-दिनेश उप्रेती (बीबीसी संवाददाता)
Anil Ambani: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 13-14 जुलाई को फ्रांस की 2 दिनों की यात्रा पर रहेंगे। उन्हें फ्रांस की राष्ट्रीय परेड में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ इस यात्रा के दौरान मोदी एक और बड़ा रक्षा सौदा कर सकते हैं जिसमें नौसेना के लिए राफेल-एम की ख़रीद भी शामिल है। यह वही कंपनी है जिससे भारत ने वायुसेना के लिए 36 राफेल ख़रीदे थे।
दरअसल, राफेल को बनाने वाली कंपनी डसॉ एविएशन ने साल 2017 में अनिल अंबानी के मालिकाना हक़ वाली रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को अपना ऑफ़सेट साझेदार बनाया था। हालांकि इसको लेकर तब भी सवाल उठाए गए थे। विपक्ष ने ज़ोर-शोर से ये मुद्दा उठाया था और कहा था कि ऐसे वक़्त में जब अनिल अंबानी समूह की अधिकतर कंपनियां बर्बादी की ओर बढ़ रही हैं और उन्हें डिफेंस कारोबार का बहुत तजुर्बेकार भी नहीं कहा जा सकता, फिर उनके साथ 30 हज़ार करोड़ रुपए का क़रार क्यों किया जा रहा है?
कभी दुनिया के शीर्ष 10 अरबपतियों में शामिल अनिल अंबानी इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। कम्युनिकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली उत्पादन और सप्लाई, पोत निर्माण, होम फाइनेंस जैसे तमाम धंधों में कभी अपना परचम लहराने वाले अनिल अंबानी कर्ज़ के ऐसे जंजाल में फंसे हैं कि उनकी कई कंपनियां कंगाल हो चुकी हैं और कई औने-पौने दामों पर बिक चुकी हैं।
रिलायंस कैपिटल की नीलामी प्रक्रिया में जाने के बाद उनकी एक और कंपनी है जो कंगाली की राह पर है, नाम है रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड (आरएनईएल)। ये वही कंपनी है जिसके ज़रिये अनिल अंबानी ने डिफेंस सेक्टर में क़दम रखा था। आरएनईएल की पैरेंट कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर है।
दरअसल, अनिल अंबानी समूह ने साल 2015 में पीपावाव डिफेंस एंड ऑफ़शोर इंजीनियरिंग लिमिटेड को ख़रीदा था। इसके बाद कंपनी का नाम बदलकर रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड कर दिया गया। राफेल डील इस ग्रुप का पहला बड़ा सौदा था।
फ्रांसीसी कंपनी डसॉ ने रिलायंस के साथ एक जॉइंट वेंचर शुरू किया। कंपनी का नाम था डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड। इसमें रिलायंस की हिस्सेदारी 51 फ़ीसदी थी जबकि दसॉ का हिस्सा 49 फ़ीसदी था।
कंपनी ने नागुपर के मिहान स्थित स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन में फैक्ट्री भी लगा ली और दावा है कि चरणबद्ध तरीक़े से लड़ाकू जहाज़ों के कल-पुर्जे यहां तैयार किए जा रहे हैं।
लेकिन अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस नेवल डिफेंस एंड इंजीनियरिंग भी कर्ज़ के दलदल में फंस चुकी है और कर्ज़ नहीं चुकाने पर कुछ पक्ष (लेनदार) उन्हें नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी खींच ले गए हैं।
एनसीएलटी की अहमदाबाद विशेष पीठ ने नीलामी की प्रक्रिया को मंज़ूरी दे दी है।
स्वान एनर्जी के नेतृत्व वाली हेज़ल मर्केंटाइल कंसोर्टियम अनिल अंबानी की इस कंपनी को ख़रीदने की दौड़ में सबसे आगे है और इसने 2,700 करोड़ रुपए की बोली लगाई है।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी की शेयरहोल्डिंग के मुताबिक़ मार्च 2023 तक आरएनईएल में प्रमोटर्स (अनिल अंबानी) की कोई हिस्सेदारी नहीं थी, जबकि इसमें सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी का 7।93 फ़ीसदी हिस्सा था।
विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास भी आधा फ़ीसदी के क़रीब हिस्सेदारी थी। बाक़ी के शेयर आम निवेशकों के पास थे। मतलब साफ़ है कंपनी के डूबने से सबसे ज़्यादा चपत आम निवेशकों और एलआईसी को लगने वाली है।
आरएनईएल ने साल 2022 की जुलाई-सितंबर तिमाही के जो आंकड़े बीएसई को उपलब्ध कराए थे, उनके मुताबिक़ कंपनी की आय सिर्फ़ 68 लाख रुपए थी। इसी अवधि में कंपनी ने अपना कुल घाटा 527 करोड़ रुपए बताया था।
19 अप्रैल 2023 की एक्सचेंज फाइलिंग में कंपनी ने 2021-22 के नतीजे बताए थे। इसके मुताबिक़ साल भर में कंपनी की आय 6 करोड़ 32 लाख रुपए रही, जबकि कुल घाटा 2086 करोड़ रुपए का था।
जॉइंट वेंचर का क्या होगा?
अनिल अंबानी समूह की कंपनियों पर क़रीबी नज़र रखने वाले और शेयर बाज़ार विश्लेषक अविनाश गोरक्षकर का कहना है कि आरएनईएल के दिवालिया हो जाने का असर निश्चित तौर पर भारत-फ्रांस के जॉइंट वेंचर डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड पर भी पड़ेगा।
अविनाश कहते हैं, 'जॉइंट वेंचर क्योंकि लगभग बराबरी का है यानी दोनों कंपनियों को निवेश भी बराबरी का ही करना है। ऐसे में डसॉ तो अपना हिस्सा निवेश करेगी, लेकिन अनिल अंबानी के हिस्से का क्या होगा।'
साल 2020 में चीन के बैंकों के क़र्ज़ से जुड़े विवाद पर इंग्लैंड के हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अनिल अंबानी ने माना था कि वह दिवालिया हैं और कर्ज़ चुकाने में असमर्थ हैं।
अनिल के वकील ने अपनी दलील में कहा था, 'अनिल अंबानी की नेटवर्थ ज़ीरो है, वे दिवालिया हैं। इसलिए बकाया नहीं चुका सकते। परिवार के लोग भी उनकी मदद नहीं कर पाएंगे।'
इस हाल में जबकि अनिल अंबानी पैसे की तंगी के कारण एक के बाद एक अपनी जमी-जमाई कंपनियों से हाथ धो रहे हैं, वो कैसे राफेल के लिए बने जॉइंट वेंचर्स को चला पाएंगे।
रिसर्च एनालिस्ट आसिफ़ इक़बाल का मानना है कि क्योंकि तकनीकी रूप से डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की सब्सिडियरी है, ऐसे में हो सकता है कि जॉइंट वेंचर्स की शर्तें कुछ अलग हों और ये साझा उपक्रम चलता रहे।
हालांकि वह मानते हैं कि अनिल अंबानी ग्रुप की खस्ता माली हालत को देखते हुए ये उपक्रम शायद ही 'मेक इन इंडिया' के उस मक़सद को पूरा कर पाए जिसके लिए इसे शुरू किया गया था।
आसिफ़ कहते हैं, 'रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की ऑफ़िशियल वेबसाइट पर भी इस जेवी के फाइनेंशियल स्टेटमेंट अपडेट नहीं हैं। आख़िरी बार साल 2019 में वहां फाइनेंशियल स्टेटमेंट जारी किया गया था।'
इस स्टेटमेंट में बताया गया था कि 31 मार्च 2019 तक डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड की कुल वित्तीय देनदारियां 142 करोड़ रुपए से अधिक थी जबकि ठीक 1 साल पहले 31 मार्च 2018 को ये आंकड़ा 38 करोड़ 81 लाख रुपए का था।
भारत में अंबानी परिवार सबसे रईस है, लेकिन भारत के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल की कहानी उनसे काफ़ी अलग है।
मुकेश विवादों को अपने पास भी नहीं फटकने देते जबकि अनिल कई बार विवादों में फंस चुके हैं।
अनिल अंबानी को क़रीब से जानने वाले आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि उनकी इस हालत की वजह वित्तीय कुप्रबंधन है।
बंटवारे के बाद उन्हें जो कंपनियां मिली थीं, उनकी तरक्की पर ध्यान देने के बजाय वो नए धंधों में पैसा झोंकते रहे। यह उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ।
नई कंपनियां निवेशकों का भरोसा नहीं जीत पाईं और पहले से स्थापित कंपनियां पटरी से उतरने लगीं। नतीजा ये हुआ कि छोटे अंबानी कर्ज़ के मकड़जाल में फंसते चले गए।
बात 2007 की है, अंबानी बंधुओं यानी मुकेश और अनिल में बंटवारे को 2 साल हो गए थे।
उस साल की फ़ोर्ब्स की अमीरों की सूची में दोनों भाई, मुकेश और अनिल मालदारों की लिस्ट में काफ़ी ऊपर थे। बड़े भाई मुकेश, अनिल से थोड़े ज़्यादा अमीर थे। उस साल की सूची के मुताबिक़ अनिल अंबानी 45 अरब डॉलर के मालिक थे और मुकेश 49 अरब डॉलर के।
2007-2008 की मंदी ने तमाम उद्योपतियों को झटका दिया जिनमें मुकेश अंबानी भी शामिल थे, उनकी दौलत में तकरीबन 60 प्रतिशत की गिरावट आई लेकिन वे इस मुश्किल वक़्त से निकल आए और अपनी पुरानी पोज़िशन के नज़दीक पहुंच गए और अब लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
इसके उलट, 2008 में कई लोगों का मानना था कि छोटा भाई अपने बड़े भाई से आगे निकल जाएगा, ख़ास तौर पर रिलायंस पावर के पब्लिक इश्यू के आने से पहले। रिलायंस पावर का इश्यू कई मायनों में ऐतिहासिक था और एक मिनट से भी कम समय में पूरा सब्सक्राइब हो गया था।
माना जा रहा था कि उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना के एक शेयर की कीमत एक हज़ार रुपए तक पहुंच सकती है, अगर ऐसा हुआ होता तो अनिल वाक़ई मुकेश से आगे निकल जाते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अनिल अंबानी का कोई भी धंधा पनप नहीं पाया। उनके ऊपर भारी कर्ज़ है। अब वे कुछ नया शुरू करने की हालत में नहीं हैं। वे अपने ज़्यादातर कारोबार या तो बेच रहे हैं या फिर समेट रहे हैं।