गुरुवार, 21 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. challenge in front of Mayawati BSP, why are MP leaving her one by one?
Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024 (08:43 IST)

उत्तर प्रदेश: मायावती की BSP के सामने चुनौती, क्यों बारी-बारी साथ छोड़ते जा रहे हैं सांसद

Mayawati
लोकसभा चुनाव 2024 में अब दो महीने से भी कम वक़्त रह गया है। ये कहा जाता है कि लोकसभा चुनावों में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में जिस राजनीतिक दल का पलड़ा भारी रहता है, वो दिल्ली में सरकार बनाने की रेस में आगे रहता है।
 
यूपी में इन चुनावों में एक तरफ़ बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए है। दूसरी तरफ अब इंडिया गठबंधन के दो प्रमुख सहयोगी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस साथ हैं। बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा प्रमुख मायावती ने इन चुनावों में अकेले लड़ने का फ़ैसला किया है।
 
लेकिन अब बसपा के सांसद मायावती का साथ छोड़ रहे हैं। तमाम तरह की अटकलों के बीच सांसदों ने धीरे-धीरे पाला बदलने की शुरुआत कर दी है।
 
बीते कई दिनों से रिपोर्टों में ये दावा किया जा रहा था कि मायावती या बीएसपी की ओर से किसी तरह का जवाब ना मिलने के कारण बसपा सांसद दूसरी पार्टियों के संपर्क में हैं। अब ये संपर्क संबंध बनने में तबदील हो चुका है।
 
पहले गाज़ीपुर से बसपा सांसद अफ़ज़ाल अंसारी को सपा ने टिकट दिया। अब अंबेडकर नगर से बसपा सांसद रितेश पांडे बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
 
अमरोहा से सांसद दानिश अली को बसपा पहले ही पार्टी से निकाल चुकी है। दानिश अली कई मौक़ों पर राहुल गांधी के क़रीब नज़र आए हैं और ये दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस दानिश अली को अमरोहा से टिकट दे सकती है। सवाल ये है कि आख़िर मायावती के सांसद सियासी पाला क्यों बदल रहे हैं?
 
रितेश पांडे ने क्यों छोड़ी बसपा?
रितेश पांडे ने रविवार को बसपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया। इस्तीफ़े को रितेश पांडे ने सोशल मीडिया पर साझा किया।
 
मायावती को लिखे पत्र में रितेश पांडे कहते हैं, ''लंबे समय से मुझे न तो पार्टी की बैठकों में बुलाया जा रहा है और न ही नेतृत्व के स्तर पर संवाद दिया जा रहा है। मैंने मुलाकात की कई कोशिशें कीं, कोई नतीजा नहीं निकला। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पार्टी को मेरी ज़रूरत नहीं रही। मैं प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा देता हूं और मैं पार्टी समेत आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूं। शुभकामनाएं।''
 
9 फरवरी को ही रितेश पांडे ने पीएम नरेंद्र मोदी संग मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की थी और भुज भूकंप से लेकर कोरोना जैसी महामारी से निपटने का श्रेय देते हुए पीएम मोदी की तारीफ़ की थी।
 
बीजेपी में शामिल होने के बाद रितेश पांडे ने कहा, ''बसपा में मैं पिछले 15 साल से था। मुझे बसपा से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मुझे जो कहना था, मैंने अपने इस्तीफ़े में कह दिया।''
 
रितेश पांडे के इस्तीफ़े के बाद मायावती ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की। मायावती के आधिकारिक हैंडल से लिखा गया, ''अब बसपा के सांसदों को इस कसौटी पर खरा उतरने के साथ ही ख़ुद जाँचना है कि क्या उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता का सही ध्यान रखा? क्या अपने क्षेत्र में पूरा समय दिया? साथ ही क्या उन्होंने पार्टी और आंदोलन के हित में समय-समय पर दिए गए दिशा-निर्देशों का सही से पालन किया है?''
 
मायावती लिखती हैं, ''ऐसे में अधिकतर लोकसभा सांसदों को टिकट दिया जाना क्या संभव है? ख़ासकर तब जब वे ख़ुद अपने स्वार्थ में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे हैं और नकारात्मक चर्चा में हैं। मीडिया के यह सब कुछ जानने के बावजूद इसे पार्टी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना अनुचित है। बसपा का पार्टी हित सर्वोपरि।''
 
कांग्रेस के संपर्क में सांसद?
अंबेडकर नगर के अलावा जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव के भी बसपा से अलग होने के कयास लगाए जा रहे हैं। ये दावा किया जा रहा है कि वो कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।
 
उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने इस बारे में रविवार को कहा, ''जौनपुर से बसपा के सांसद श्याम सिंह यादव राहुल गांधी जी का स्वागत करने आगरा में आ रहे हैं। कांग्रेस मजबूती के साथ खड़ी है। जो बीजेपी में जा रहे हैं वे पद के लालच में जा रहे हैं, वे सत्ता में जाना चाहते हैं। बसपा के जो लोग कांग्रेस के साथ आ रहे हैं वे संघर्ष करने और लड़ने के लिए आ रहे हैं।"
 
श्याम सिंह यादव दिसंबर 2022 में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल हुए थे। हालांकि बाद में यादव ने कहा कि वो निजी हैसियत से यात्रा में शामिल हुए थे।
 
कुछ दिन पहले 'द इंडियन एक्सप्रेस' अखबार ने भी एक रिपोर्ट में दावा किया कि यूपी में बसपा के 10 में से ज़्यादातर सांसद दूसरी पार्टियों के संपर्क में हैं।
 
अख़बार ने लिखा था कि ये सांसद मायावती और पार्टी की ओर से निष्क्रियता के चलते ख़फ़ा हैं। इन सांसदों को ये डर भी था कि लोकसभा चुनावों में उनको टिकट मिलेगा भी या नहीं।
 
यूपी में मायावती: आंकड़े किस ओर इशारा करते हैं?
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। 2012 के बाद से बसपा ढलान पर है। 2019 में 10 सीटें जीतकर मायावती ने अपनी ताक़त दिखाई थी। इस चुनाव में बसपा सपा के साथ गठजोड़ कर चुनावी मैदान में उतरी थी। 
 
2014 में बसपा जब अकेले लड़ी थी, तब वो एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद बसपा ने सपा से अपनी राहें अलग कर ली थीं और 2022 विधानसभा चुनावों में अकेले मैदान में थी।
 
इस चुनाव में बसपा सिर्फ़ एक सीट जीत सकी थी। 2024 चुनाव में यूपी में सपा 63 और कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है।
 
बसपा सांसदों को किस बात की है चिंता?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि बसपा के सांसदों को इस बात की चिंता है कि इस बार उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं।
 
अखबार सूत्रों के हवाले से लिखता है कि बसपा सांसदों से अब तक पार्टी नेतृत्व ने अब तक चुनावों के मद्देनज़र कोई संपर्क नहीं किया है। एक बसपा सांसद राष्ट्रीय लोकदल के संपर्क में है।
 
आरएलडी ने हाल ही में एनडीए में जाने का फ़ैसला किया था। पश्चिमी यूपी से एक और बसपा सांसद बीजेपी के संपर्क में हैं।
 
माना जाता है कि इस सांसद ने बीते साल घोसी सीट पर हुए उपचुनावों में बीजेपी की मदद की थी। हालांकि ये सीट सपा के पास चली गई थी। एक और सांसद के सहयोगियों ने बताया है कि वो बीजेपी की पुष्टि का इंतज़ार कर रहे हैं और वो अपना ही संगठन बनाने की दिशा में बढ़े हैं।
 
बसपा के आलोचक अक्सर ये कहते हैं कि मायावती ज़मीन पर वैसे नहीं दिखती हैं, जैसे बाकी राजनीतिक दल दिखते हैं।
 
लोकसभा चुनाव 2024 में मायावती का रुख़
लोकसभा चुनाव 2024 में मायावती ने अकेले लड़ने का फ़ैसला किया है। मायावती ने कहा कि गठबंधन में चुनाव लड़ने से बसपा को नुकसान होता है। मायावती ने बीजेपी और कांग्रेस पर दलितों के लिए काम ना करने का आरोप भी लगाया था।
 
बसपा अकेले लड़कर सिर्फ़ 2007 में जीत सकी थी। जानकारों का कहना है कि बसपा सिर्फ अब तभी जीत सकती है, जब वो अपने पारंपरिक वोट बैंक से अलग जाकर वोटर्स तक पहुंचे।
 
2022 विधानसभा चुनावों में बसपा सिर्फ़ एक सीट जीत सकी थी और उसका वोट शेयर बस 12 फ़ीसदी तक का था।
 
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान ने बीबीसी से कहा था, ''1980 के दशक के बाद से देखा जा रहा है कि बसपा किस तरह का मौकापरस्त राजनीति करती आ रही है।''
 
शरत प्रधान ने कहा था, ''बसपा कब किससे पल्ला झाड़ ले और किसके साथ मिल कर सरकार बना ले, कहा नहीं जा सकता। मायावती के साथ ना आने से मुकाबला त्रिकोणीय भी हो जाता है तो इंडिया अलायंस को कोई नुकसान नहीं होगा।''
 
प्रधान के मुताबिक, ''इंडिया गठबंधन वालों को खुश होना चाहिए कि मायावती उनके साथ नहीं आ रही हैं। इसमें वो शामिल होतीं तो मायावती को फायदा होता, इंडिया गठबंधन को नुकसान।''
 
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता ने बीबीसी से कहा था, ''2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को दस सीटों पर जीत मिली थी, जबकि समाजवादी पार्टी की पांच सीटें आई थीं। 2014 के चुनाव बसपा अकेले लड़ी थी और वो एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। इसलिए उनका ये कहना गलत है कि बसपा का वोट ट्रांसफर होता है दूसरों का नहीं। ऐसा नहीं होता तो बसपा शून्य से दस सीटें पर नहीं पहुंचती।''
कॉपी: विकास त्रिवेदी
ये भी पढ़ें
मध्यप्रदेश में भाजपा के 12 सांसदों के टिकट पर चलेगी कैंची, नए चेहरों पर पार्टी लगाएगी दांव