भारतीय समाज में त्वचा के रंग को लेकर फैले भेदभाव के ख़िलाफ़ मुखर रहने वालीं बॉलीवुड अभिनेत्री नंदिता दास दिल्ली में बीबीसी के कार्यक्रम में शामिल हुईं। 'बीबीसी 100 वीमेन- सीज़न 2019' की फ़्यूचर कॉन्फ़्रेंस में आए लोगों के साथ नंदिता ने फ़िल्म इंडस्ट्री में रंग को लेकर होने वाले भेदभाव पर अपने निजी अनुभव साझा किए।
उन्होंने बताया कि सांवले अभिनेता-अभिनेत्रियों को कमर्शियल सिनेमा में कैसी दिक्कतें आती हैं। नंदिता कहा कि फ़िल्मों में शिक्षित, उच्च वर्ग की महिला की भूमिका के लिए उनसे मेकअप के माध्यम से त्वचा को गोरा करने के लिए कहा जाता है। उन्होंने कहा, 'लेकिन जब मुझे कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि वाला रोल करना होता है, तब इस बात के लिए मेरी तारीफ़ होती है कि मैं कितनी सांवली और ख़ूबसूरत हूं।'
उन्होंने कहा कि सांवले अभिनेता कमर्शियल फ़िल्मों में गोरे दिखते हैं जबकि रियलिस्टिक फ़िल्मों में डार्क दिखते हैं। नंदिता ने कहा, 'अगर कोई एक्टर गोरा हो तो रियलिस्टिक सिनेमा में या फिर ग़रीब या ग्रामीण दिखाने के लिए उसे सांवला दिखाया जाता है।'
गोरेपन का जुनून
नंदिता दास ने कहा कि भारत में गोरे रंग के प्रति जुनून को पूरी तरह से सामान्य बना दिया गया। देश की आधे से ज़्यादा आबादी का इसी जुनून के कारण प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा। नंदिता ने कहा, 'भारत में इतने सारे रंग हैं लेकिन जुनून सिर्फ़ गोरेपन को लेकर है। 80-90 प्रतिशत लोगों के रंग की स्किन कहीं दिखती ही नहीं।'
गोरे रंग के प्रति जुनून कितना गहरा है, उसे लेकर एक उदाहरण देते नंदिता ने बताया कि इस विषय पर एक लेख में एक जगह उनकी जो तस्वीर छापी गई थी, उसमें उन्हें फ़ोटोशॉप के माध्यम से गोरा कर दिया गया था।
नंदिता ने कहा कि पहले गोरापन बढ़ाने वाले विज्ञापन अब नहीं दिखते, मगर उसमें चालाकी की जाने लगी है। उन्होंने कहा, 'एडवरटाइज़मेंट एसोसिएशन की गाइडलाइंस सख़्त हुई हैं, मगर अब विज्ञापनों में गोरेपन की जगह ग्लोइंग और ब्राइटनिंग स्किन ने ले ली है।'
हालांकि वे संतोष जताती हैं कि हाल के सालों में जागरूकता बढ़ी है। उन्होंने कहा, 'युवा महिलाएं कभी एयरपोर्ट या बुकशॉप पर मिलती हैं तो इस बारे में बात करती हैं और त्वचा के रंग को लेकर होने वाले भेदभाव को लेकर किए जा रहे काम को लेकर शुक्रिया कहती हैं।' 'लोग ऐसा भी पूछते हैं कि कैसे डार्क स्किन होने के बावजूद आप कॉन्फ़िडेंट हैं। इससे पता चलता है कि कैसे त्वचा के रंग को आत्मविश्वास और योग्यता से जोड़ दिया गया है।'
उन्होंने कहा, 'गांव में देखा कि कुछ महिलाएं वे क्रीम इस्तेमाल कर रही थीं, जो एक्यपायर हो चुकी थी। हमें समाज में पहले से ख़ूबसूरती के बारे बताया जाता है कि रंग कैसा होना चाहिए, क़द क्या होना चाहिए और फिर हम ख़ुद को उन पैमानों पर ढालने की कोशिश करते हैं। क्यों महिलाओं को ख़ूबसूरत जैसे शब्द के भार से लादा जाए? हमें हर तरह की विविधता का सम्मान करना चाहिए।'
'अच्छा दिखना ज़रूरी है?'
नंदिता ने कहा कि गोरे रंग को ख़ूबसूरती का पैमाना बना दिया गया है। उन्होने पूछा, 'अच्छा दिखने में कोई बुराई नहीं कि लेकिन क्या यह आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए?'
बॉलीवुड अभिनेत्री ने लोगों के सामने कई विचारयोग्य सवाल खड़े किए। एक मौक़ा ऐसा आया, जब उन्होंने दर्शकों से पूछा, 'अगर सांवली महिलाएं प्रतिभाशाली न हों तो क्या वे कहीं टिकी रह सकती हैं? उनकी तुलना आप किसी गोरे रंग वाली महिला से करें और फिर सोचें। क्या सांवली महिलाएं सर्वाइव कर पाएंगी?'
2030 में महिलाओं की अगुआई वाले भविष्य को लेकर अपना विज़न रखते हुए नंदिता ने सबसे पहले पूर्वाग्रहों को दूर करने पर ज़ोर देते कहा कि महिलाओं को फ़ैसले लेने वाली भूमिका में आना होगा, मगर 'अंगूठा छाप' वाली संस्कृति ख़त्म करनी होगी। उन्होंने कहा कि अक्सर वे पुरुष नेता की पत्नी या रिश्तेदार के तौर पर सिर्फ़ परोक्ष रूप से ही ऐसी भूमिकाओं में दिखती हैं। उन्होंने इसके लिए पंचायती राज का उदाहरण दिया।
नंदिता ने यह भी कहा कि समाज में फैली नफ़रत और हिंसा को ख़त्म किया जाना चाहिए और ऐसे अधिकतर मामलों में पुरुषों का दोष ज़्यादा रहता है। उन्होंने कहा, 'लिंचिंग, युद्ध, रेप, दंगों और शोषण की भरमार है। अगर अधिक महिलाएं सक्रिय भूमिका में होंगी तो दुनिया में पहले से अधिक शांति होगी।'