वे प्रेम कहानियां ही हैं, जो न केवल इस शब्द और एहसास के आकर्षण को बढ़ाती हैं, बल्कि प्रेम के अस्तित्व को सदियों तक जिंदा रखकर, हर जुबान पर इसका मीठा स्वाद बनाए रखती हैं। ऐसी कई प्रेमकहानियां हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी में सिर्फ सुगंध सी उड़ती हैं, इन्हें आप तभी जान पाते हैं जब उस मिट्टी पर आपके कदम पहुंचते हैं। ऐसी ही एक प्रेम कहानी है, राजस्थान के ढोला मारू की गाई जाने वाली प्रेम-कहानी ....
इस कहानी के अनुसार नरवर के राजा नल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह महज 3 साल की उम्र में बीकानेर स्थित पूंगल क्षेत्र के पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ। चूंकि यह बाल-विवाह था, अत: गौना नहीं हुआ था। जब राजकुमार वयस्क हुआ तो उसकी दूसरी शादी कर दी गई, परंतु राजकुमारी को गौने का इंतजार था। बड़ी होकर वह राजकुमारी अत्यंत सुंदर और आकर्षक दिखाई देती थी।
राजा पिंगल ने दुल्हन को लिवाने के लिए नरवर तक कई संदेश भेजे लेकिन राजकुमार की दूसरी पत्नी उस देश से आने वाले हर संदेश वाहक की हत्या करवा देती थी। राजकुमार अपने बचपन की शादी को भूल चुके थे, लेकिन दूसरी रानी इस बात का जानती थी। उसे डर था कि राजकुमार को सब याद आते ही वे दूसरी रानी को छोड़कर चले जाएंगे, क्योंकि पहली रानी बेहद खूबसूरत थी।
पहली रान इस बात से अंजान, राजकुमार को याद किया करती थी। उसकी इस दशा को देख पिता ने इस बार एक चतुर ढोली को नरवर भेजा। जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था, तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है।
चतुर ढोली एक याचक बनकर नरवर के महल पहुंचा। रात में रिमझिम बारिश के साथ उसने ऊंची आवाज में ने मल्हार राग में गाना शुरू किया। मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा। ढोली ने गाते हुए साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश सुनाया। गीत में जैसे ही राजकुमार ने राजकुमारी का नाम सुना, उसे अपनी पहली शादी याद आ गई। ढोली ने बताया कि उसकी राजकुमारी कितनी खूबसूरत है औरवियोग में है।
ढोली के अनुसार राजकुमारी के चेहरे की चमक सूर्य के प्रकाश की तरह है, झीणे कपड़ों में से शरीर ऐसे चमकता है मानो स्वर्ण झांक रहा हो। हाथी जैसी चाल, हीरों जैसे दांत, मूंग सरीखे होंठ है। बहुत से गुणों वाली, क्षमाशील, नम्र व कोमल है, गंगा के पानी जैसी गोरी है, उसका मन और तन श्रेष्ठ है। लेकिन उसका साजन तो जैसे उसे भूल ही गया है और लेने नहीं आता।
सुबह राजकुमार ने उसे बुलाकर पूछा तो उसने राजकुमारी का पूरा संदेशा सुनाया। आखिर साल्हकुमार ने अपनी पहली पत्नी को लाने का निश्चय किया पर उसकी दूसरी पत्नी मालवणी ने उसे रोक दिया। उसने कई बहाने बनाए पर मालवणी हर बार उसे किसी तरह रोक देती।
आखिरकार एक दिन राजकुमार एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर अपनी प्रियतमा को लेने पूंगल पहुंच गया। राजकुमारी अपने प्रियतम से मिलकर खुशी से झूम उठी। दोनों ने पूंगल में कई दिन बिताए। एक दिन जब दोनों ने नरवर जाने के लिए राजा पिंगल से विदा ली तब जाते समय रास्ते के रेगिस्तान में राजकुमारी को सांप ने काट लिया पर शिव पार्वती ने आकर उसको जीवन दान दे दिया।
लेकिन इसके बाद उनका सामना उमरा-सुमरा सें हुआ जो साल्हकुमार को मारकर राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। वह उसके रास्ते में जाजम बिछाकर महफिल सजाकर बैठ गया। राजकुमार सल्हाकुमार अपनी खूबसूरत पत्नी को लेकर जब उधर से गुजरा तो उमर ने उससे मनुहार की और उसे रोक लिया। राजकुमार ने राजकुमारी को ऊंट पर बैठे रहने दिया और खुद उमर के साथ अमल की मनुहार लेने बैठ गया। इधर, ढोली गा रहा था और राजकुमार व उमर अफीम की मनुहार ले रहे थे। मारू के देश से आया ढोली बहुत चतुर था, उसे उमर सुमरा के षड्यंत्र का ज्ञान आभास हो गया था। ढोली ने चुपके से इस षड्यंत्र के बारे में राजकुमारी को बता दिया।
राजकुमारी भी रेगिस्तान की बेटी थी, उसने ऊंट को एड़ी मारी जिससे ऊंट भागने लगा। ऊंट को रोकने के लिए राजकुमार दौड़ने लगा, जैसे ही राजकुमार पास आया, मारूवणी ने कहा - धोखा है जल्दी ऊंट पर चढ़ो, ये तुम्हें मारना चाहते हैं। इसके बाद दोनों ने वहां से भागकर नरवर पहुंचकर ही दम लिया। यहां राजकुमारी का स्वागत सत्कार किया गया और वह,वहां की रानी बनकर राज करने लगी। इतिहास में इस प्रेमी जोड़े को ढोला मारू के नाम से जाना जाता है। तब से आज तक उनके नाम व प्रेम का गुणगान किया जाता है।