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Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 13 नवंबर 2021 (08:17 IST)

अमित शाह का वाराणसी दौरा विधानसभा चुनाव के लिए कितना अहम?

अमित शाह का वाराणसी दौरा विधानसभा चुनाव के लिए कितना अहम? - Amit Shah varansi tour before UP assembly election
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता
बात उस समय की है जब 2014 के लोकसभा चुनाव में बतौर पार्टी के महासचिव अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावों की रणनीति की कमान संभाली थी। और जब इसके परिणाम सामने आए तो बीजेपी ने राज्य की 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल कर ली।
 
चुनावों की रणनीति बनाने के लिए अमित शाह का लोहा माना जाता रहा है। और फिर 2017 में राज्य विधानसभा चुनावों की रणनीति बनाने का ये परिणाम हुआ कि बीजेपी ने अपने सभी विपक्षी दलों का सफ़ाया कर दिया।
 
वो बात और है कि चुनावी नतीजों के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता मनोज सिन्हा का उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय हो गया था। लेकिन ऐन वक़्त पर योगी आदित्यनाथ राज्य में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता बनकर सामने आ गए। ऐसे में मुख्यमंत्री के रूप में उनके नाम पर मुहर लगाना पार्टी के आलाकमान के लिए बाध्यता सी हो गई।
 
जानकार मानते हैं कि 2014 के लोकसभा और 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और उनकी लोकप्रियता पर बीजेपी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती चली गयी।
 
वहीं 2019 में हुए लोकसभा के चुनावों में पार्टी के प्रचार में योगी आदित्यनाथ का भी चेहरा सामने आ गया, जो तब तक राज्य के सर्वमान्य नेता के रूप में ख़ुद को स्थापित कर चुके थे।
 
इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों के लिए पार्टी की रणनीति आख़िर क्या होगी? इसे लेकर अमित शाह ने शुक्रवार से अपना दो दिवसीय कार्यक्रम शुरू किया है।
 
इसमें सबसे अहम कार्यक्रम वाराणसी में प्रदेश के क़रीब 700 वरिष्ठ नेताओं, ज़िला अध्यक्षों और कार्यकर्ताओं के साथ रणनीति को लेकर हो रही चर्चा को ही माना जा रहा है। इस कार्यक्रम में राज्य के 403 विधानसभा सीटों के प्रभारी नेताओं की उपस्थिति भी बहुत मायने रखती है।
 
अमित शाह ने क्यों संभाली कमान?
वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनावी क्षेत्र है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी के आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने की शुरुआत यहीं से होने के संकेत भी साफ़ हैं।
 
हाल ही में अपने लखनऊ के दौरे के क्रम में अमित शाह ने कहा था, "मोदी जी को यदि 2024 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाना है, तो 2022 में फिर एक बार योगी जी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा।"
 
अमित शाह का इशारा साफ़ था और जानकारों का कहना है कि उन्होंने इसलिए ही चुनावी रणनीति की कमान फिर से अपने हाथों में ले ली है।
 
हालांकि, उनका अभी का ये दौरा पूर्वी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है, जो चुनावी रणनीति के हिसाब से इसलिए भी अहम हैं क्योंकि ये इलाक़ा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है।
 
अमित शाह इस दौरान समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में एक जनसभा करेंगे। इस दौरे की फ़ेहरिस्त में बस्ती और गोरखपुर भी शामिल हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं।
 
मूलतः गुजरात के रहने वाले और वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी के संगठन प्रभारी सुनील ओझा, गृह मंत्री अमित शाह के दौरे को लेकर काफ़ी व्यस्त हैं।
 
मगर इसी दौरान समय निकलकर बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि "2014 के आम चुनाव हों, या 2017 के विधानसभा चुनाव या फिर 2019 के लोकसभा चुनाव, अमित शाह ने काशी को ही अपना ठिकाना बनाया और यहीं से उत्तर प्रदेश के लिए रणनीति तैयार की जिसके परिणाम सबके सामने हैं।"
 
ओझा का कहना है कि ठीक चुनावों से पहले वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मुलाक़ात नई ऊर्जा भरने का काम करती है। पूछे जाने पर वो कहते हैं कि पूर्वांचल में पिछले विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा। इसलिए अमित शाह के चुनावी दौरे की औपचारिक शुरुआत इन्हीं इलाक़ों से हुई है।
 
कांग्रेस का दावा, पश्चिम में बीजेपी की हालत ख़राब
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट से सांसद रह चुके कांग्रेस नेता राजेश मिश्र का दावा है कि पूर्वांचल पर इसलिए ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की हालत ठीक नहीं है।
 
बीबीसी से बात करते हुए मिश्र कहते हैं कि पिछले तीनों चुनावों की तुलना में बीजेपी के सामने इस बार काफी चुनौतियां हैं।
 
उनका कहना था, "कोरोना का कुप्रबंधन, महंगाई, बेरोज़गारी और बढ़ते अपराध ऐसे मुद्दे हैं, जो इस बार के चुनावों में भाजपा का पीछा नहीं छोड़ने वाले। इस बार भाजपा को पाने के लिए कुछ नहीं है, बल्कि चुनौती ये है कि जो सीटें हैं उन्हें कैसे बचाया जाए।"
 
मिश्र कहते हैं कि जिस 'टीएफसी' प्रांगण में अमित शाह वरिष्ठ नेताओं से संवाद कर रहे है, वहां तक जाने के लिए सड़क ही ठीक नहीं है और उन्हें रिंग रोड के ज़रिए ही जाना पड़ रहा है।
 
'गृह मंत्री स्टार्ट करेंगे, गाड़ी आदित्यनाथ ही चलाएंगे'
राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त वरिष्ठ नेता और विधायक दयाशंकर मिश्र दयालु कहते हैं कि पूर्वांचल एक तरह से बंजर में तब्दील हो गए इलाक़े जैसा हो गया था, जिसमें जान डालने का काम भारतीय जनता पार्टी और ख़ास तौर पर योगी आदित्यनाथ ने किया।
 
बीबीसी से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चूँकि काशी में ही पूर्वांचल की आत्मा बसती है, इसलिए अमित शाह ने चुनावी रणनीति बनाने के लिए हमेशा इस भूमि को चुना।
 
दयालु का दावा है कि पिछले पांच साल में योगी आदित्यनाथ ने ख़ुद को एक बेहतर प्रशासक के रूप में स्थापित किया, इसलिए अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के चेहरों को सामने रखकर चुनाव लड़ा जा रहा है। अमित शाह के दौरे का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं कि ''गृह मंत्री स्टार्ट बटन दबाने आए हैं, जबकि गाड़ी का स्टीयरिंग योगी आदित्यनाथ को ही संभालना है।"
 
मगर समाजवादी पार्टी के आनंद मोहन का दावा है कि इस बार भाजपा के खेमे में असहजता इसलिए भी बढ़ गयी है, क्योंकि समाजवादी पार्टी ने ओम प्रकाश राजभर, जयंत चौधरी और दूसरे छोटे दलों के साथ जो गठबंधन किया, उससे विधानसभा के चुनावों पर असर तो पड़ेगा ही।
 
वाराणसी की रोहनिया सीट से भाजपा के विधायक सुरेन्द्र नारायण सिंह नहीं मानते कि समाजवादी पार्टी के गठबंधन से भाजपा को कोई फ़र्क पड़ेगा। उनका कहना है कि सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर का रहा है, जो दशकों से लंबित रहा है, जिसे योगी आदित्यनाथ ने आते ही पूरा कर दिया। इसलिए वो दावा करते हैं कि अमित शाह के साथ संवाद ये तय करने का काम करेगा कि राज्य सरकार की पिछले पांच सालों की उपलब्धियों को किस तरह जनता के समक्ष ले जाया जाए।
 
लेकिन दबी जुबां से कई नेता ये भी कह रहे हैं कि पहले की तुलना में इस बार संगठन के अंदर की कलह चरम पर है। अमित शाह का ये दौरा उस आपसी कलह को ख़त्म करने के दृष्टिकोण से भी अहम माना जा रहा है।
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