले 15 साल में दस से ज़्यादा रेल मंत्री पाने के बाद भी भारत में रेल हादसे नहीं रुके हैं।
हादसों के लिहाज़ से भारत में पिछली सरकारों का रिकॉर्ड भी ख़राब रहा है और मौजूदा सरकार में भी कई बड़े रेल हादसे हो चुके हैं। रेलवे में कई हादसे ऐसे भी होते हैं जिसकी चर्चा तक नहीं होती है।
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फ़ेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा कहते हैं, "हर साल क़रीब 500 रेलवे कर्मचारी ट्रैक पर काम करने के दौरान मारे जाते हैं। यही नहीं मुंबई में हर रोज़ कई लोग पटरी को पार करते हुए मारे जाते हैं। रेलवे की प्राथमिकता ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने की नहीं बल्कि सुरक्षा होनी चाहिए।"
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं, "रेलवे में ट्रेन हादसों को रोकने की बात दशकों से होती है, लेकिन होता कुछ नहीं है। ऐसा लगता है कि कोई सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है और इस पर ख़र्च नहीं करना चाहती है।"
मोदी सरकार के दौरान हुए बड़े रेल हादसे
13 जनवरी 2022: राजस्थान के बीकानेर से असम के गुवाहाटी जा रही बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस की 12 बोगियां पटरी से उतर गईं। हादसा पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था। इसमें ट्रेन के इंजन का मोटर खुलकर पटरी पर गिर गया और उस पर ट्रेन के चढ़ जाने की वजह से यह हादसा हुआ था। इस हादसे में कम से कम 9 लोगों की मौत हुई थी।
19 अगस्त 2017: उत्तर प्रदेश के खतौली में उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। यह ट्रेन पुरी से हरिद्वार जा रही थी। यहां पटरी को हटाकर मरम्मत का काम चल रहा था। इस हादसे में क़रीब 23 लोगों की मौत हुई थी। इसी हादसे के बाद सुरेश प्रभु ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।
22 जनवरी 2017: आंध्र प्रदेश के विजयनगरम ज़िले में हीराखंड एक्सप्रेस ट्रेन के आठ डिब्बे पटरी से उतर गए थे। इस हादसे में क़रीब 40 लोगों की मौत हुई थी।
20 नवंबर 2016: कानपुर के पास पुखरायां में पटना-इंदौर एक्सप्रेस के 14 कोच पटरी से उतर गए। इस हादसे में क़रीब 150 लोग मारे गए थे।
20 मार्च 2015: देहरादून-वाराणसी जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई। इस हादसे में क़रीब 35 लोग मारे गए थे। यह हादसा उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में हुआ था।
24 जुलाई 2014: हैदराबाद के नज़दीक एक रेलवे फाटक पर स्कूली बस और ट्रेन के बीच टक्कर में कम से कम 15 स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी। यह हादसा मेडक के मसाईपेट इलाके में मानवरहित रेलवे फाटक पर हुआ था।
26 मई 2014: उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर ज़िले के चुरेब रेलवे स्टेशन के पास गोरखधाम एक्सप्रेस के छह डिब्बे पटरी से उतर गए और ट्रेन के मालगाड़ी के टकराने से 25 से ज़्यादा यात्रियों की मौत हो गई थी। इस हादसे में 50 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।
Edited by : Nrapendra Gupta