• Webdunia Deals
  1. चुनाव 2022
  2. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
  3. न्यूज: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
  4. Akhilesh-Jayant litmus test in western Uttar Pradesh?
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 9 फ़रवरी 2022 (15:00 IST)

पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अखिलेश-जयंत की जोड़ी की अग्निपरीक्षा?

पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अखिलेश-जयंत की जोड़ी की अग्निपरीक्षा? - Akhilesh-Jayant litmus test in western Uttar Pradesh?
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण का मतदान गुरुवार को होगा। 10 फरवरी को पश्चिमी उत्तरप्रदेश की 58 सीटों पर मतदान होगा। उत्तर प्रदेश के सियासी रण में  पश्चिमी उत्तरप्रदेश वह इलाका है जहां के वोटर यह तय कर देंगे कि 10 मार्च को परिणाम किसे पक्ष में जाएंगे। किसान आंदोलन की तपिश के बीच हो रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर हो रही वोटिंग में जहां एक ओर भाजपा की पूरी साख दांव पर लगी है तो यूपी चुनाव की सबसे चर्चित जोड़ी अखिलेश-जयंत की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।  
 
अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी को उत्तरप्रदेश के 2022 के सियासी रण में सबसे बड़ी सियासी जुगलबंदी के तौर पर देखा जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम वोटरों पर खास पकड़ रखने वाली समाजवादी ‘जाटलैंड’ की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल को साथ में लेकर यूपी की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता तलाश रही है। दरअसल जंयत चौधरी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल पूरे किसान आंदोलन में काफी सक्रिय नजर आई और अब वह समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवाल होकर लखनऊ की ओर बढ़ने का मौका तलाश रही है। 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली कुल 144 सीटें पर भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 108  सीटें जीतकर 'जाटलैंड’ पर अपनी विजयी पताका फहरा दी थी। इस बार अखिलेश और जयंत की जोड़ी भाजपा को पहले चरण की वोटिंग में ही मात देकर चुनाव के शानदार आगाज के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। 
पश्चिमी उत्तरप्रदेश में खासा प्रभाव रखने वाली और किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाली राष्ट्रीय लोकदल के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन से चुनावी राजनीति के जानकार  पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बड़े सियासी उलटफेर से इंकार नहीं कर रहे है।
राष्ट्रीय लोकदल की पश्चिमी उत्तरप्रदेश के 13 जिलों में अच्छी पकड़ है और गठबंधन के सहारे समाजवादी पार्टी पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर वोटरों के बिखराव को रोकने की कोशिश की है। राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन करने में सपा का उद्देश्य कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की नाराजगी का फायदा उठाकर वोटरों से साथ-साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुसलमानों और जाटों के वोटों में होने वाले बिखराव को रोकना है।
 
उत्तरप्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि जयंत चौधरी और अखिलेश को पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जाट समुदाय एक बड़ी उम्मीदों के साथ देख रहा है। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बड़े वोट बैंक वाले मुस्लिम समुदाय को लेकर भी कहीं कोई कंफ्यूजन नजर नहीं आ रहा कि वह किधर जाएगा? मुस्लिम समुदाय को बिल्कुल तय है कि उसके कहां जाना है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां किसान संगठन भी भाजपा के विरोध का एलान कर चुके है वहां अखिलेश और जयंत की जोड़ी भाजपा को उसके 2017 के प्रदर्शन को दोहराने से रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।राजनीतिक विश्लेषक नागेंद्र कहते हैं कि कृषि कानून वापस होने से भाजपा को पश्चिमी उत्तरप्रदेश में फायदे के जगह नुकसान ही हुआ है। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान कृषि कानूनों को लेकर बहुत अधिक चिंतित नहीं था लेकिन अब वह यह मान रहा है कि कहीं न कहीं कृषि कानूनों में कुछ गलत था जिससे सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। लोग अब मानने लगे हैं कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर सकती है और कृषि कानूनों की वापसी को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। अगर यह कानून छह महीने वापस होते तो भाजपा को बड़ा फायदा मिलता। 
 
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ध्रुवीकरण कार्ड के चलते 100 सीटों में से 80 सीटों पर जीत हासिल की थी। जाट वोटर खुलकर भाजपा के साथ आए थे। वहीं जाट वोटर अब किसान आंदोलन के चलते भाजपा से नाराज है। ऐसे में अब 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन भाजपा को नुकसान पहुंचा पाएगा अब यह देखना दिलचस्प होगा।
ये भी पढ़ें
अखिलेश का रामपुर दौरा स्थगित, अगली तारीख की घोषणा बाद में