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  4. After Chandrayaan-3 will ISRO be able to send astronauts in Chandrayaan-4
Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 22 अगस्त 2023 (07:51 IST)

चंद्रयान-3 के बाद इसरो चंद्रयान-4 में क्या अंतरिक्ष यात्री भेज पाएगा?

Chandrayaan 3
श्रीकांत बक्शी, बीबीसी संवाददाता
Chandrayaan news in hindi : चंद्रमा या मंगल पर कोई मानव निर्मित उपग्रह भेजने की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती संबंधित ग्रह या उपग्रह की गुरुत्वाकर्षण कक्षा में प्रवेश करना होती है। यह चुनौती इतनी बड़ी थी कि शुरुआती दिनों में अमेरिका और रूस के 14 अभियानों को चंद्रमा पर उपग्रह भेजने में नाकामी हासिल हुई थी और 15वीं बार वे कामयाब हुए थे।
 
इस लिहाज़ से देखें तो भारत का चंद्रयान-1 अभियान बहुत कामयाब रहा। इसरो ने पहले ही प्रयास में इस चुनौती को पार कर लिया।
 
अब इसरो चंद्रयान-3 के माध्यम से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश कर रहा है, जहां अभी तक कोई मानव निर्मित उपग्रह नहीं पहुंच सका है।
 
पहले ही प्रयास में इसरो को मिली सफलता
नासा की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक़, अपोलो-11 मिशन के ज़रिए पहली बार चंद्रमा की सतह पर इंसानों के क़दम पड़े थे, उससे पहले भी अमेरिका ने अंतरिक्ष यात्रियों को इस मिशन में भेजा था।
 
25 दिसंबर, 1968 को, फ्रैंक बोरमैन, बिल एंड्रेस और जिम लोवेल को लेकर अपोलो 10 अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया और वापस लौट आया। वे चंद्रमा पर नहीं उतरे, इसलिए इस प्रयोग की जानकारी दुनिया को नहीं हो पाई।
 
अपोलो-11 के ज़रिए फिर से तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजा गया जिसमें नील आर्मस्ट्रांग, माइकल कॉलिंस और बज़ एल्ड्रिन सवार थे।
 
नील आर्मस्ट्रांग 21 जुलाई, 1969 को चंद्रमा की सतह पर क़दम रखने वाले पहले इंसान बने। कुछ मिनटों के बाद बज़ एल्ड्रिन भी उनके साथ हो गए। इस दौरान माइकल कॉलिंस चंद्रमा की कक्षा में यान उड़ाते रहे।
 
14 नवंबर, 1969 को अपोलो-12 रॉकेट ने तीन और अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजा। इसके बाद 7 दिसंबर 1972 को अपोलो-17 ने आख़िरी बार तीन अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजा।
 
इन तीन सालों में नासा ने 12 अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजा। इसके बाद इंसानों को चांद पर भेजने के प्रयोग बंद कर दिए गए। हालांकि, इन सफलताओं के साथ-साथ नासा को कई असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। 
 
21 फरवरी, 1967 को नासा का अपोलो-1 प्रक्षेपण के लिए तैयार था। लेकिन रिहर्सल परीक्षण के समय केबिन में आग लग गई और रॉकेट फट गया। इस दुर्घटना में दो अंतरिक्ष यात्रियों और चालक दल के 27 सदस्यों की मौत हो गई। वहीं, दूसरी ओर इसरो न्यूनतम लागत के साथ अपने शुरुआती प्रयासों में ही काफ़ी सफल रहा है।
 
चंद्रयान-3 के बाद क्या होगा?
इसरो अपने चंद्रयान का प्रयोग केवल चंद्रमा पर रोवर और लैंडर भेजने के लिए नहीं कर रहा है। इसका लक्ष्य भी अन्य मिशन की तरह चांद पर इंसानों को उतारना ही है। लेकिन, इसे हासिल करना इतना आसान नहीं है।
 
इसरो की रॉकेट और इंजन की मौजूदा क्षमता इसको हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसीलिए इसरो हर चरण की सफलता के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है।
 
चंद्रयान-1 में ऑर्बिटर और मून इम्पैक्ट प्रोब लॉन्च किया गया। फिर चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ लैंडर और रोवर भी भेजे गए थे। जबकि चंद्रयान-3 में सिर्फ़ लैंडर और रोवर भेजा गया। इस प्रयोग में चंद्रयान-2 में इस्तेमाल किए गए ऑर्बिटर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
चंद्रयान-3 की सफलता और जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर चंद्रयान-4 उसके बाद प्रयोग जारी रखेगा। यदि ये सभी सफल रहे तो अगले मिशनों में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने की कोशिश होगी।
 
इस दिशा में कुछ और प्रयोग पहले से ही चल रहे हैं। इसरो का आगामी गगनयान भी इसी का हिस्सा है।
 
उल्लेखनीय है कि भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा, रूस के सोयूज़ टी-11 अंतरिक्ष यान से तीन अप्रैल, 1984 को अंतरिक्ष में गए और करीब आठ दिन तक अंतरिक्ष में रहे।
 
बहरहाल, अब इसरो दूसरे देशों की मदद से नहीं बल्कि पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान प्रयोग करने की तैयारी में है।
 
गगनयान प्रयोग में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से 400 कि।मी। की ऊंचाई तक ले जाने और तीन दिनों तक उन्हें वहां रख कर, वापस लाने की परिकल्पना की गई है।
 
अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी की चुनौती
चंद्रयान प्रयोगों में अब तक इस्तेमाल किए गए ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर्स को पृथ्वी पर वापस नहीं लाया जाएगा।
लेकिन अगर अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजा जाता है, तो उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की चुनौती होगी।
 
इसके लिए नासा के मॉडल के मुताबिक क्रू मॉड्यूल बनाये जाने की ज़रूरत है। इतना नहीं कम से कम समय में चंद्रमा तक पहुंचने के लिए विशाल रॉकेट भी बनाने होंगे।
 
चंद्रमा पर उतरने के लिए मानवयुक्त लैंडर भेजना होता है और अगर लैंडर को धरती पर लौटना है तो चंद्रमा की कुछ ऊंचाई पर एक कमांड मॉड्यूल भी होना चाहिए।
 
इस कमांड मॉड्यूल से लैंडर चंद्रमा पर उतरेगा और अंतरिक्ष यात्री वहां शोध करने के बाद उसी लैंडर मॉड्यूल में चंद्रमा की सतह पर कमांड मॉड्यूल पर लौट आएंगे। फिर कमांड मॉड्यूल को पृथ्वी पर वापस लाया जाता है।
 
ये सभी प्रयोग दस दिन के अंदर करने की चुनौती भी होती है। इसके लिए उन्नत तकनीक और विशाल रॉकेट की आवश्यकता होती है। चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है। अंतरिक्ष में तापमान भी बहुत कम हो जाता है। यानी वहां भी रॉकेट को चलाने के लिए क्रायोजेनिक इंजन डिजाइन करना होगा।
 
इन सबके अलावा, प्रक्षेपण के दौरान अप्रत्याशित त्रुटियों के मामले में अंतरिक्ष यात्रियों वाले क्रू मॉड्यूल की सुरक्षा के लिए एक ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ भी तैयार किया जाता है। इन सबके साथ अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर वापस लाने वाला क्रू मॉड्यूल भी तैयार किया जाना चाहिए।
 
यह सब हासिल करना चंद्रयान-3 और उसके बाद के प्रक्षेपणों की सफलता पर निर्भर करता है। यदि चंद्रयान-3 सफल होता है और उसके बाद के प्रयोग भी योजनाबद्ध स्तर पर सफल होते हैं, तो इसरो चंद्रयान-10 या 11 में चंद्रमा के साथ अंतरिक्ष मिशन को अंजाम देने और चंद्रमा पर इंसानों को भेजने में सक्षम होगा।
 
इसरो को भी बड़े रॉकेट की ज़रूरत है
अपोलो-11 को चार दिनों में चंद्रमा पर ले जाया गया, जहां अपोलो-11 ने ईगल लैंडर को चंद्रमा पर उतारा, और अंतरिक्ष यात्रियों के चंद्रमा पर उतरने और शोध करने के बाद, लैंडर ऑर्बिटर तक पहुंचने और वापस लौटने के लिए इसे बहुत अधिक ईंधन की आवश्यकता हुई।
 
भविष्य में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के इसरो के मिशनों में ऐसे विशाल रॉकेट और भारी ईंधन की आवश्यकता होगी। ज़ाहिर है चंद्रयान-3 की कामयाबी इसी दिशा में इसरो का कद़म होगा।
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