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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 23 मई 2020 (07:42 IST)

कोरोना वायरस हमें असली 'हीरो' की पहचान करा पाएगा?

कोरोना वायरस हमें असली 'हीरो' की पहचान करा पाएगा? - Corona Virus helps US to find real hero
जोश सिम्स, बीबीसी वर्कलाइफ़
कोविड-19 दुनियाभर में विलेन बनकर आया है लेकिन इसका मुक़ाबला करने वाले भी मौजूद हैं। ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब ने अगली कतार में काम करने वालों को 'हीरो जैसा' कहा है।
 
एनर्जी नेटवर्क के रेडियो विज्ञापनों में "हेल्थकेयर हीरोज़" के प्रति समर्थन जताया गया है। थाईलैंड में कलाकारों ने उनके समर्थन में ऑनलाइन कैंपेन शुरू किया है।
 
अमेरिका में डेमोक्रेट्स ने आवश्यक सेवा में लगे कर्मचारियों के लिए "हीरोज़ फ़ंड" के नाम से प्रीमियम भुगतान योजना का प्रस्ताव रखा है।
 
कैलिफोर्निया की स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिटायर प्रोफ़ेसर फ़िलिप ज़िम्बार्डो ने इस पर नये सिरे से विचार करना शुरू किया है। वो एक मनोवैज्ञानिक हैं जो स्टैंडफोर्ड जेल के प्रयोग के लिए मशहूर हैं। इसमें छात्रों को एक बनावटी जेल के क़ैदी और जेलर की भूमिका दी जाती थी। उनके छात्रों ने अपनी भूमिका को ज़्यादा ही संजीदगी से लेना शुरू कर दिया था इसी वजह से इस प्रयोग को बंद करना पड़ा।
 
हीरो कौन हैं?
ज़िम्बार्डो बुरी प्रवृत्तियों के विशेषज्ञ माने जाते हैं लेकिन हाल में वो इसके विपरीत विषय पर सोच-विचार कर रहे हैं। इसने मनोविज्ञान के एक नये क्षेत्र की शुरुआत की है जिसे मोटे तौर पर "हीरो स्टडीज़" कहा जाता है।
 
ज़िम्बार्डो कहते हैं, "मैं नहीं जानता कि इस विषय पर पहले गहराई से विचार क्यों नहीं किया गया? हीरो होना इंसान के स्वभाव का सर्वश्रेष्ठ गुण है। हम सब इसे आदर्श मानते हैं।"
 
बेशक 'हीरो' शब्द के इस्तेमाल में अतिशयोक्ति होती है। इन दिनों मशहूर हस्तियों को भी हीरो समझ लिया जाता है। वो कहते हैं कि 'हीरो' शब्द की अहमियत कम हुई है। पड़ोसी के लिए राशन ख़रीदने वाले को भी हीरो कह दिया जाता है जबकि यह भलाई है।
 
ज़िम्बार्डो को लगता है कि कोविड संकट समाज के नायकों के बारे में पहले से ज़्यादा स्पष्टता लाएगा।
 
बुरे वक़्त के नायक
ज़िम्बार्डो हीरो जैसे काम की अपनी परिभाषा में स्पष्ट हैं। इसमें ख़ुद पर ख़तरा उठाते हुए अजनबियों के लिए काम करने की शर्त अनिवार्य है।
 
यह ख़तरा अपनी ज़िंदगी पर, अपने शरीर पर, परिवार पर, करियर पर या सामाजिक प्रतिष्ठा पर हो सकता है। इस परिभाषा के मुताबिक 'व्हिसलब्लोअर' भी हीरो हो सकते हैं।
 
ज़िम्बार्डो अपने क्षेत्र के दूसरे लोगों की तरह पेशेवरों और ग़ैर-पेशेवरों में अंतर करते हैं। किसी जलती हुई इमारत से बच्चे को बचाना दमकल कर्मचारियों का काम है, लेकिन अगर कोई राहगीर ऐसा करे तो वो हीरो है।
 
1904 में अमरीकी उद्योगपति एंड्रयू कार्नेगी ने यूएस कार्नेगी मेडल शुरू किया था। इस मेडल से असाधारण काम करने वाले नागरिकों को सम्मानित किया जाता है, न कि उनको जिनके लिए यह ड्यूटी है। तो सवाल है कि कोविड-19 संक्रमण के ख़तरे से लड़ रहे अगली कतार के योद्धाओं का क्या?
 
ज़िम्बार्डो कहते हैं, "आमतौर पर किसी मक़सद को साथ लेकर ज़िंदगी जीने वाले लोगों को हीरो कहा जाता है- जैसे मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला।"
 
"या फिर कोई एक बड़ा काम करने वाले को हीरो माना जाता है। अब शायद हम यह मानने लगे हैं कि ख़ुद के लिए ख़तरा उठाकर दूसरों की सेवा करने वाले को भी यह सम्मान मिलना चाहिए। स्वास्थ्यकर्मी इसी श्रेणी में आते हैं।"
 
स्वास्थ्यकर्मी अभी जिस जोखिम में काम कर रहे हैं ऐसा उनकी नौकरी के विवरण में कभी नहीं था। बड़ी बात ये है कि वे हर रोज़ ऐसा कर रहे हैं।
 
जोखिम उठाने की क्षमता
2012 का एक प्रयोग बताता है कि जो लोग ज़्यादा दर्द सहन करने के लिए तैयार थे, जैसे बांह को बर्फ़ीले पानी में डुबोकर रखना - उनको हीरो समझे जाने की संभावना ज़्यादा थी।
 
फ़िलाडेल्फ़िया की टेंपल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर फ्रैंक फ़ार्ले चरम व्यवहार के विशेषज्ञ हैं। उनका कहना है कि व्यक्तित्व एक अहम कारक है।
 
हीरो जैसे काम अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने की चाहत, ख़ुद पर मज़बूत विश्वास और रोमांचप्रेमी होने का परिणाम हो सकते हैं।
 
प्रोफ़ेसर फ्रैंक फ़ार्ले ऐसे लोगों को टी-टाइप व्यक्तित्व कहते हैं। वो कहते हैं, "हम अस्पतालों में काम करने वालों के जोखिम को नहीं देख पाते और उनके प्रति गंभीर नहीं होते, लेकिन अब आप चिकित्साकर्मियों के इन गुणों को देखिए। वो जोखिम उठाकर आईसीयू में काम कर रहे हैं।"
 
लेकिन प्रोफ़ेसर फ़ार्ले अब तक नहीं समझ पाए हैं कि मेडिकल स्टाफ़ के इस व्यवहार के पीछे की वजह क्या है। वो कहते हैं, "यह चकित कर देने वाली ख़ूबी है। वो मुश्किल हालात में प्रकाशस्तंभ की तरह हैं।"
 
अपनी सोच के दायरे से बाहर निकलना
ज़ोम्बार्डो का मानना है कि वैसे तो विरले लोग ही हीरो होते हैं, लेकिन हीरो की तरह व्यवहार करना सिखाया जा सकता है। वो 12 देशों में सेकेंडरी स्कूल की उम्र के बच्चों के साथ काम कर रहे हैं। वो उनको मानव मनोविज्ञान के बारे में बताते हैं जिससे वो समझ सकें कि क्यों कुछ लोग हीरो जैसे काम करते हैं जबकि दूसरे लोग ऐसा नहीं कर पाते।
 
वो उन्हें "बाईस्टैंडर इफ़ेक्ट" समझाते हैं जिसमें आमतौर पर हम मान लेते हैं इस समस्या से कोई और निपटेगा। "फ़ंडामेंटल एट्रिब्यूशन एरर" में हम यह सोच लेते हैं कि जो लोग किसी तरह मुश्किल में हैं वे इसी के हक़दार थे। हम जिनसे कम जुड़ाव महसूस करते हैं उनकी मदद करने के कम इच्छुक होते हैं।
 
हीरो जैसे काम के बारे में छात्रों को पढ़ाने के विचार को हीरो कंस्ट्रक्शन कंपनी के संस्थापक मैट लैंग्डन भी आगे बढ़ा रहे हैं। वो बोर्डरूम और क्लासरूम में एक जैसे विचार ले जाते हैं।
 
लैंग्डन का कहना है कि नायक का विचार सदियों से चली आ रही संस्कृति का मुख्य हिस्सा रहा है, लेकिन शायद पिछले कुछ दशकों में सुपर-हीरो वाली फ़िल्मों ने इसे नये सिरे से उभारा है।
 
लैंग्डन भी मानते हैं हीरो के बारे में हमारी सोच भ्रमित हो सकती है। मिसाल के लिए, हम उम्मीद करते हैं कि हमारा हीरो पवित्र हो। एक आदमी जो व्हेल का दांत लेकर आतंकी से निपटता है (पिछले साल लंदन में), वह ख़ुद हत्यारा कैसे हो सकता है?
 
लैंग्डन कहते हैं, "हीरो परिस्थितियों से निकलते हैं, वह अपने लिए परिस्थितियां नहीं बनाते। हो सकता है कि कइयों के लिए ऐसे काम करने का मौक़ा ज़िंदगी में कभी न आए।"
 
"हीरो ख़ास लोग नहीं होते। लेकिन वे अपनी उस सोच से बाहर आते हैं जो दूसरों को कुछ करने से रोक देता है।"
 
"अब हमारे पास मौक़ा है कि हम इसे नये सिरे से देखें। मिसाल के लिए, लोग नर्सों में हीरो नहीं देखते लेकिन इस वैश्विक महामारी ने हमें अलग तरीक़े से देखने के लिए प्रेरित किया है।"
 
हीरो की नई छवि
इलिनॉय की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफ़ेसर एलिस एग्ली हीरो के दायरे को व्यापक बनाना चाहती हैं।
 
उनके लिए हीरो सिर्फ़ वही नहीं हैं जिनके काम से सुर्खियां बनती हैं। वो मानती हैं कि कम चर्चित आम आदमी, जिनमें अक्सर महिलाएं होती हैं, वे भी हीरो हो सकते हैं।
 
वो कहती हैं कि उनके काम नाटकीय और क्षणिक नहीं होते बल्कि वे निजी स्तर पर निरंतर प्रतिबद्धता के साथ काम करते हैं।
 
वो कुछ बानगी बताती हैं जिनमें ऐसे लोग हैं जिन्होंने अनजान लोगों के लिए अपनी किडनी दान कर दी।
 
यकीनन इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को पीछे रखकर भी रोज़ाना संक्रमित मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं।
 
प्रोफ़ेसर एग्ली कहती हैं, "कुछ लोगों को कम क्रेडिट दिया जाता है क्योंकि यह उनके काम का हिस्सा समझा जाता है। जोखिम उनके लिए रुटीन की बात है। लेकिन मुझे लगता है कि इस वायरस ने ऐसे हालात बना दिए हैं जो रुटीन नहीं हैं।"
 
"इन ख़तरों में भी कुछ लोग हालात सामान्य करने में लगे हुए हैं जबकि हममें से ज़्यादातर लोग अपने घरों में सुरक्षित हैं। वे सचमुच हीरो हैं। हो सकता है कि अब कुछ काम जैसे नर्सिंग के बारे में हमारे ख़यालात पहले जैसे न रहें।"
 
ज़िम्बार्डो इससे सहमत हैं। वो कहते हैं कि महामारी का एक सकारात्मक परिणाम यह होगा कि हम सच्चे नायकों को पहचान पाएंगे जिन्हें हम यूं ही नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
 
वो कहते हैं, "20 साल पहले मैंने यह समझने के लिए एक प्रयोग किया था कि लोग ज़रूरत पड़ने पर दूसरों की मदद क्यों करते हैं या क्यों नहीं करते।"
 
"उस समय बहुत से लोगों ने मदद नहीं की थी। मैं वैसा ही प्रयोग फिर से करना चाहता हूं- क्योंकि मुझे लगता है कि अब मदद करने की दर बहुत ज़्यादा होगी।"
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