परीक्षाओं का दौर शुरू हो गया है। इन दिनों अभिभावकों के चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं और बच्चों के दिमाग में पल रहे तनाव को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है। अभिभावक सोचते हैं कि बच्चे मेहनत कर लें, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाएं, तो उनकी ठीक-ठीक लाइन बन जाएगी। किसी बेहतर स्थान पर वे पहुंचेंगे, तो माता-पिता तो गर्वित होंगे ही, स्वयं उनका भी जीवन संवर जाएगा।
अभिभावकों की सोच तो गलत नहीं है, लेकिन उस सोच को चिंता की शक्ल देकर बच्चे के मन-मस्तिष्क में उतार देना गलत है। इससे बच्चे भी अनावश्यक रूप से तनाव में आ जाते हैं और जो अध्ययन उन्हें सहजता में करना चाहिए, उसे वे चिंताग्रस्त होकर करते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि उनकी समग्र ऊर्जा का केंद्र जहां अध्ययन होना चाहिए, वह विभाजित होकर आधा भय व तनाव में तथा शेष आधा ही अध्ययन में लग पाता है। इस कारण वे परीक्षा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कई बार पिछड़ जाते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि परीक्षा छोटी हो अथवा बड़ी, उससे संबंधित अध्ययन जितना तनाव रहित रह कर शांत मन-मस्तिष्क से किया जाए, सफलता के अवसर उतने ही अधिक बढ़ जाते हैं। बच्चों के लिए परीक्षा निश्चित रूप से एक बड़ा पड़ाव होती है, जिसकी महत्ता वे भी भली-भांति जानते हैं। अधिकांश बच्चे परीक्षा की तैयारी समर्पित भाव से एकनिष्ठ होकर करते भी हैं, लेकिन उस समय अभिभावकों का नैतिक सहयोग उनके लिए परम आवश्यक होता है।
चूंकि अभिभावक अनुभवी होते हैं, तो वे उस समय बच्चों को योग्य मार्गदर्शन व प्रबोध देकर उनका आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं। अभिभावक होने के नाते अपने बच्चों का हितचिंतन सर्वथा उचित है, लेकिन इस कारण कोई तनाव न पालें क्योंकि आपका तनाव आपके बच्चों पर विपरीत प्रभाव डालता है। आपकी यह स्थिति उन्हें दोहरे तनाव में धकेल देती है। एक तो परीक्षा का सामना और दूसरा, माता-पिता की अच्छे अंक लाने की इच्छा पूर्ण करना। आप स्वयं ही सोचिए कि ऐसे में बच्चे कैसे सहज और शांत रह पाएंगे?
भय और तनाव की दशा में याद की हुई चीजें परीक्षा हॉल में भूल जाने की घटनाएं भी आम हैं। इसलिए अभिभावकों के लिए उचित यही है कि वे तनाव न करते हुए बच्चों को निरंतर बेहतर से बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सकारात्मक व्यवहार से प्रोत्साहन देते रहें। इसके अतिरिक्त माता-पिता होने के नाते यदि उन्हें तनाव हो भी,तो वे उसे अपने मन तक सीमित रखें, बच्चों या उसके मित्रों के समक्ष अभिव्यक्त ना होने दें।
साथ ही अपने बच्चों पर विश्वास रखें। यदि आपने उन्हें अच्छे संस्कार व उचित शिक्षा दी है, तो वे उसका प्रतिफल भी अच्छा ही देंगे। अपवादों को छोड़ दें तो लगभग प्रत्येक घर में यही आलम रहता है। अभिभावकों को अपने बच्चों को शुरू से ही शिक्षा के महत्व को उनके व्यक्तित्व-निर्माण के दृष्टिकोण से समझाना चाहिए। वे अपने बच्चों को परीक्षा का भय न दिखलाते हुए वर्ष भर अच्छी पढ़ाई के लिए प्रेरित करें। उन्हें खेल और पढ़ाई के मध्य संतुलन बनाने में मदद करें क्योंकि उनके शारीरिक विकास के लिए खेलना भी जरूरी है।
यदि बच्चे पूरे साल अध्ययन करते रहेंगे, तो परीक्षा के समय तनाव से अपने आप ही दूर रहेंगे। यह तय बात है कि काम कोई भी हो, यदि पूर्व तैयारी कर ली जाए तो वह सदैव बेहतर ढंग से संपादित होता है। शिक्षित माता पिता बच्चों के अध्ययन में व्यक्तिगत रूचि लें। इसके तहत वे घर पर ही छोटी-छोटी परीक्षाएं आयोजित करें और अच्छे अंक लाने पर अपने बच्चों को कोई छोटा-सा उपहार भी दें, जो उन्हें प्रिय हो।
इसके तीन लाभ होंगे। एक, बच्चे इस बहाने परीक्षा की तैयारी कर लेंगे। दो, घरेलू माहौल में वे निर्भय होना सीखेंगे। तीन, उपहार की प्राप्ति से उन्हें बेहतर से बेहतर करने की प्रेरणा मिलेगी। फिर जब विद्यालय की परीक्षा होगी, तो बच्चे अपनी पूर्व तैयारी और घरेलू प्रोत्साहन के बल पर बिना कोई तनाव पाले परीक्षा दे पाएंगे। इस प्रकार की सकारात्मक सोच को अपनाकर वे स्वयं भी तनावमुक्त रहेंगे और बच्चों को भी परीक्षा का कोई भय या तनाव नहीं रहेगा।
अब बात करें हमारे प्यारे बच्चों की। आजकल पहले की तुलना में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है और इसलिए अध्ययन व परीक्षा की जटिलताओं में भी वृद्धि हो गई है। साथ ही कोर्स भी विविधमुखी हो गया है। बच्चों को पढ़ाई के लिए समय कम पड़ने लगा है। उन्हें अपने मनोरंजन के समय में भी कटौती करनी पड़ती है। पहले अधिकतर बच्चे विद्यालय में ही पढ़ लेते थे। कोचिंग केवल संपन्न वर्ग के बच्चे ही जाते थे, लेकिन आजकल शिक्षा पद्धति की कठिनता के चलते लगभग सभी बच्चे कोचिंग पर भी जाते हैं। इसलिए धनी और निर्धन की जेब के हिसाब से महंगे और सस्ते कोचिंग सेंटर खुल गए हैं।
बहरहाल, बच्चे दोहरा भार झेल रहे हैं। विद्यालय के साथ कोचिंग संस्थानों के टेस्ट, प्रोजेक्ट आदि उत्तीर्ण करते ये बच्चे घर आकर भी मुक्त नहीं हो जाते क्योंकि वहां पर इन्हें दोनों शिक्षा स्थलों में दिया हुआ होमवर्क करना पड़ता है। निश्चित रूप से यह सब उनके लिए बेहद थका देने वाला और तनाव से भर देने वाला होता है। लेकिन इस सब से परे मैं उन्हें यह बात समझाना चाहूंगी कि उन्हें ये सब तो करना ही है क्योंकि इसी पर उनका भविष्य निर्भर करता है, लेकिन तनाव में रहकर न करें। यदि वे दिमाग में सतत् चिंता रखकर पढ़ाई करेंगे तो पूरा ध्यान उस पर न दे पाएंगे।
'क्या होगा' के भय से सर्वथा मुक्त रहकर पढ़ें क्योंकि सबसे पहली बात, 'क्या होगा' का परिणाम आपके हाथों में नहीं हैं। फिर काहे को डरना। दूसरी बात, इस सकारात्मक सोच के साथ पढ़ें कि जो भी होगा, अच्छा होगा क्योंकि यदि आप मेहनत कर रहे हैं तो उसका फल भी अच्छा ही मिलेगा।
याद रखिए, विचारों की सकारात्मकता से बड़ी-बड़ी समस्याओं के समाधान निकल आते हैं। तीसरी बात, यदि परीक्षा परिणाम आपकी आशा पर खरा न भी उतरे, तो दुःख मनाने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि जीवन में कोई भी परीक्षा अंतिम नहीं होती। एक परीक्षा में असफलता पर आपके संपूर्ण जीवन की दिशा तय नहीं हो जाती। एक रास्ता बंद होने पर दूसरे कई रास्ते खुल जाते हैं। आवश्यकता सिर्फ अपनी सोच और समझ को खुला रखने की है।
कई बच्चे परीक्षा का इतना तनाव पाल लेते हैं कि कोई एक प्रश्नपत्र बिगड़ जाने पर ही आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ बच्चे अनुत्तीर्ण हो जाने पर साल बिगड़ जाने के गम में मौत को गले लगा लेते हैं। मेरे विचार से ऐसा करना बिल्कुल ही अनुचित है। बच्चों को ऐसा कदम उठाने से पहले केवल यह सोचना चाहिए कि उनका आत्मघात उनके माता-पिता पर कितना बड़ा वज्राघात करेगा।
उनका शेष जीवन फिर वे मृतक समान ही बिताते हैं क्योंकि अपनी संतान की मृत्यु अपनी आंखों के सामने देखना माता-पिता के लिए इस जगत् में सर्वाधिक दुखदायी है। जो माता- पिता आपके पालन पोषण के लिए दिन-रात परिश्रम करते हैं, अपना सुख और सुविधाएं त्यागकर आपको एक बेहतर ज़िंदगी देने का अथक प्रयास करते हैं, उन्हें इस प्रकार जीवन भर का कष्ट देना कतई उचित नहीं है।
यदि वे आपके प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं, तो आपका भी यह दायित्व है कि परीक्षा कोई भी हो, ठीक से अध्ययन कर आत्मविश्वास के साथ दें और यदि दुर्भाग्यवश परिणाम अनुकूल ना आए, तो निराश होने के स्थान पर अपनी तैयारी को और धार दें ताकि अगली बार अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो सके।
स्मरण रखिए, परीक्षा का तनाव नहीं बल्कि पूर्व तैयारी आवश्यक है। यदि वह ठीक से होगी तो तनाव स्वमेव ही नहीं होगा। आप छोटे-छोटे हिस्सों में समय को बांटकर अध्ययन करें। साथ ही घर के सदस्यों व अपने मित्रों को भी समय-समय पर इसमें शामिल करें। कई बार अनेक विषयों की तैयारी समूह चर्चा से अधिक बेहतर ढंग से हो जाती है और समूह चर्चा को मस्तिष्क याद भी रखता है।
आप तो विद्यार्थी हैं और विद्यार्थियों को ज्ञान लेने में बिल्कुल संकोच या शर्म नहीं करना चाहिए। घर, विद्यालय, कोचिंग, मित्र, रिश्तेदार- अपनी जिज्ञासा के समाधान के लिए जहां, जो उपयुक्त लगे उससे विनम्रतापूर्वक मदद लें।
अपने संदेह दूर करें, अपने अध्ययन को समग्रता प्रदान करें और फिर देखिए कि परीक्षा आपको डराएगी नहीं बल्कि आप स्वयं इसे देने के लिए उत्सुक होंगे क्योंकि बेहतर पूर्व तैयारी से आप आत्मविश्वास से लबरेज होंगे और जीवन के किसी भी रणक्षेत्र में उतरने के लिए पहली शर्त आत्मविश्वास होती है, साधन, अवसर आदि तो बाद में आते हैं। इसलिए अपने अध्ययन के प्रति सजग रहें, सहज रहें और शांत मन से परीक्षा दें।
मेरा मानना है कि यदि माता-पिता और बच्चे इस प्रकार की सोच व आचरण रखेंगे तो निश्चित रूप से परीक्षा का तनाव ना उन्हें होगा और ना ही किसी प्रकार की नकारात्मकता की ओर वे उन्मुख होंगे। बस, स्वयं को सकारात्मकता से भरपूर रखें और अपने चारों ओर उसी का प्रसार करें। संभवतः यही हमारी इस आत्महत्या की ओर अधिक झुकती पीढ़ी को सबसे अच्छी देन होगी क्योंकि तब हमारा समाज सही मायनों में 'शिक्षा' को जी पाएगा और हम 'सुशिक्षित' कहलाएंगे।