4 और 5 नवंबर 2023 को पुष्य नक्षत्र, शनि पुष्य योग क्यों है महत्वपूर्ण
400 साल बाद शनि और रवि पुष्य नक्षत्र पर दुर्लभ योग, अष्ट महायोग
Diwali shani ravi Pushya yog 2023 : ज्योतिष मान्यता के अनुसार दिवाली के पहले 400 बाद ऐसा महासंयोग बन रहा है जबकि दो दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा और वह भी शनि पुष्य और रवि पुष्य योग का शुभ दिन रहेगा। 4 नवंवबर शनिवार को शनि पुष्य योग और 5 नवंबर रविवार को रवि पुष्य योग रहेगा। आओ जानते हैं कि शनि पुष्य नक्षत्र योग क्यों महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
4 नवंबर 2023 शनिवार को शनि पुष्य नक्षत्र योग क्यों है महत्वपूर्ण?
इस दिन हर्ष, सरल, शंख, लक्ष्मी, शश, साध्य, मित्र और गजकेसरी योग सहित अष्ट महायोग बन रहे हैं।
इस दिन अभिजीत मुहूर्त भी रहेगा।
पुष्य नक्षत्र पर बृहस्पति (गुरु), शनि और चंद्र का प्रभाव होता है।
पुष्य नक्षत्र को शनि का नक्षत्र माना जाता है और इसका शनिवार के दिन आना बहुत शुभ होता है।
इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जिसका कारक सोना है। स्वामी शनि है अत: लोहा और चंद्र का प्रभाव रहता है इसलिए चांदी खरीदते हैं।
स्वर्ण, लोहा या वाहन आदि और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है।
4 नवंबर 2023 के शुभ मुहूर्त:
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:42 से दोपहर 12:26 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 01:54 से दोपहर 02:38 तक।
त्रिपुष्कर योग : सुबह 06:35 से 07:57 तक।
रवि योग : सुबह 06:35 से 07:57 तक।
साध्य योग: प्रात:काल से दोपहर 01:03 बजे तक।
शुभ योग: दोपहर 01:03 बजे से रात तक।
5 नवंबर 2023 के शुभ मुहूर्त:
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:43 से दोपहर 12:26 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:54 से दोपहर 02:38 तक।
रवि पुष्य योग: प्रात: 06:36 से सुबह 10:29 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रात: 06:36 से सुबह 10:29 तक।
शुभ योग: प्रात:काल से लेकर दोपहर 01:37 बजे तक।
शुक्ल योग: दोपहर 01:37 बजे से अगले दिन दोपहर तक।
इसके अलावा इस दिन वाशि, सरल, श्रीवत्स, अमला और गजकेसरी योग बन रहे हैं।
पुष्य नक्षत्र का महत्व : वर्ष के सभी पुष्य नक्षत्रों में कार्तिक पुष्य नक्षत्र (Kartik pushya nakshatra) का विशेष महत्व है, क्योंकि इसका संबंध कार्तिक मास के प्रधान देवता भगवान लक्ष्मी नारायण से है। इसीलिए दिवाली पूर्व आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे खास और अत्यंत लाभकारी माना जाता है। भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से प्रकृति से जुड़कर दैनिक प्रक्रिया करने की सलाह देती है। पुष्य को ऋग्वेद में वृद्धिकर्ता, मंगलकर्ता, एवं आनंदकर्ता कहा गया है।