देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तीन चरणों की वोटिंग पूरी हो चुकी है। प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 172 सीटों पर अब तक मतदान हो चुका है। पहले तीन चरणों में अगर वोटिंग के परसेंट को देखा जाए तो यह हर चरण में 2017 के मुकाबले कम ही नजर आया है। राज्य में पहले चरण में 58 सीटों पर 60.71 फीसदी मतदान हुआ जो 2017 के मुकाबले करीब 4 फीसदी कम था। वहीं दूसरे चरण में 55 सीटों पर 60 फीसदी वोटिंग और तीसरे चरण में कुल 61% मतदान हुआ है। इससे पहले 2017 के चुनाव की बात करें तो इन 59 सीटों पर 62.21 पर्सेंट वोटिंग हुई थी।
उत्तर प्रदेश में अब तक तीन चरणों में जिन 172 सीटों पर वोटिंग हुई वहां पर 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 140 सीटें मिली थी। ऐसे में कम हुई वोटिंग के बाद अब इसके सियासी मायने तलाशे जाने लगे है। अब तक तीनों चरणों में हुई कम वोटिंग से किसका फायदा हुआ और किसका नुकसान, इसका भी आंकलन राजनीतिक विश्लेषक करने लगे है। अब तक हुई वोटिंग को जो ट्रैंड देखने को मिला है उसमें शहर क्षेत्रों में मतदान कम देखा गया है।
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र प्रताप कहते हैं कि हर चरण में कम वोटिंग का एक ही मतलब है वह है मौजूदा सरकार से उदासीनता। वोटिंग के फार्मूले पर पुरानी धारणा है कि अगर ज्यादा वोट पड़ रहे हैं तो यह सत्ता के खिलाफ होगा। लेकिन यह तब की बात है जब चुनाव सीधे सीधे लड़ाई के होते थे, दल कम थे। अब दल ज्यादा हैं, गठबंधन का दौर है। वोट प्रतिशत से हर जीत तय करने करने वाला फार्मूला पिछले कुछ चुनावों में फेल रहा,ये राजनीतिक समीक्षक और सेफ़ॉलोजिस्ट भी मानते हैं।
वह आगे कहते हैं कि बदले हुए हालात में यह बात तो फिर भी लागू होती है कि सत्तापक्ष के प्रति कहीं उदासीनता है जिसने वोटर को रोका है। वैसे यह वोटर सत्तापक्ष में भी दो धाराओं के बीच उलझा दिखा है। मोदी के नाम पर अभी उत्साह दिख जाता है लेकिन योगी के नाम पर यह नीचे जाता है। जिसने भाजपा का काम बिगाड़ा है।
नागेंद्र आगे कहते हैं कि वैसे असल बात यह है कि बीते सात साल केंद्र और 5 साल यूपी में भाजपा शासन के तमाम कटु अनुभव हैं जो भाजपा समर्थक वोटर भी निराश हुआ है। दूसरी ओर अखिलेश यादव की सपा ने जिस तरह छोटे छोटे दलों को मिलाकर एक छतरी बनाई और मुद्दों पर धीरे धीरे बढ़ते हुए नौजवानों, बेरोजगारों, कर्मचारियों, महिलाओं को आकर्षित किया है उसने एक नया उत्साह बनाया है। यह वोटर ज्यादा उत्साह से वोट कर रहा है।
ऐसे में यदि वोट प्रतिशत कम हो रहा है तो नुकसान भाजपा को ही ज्यादा होना है। तीसरे चरण तक का यही सच है। शहरी इलाकों में कम पोलिंग भी भजपा को ही नुकसान पहुंचाएगी।
वोटरों की खमोशी से बैचेन सियासी दल- उत्तर प्रदेश में अब तक हुई तीन फेज के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, सेंट्रल यूपी और बुदेंलखंड में मतदान हो चुका है। अब आने वाले चार चरणों में अवध के साथ-साथ पूर्वांचल में भाजपा और सपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में इस बार न कोई लहर दिखाई दे रही है और न ही कोई ऐसा एक मुद्दा है जिस पर पूरा चुनाव टिक गया हो। अधिकांश क्षेत्रों में चुनाव सीट-टू-सीट होता नजर आ रहा है। ऐसे में वोटरों की खमोशी राजनीतिक दलों के नेताओं की धड़कन को बढ़ रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि इस बार के चुनाव में वोटर बहुत ही साइलेंट है। कई चुनावों के बाद इस बार का विधानसभा चुनाव ठोस मुद्दों पर हो रहा है। चुनाव में किसान आंदोलन, बेरोजगारी, महंगाई और छुट्टा जानवर जैसे स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी नजर आ रहे है और जनता इन्हीं मुद्दों पर वोट करती नजर भी आ रही है।
रामदत्त त्रिपाठी आगे कहते इस बार विधानसभा चुनाव में एंटी इंकमबेंसी का भी खासा असर नजर आ रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर नहीं आ रहा है। इसका बड़ा कारण है कि योगी सरकार के पांच साल में जिस तरह सरकार चलाने में संगठन को इग्नोर किया गया तो ऐसे में चुनाव के समय में भाजपा कार्यकर्ता नाराज नजर आ रहा है और वह चुनाव के समय उदासीन हो गया है जिसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ सकता है।