कब, कहां और कैसे जन्मे धरती पुत्र मंगल, पढ़ें पौराणिक कथा
मंगल ग्रह के जन्म की एक कथा कुछ इस प्रकार है। अंधकासुर नामक दैत्य को तप के बाद भगवान शिव ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान पाकर इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी। तब दीन-दुखियों ने शिव से प्रार्थना की। भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया।
दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। शिव का पसीना बहने लगा। रुद्र के पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन(प्राचीन नगरी अवंतिका) की धरती फट कर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवोत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया। धरती से जन्म के कारण उन्हें धरती पुत्र माना गया। कहते हैं, इसलिए मंगल की धरती लाल रंग की है। (स्कंद पुराण के अवंतिका खंड से)। आज भी उज्जैन में मंगल ग्रह का प्राचीन सुंदर मंदिर है। यह स्थान मंगल की जन्म भूमि माना गया।