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Last Updated : शनिवार, 13 अगस्त 2022 (22:34 IST)

आजादी के समय क्रांतिकारी जिस पुस्तकालय में तय करते थे रणनीति, आज वही अपने अस्तित्व की लड़ रहा लड़ाई

आजादी के समय क्रांतिकारी जिस पुस्तकालय में तय करते थे रणनीति, आज वही अपने अस्तित्व की लड़ रहा लड़ाई - The library in which the revolutionaries used to decide the strategy at the time of independence, today the same library is fighting for its existence
प्रयागराज। 15 अगस्त 2022 को आजादी के 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं और पूरे देश व प्रदेश में जोरशोर के साथ जश्न चल रहा है और हर घर तिरंगा फहराने की मुहिम में केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार के साथ-साथ आम लोग भी जुटे हुए हैं।हम आपको प्रयागराज में स्थित एक ऐसे पुस्तकालय के बारे में बताने जा रहे हैं जिस पुस्तकालय का आजादी की लड़ाई में बेहद बड़ा योगदान रहा है लेकिन आज वही अपनों की अनदेखी के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।

क्रांतिकारी लेते थे किताबों का सहारा : 15 अगस्त 2022 को आजादी के 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे। युवा पीढ़ी को यह बताना बेहद जरूरी है कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों ने न सिर्फ हथियारों का सहारा लिया था बल्कि आजादी की इस लड़ाई को लड़ने के लिए वे किताबों का भी सहारा लेते थे।जिसके चलते 1889 में स्थापित भारती भवन पुस्तकालय में क्रांतिकारी अंग्रेजों से छिपकर गुप्त मंथन करते थे। अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों से तथ्य एकत्र कर क्रांतिकारियों तक पंहुचाई जाती थी।

पुस्तकालय में क्रांतिकारी अध्ययन के साथ अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तय करते थे।क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए अंग्रेज अक्सर भारती भवन में छापे डालते थे लेकिन अंग्रेजों के हाथ सिर्फ खाली ही रहते थे जिसके चलते नाराज होकर अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों की कमर तोड़ने के लिए पुस्तकालय को मिलने वाली आर्थिक मदद भी बंद करवा दी थी।

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है पुस्तकालय : प्रयागराज में स्थित भारती भवन पुस्तकालय किसी भी पहचान का मोहताज नहीं है। इस पुस्तकालय के अंदर 70 हजार पुस्तकों और पांडुलिपियों का संग्रह है। इसमें करीब 5500 उर्दू की पुस्तकें हैं और इसी पुस्तकालय से क्रांतिकारियों की यादें भी जुड़ी हुई हैं।

आज भी क्रांतिकारियों से प्यार करने वाले लोग इस पुस्तकालय में जरूर आते हैं। वे यहां बैठकर थोड़ा सा समय बिताते हैं।लेकिन क्रांतिकारियों की याद संजोए यह पुस्तकालय संसाधनों की कमी के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और इसके अंदर रखी दुर्लभ किताबें जिनका मिल पाना बेहद मुश्किल है, वह खराब होने की कगार पर हैं।

सरकार से मात्र 2 लाख रुपए वार्षिक अनुदान मिलने के चलते पुस्तकालय के अंदर की व्यवस्था में भी दिन-प्रतिदिन कमी होती चली रही है। कर्मचारियों की संख्या भी घटती जा रही है, जिसके चलते किताबों का रखरखाव भी दिन-प्रतिदिन खराब होता जा रहा है।

जबकि एक समय ऐसा भी था कि इस पुस्तकालय में ब्रजमोहन व्यास, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, पंडित जवाहरलाल नेहरू, केशवदेव मालवीय, महादेवी वर्मा, डॉ. संपूर्णानंद और कमला नेहरू जैसी विभूतियां अध्ययन के लिए आती थीं और आज वही पुस्तकालय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।