क्यों रह गया स्टार महिला पहलवान विनेश फोगाट का सपना अधूरा..
- सीमान्त सुवीर
बुधवार को इंदौर के अभय प्रशाल में देर शाम तीन मासूम-सी लड़कियां गुफ्तगूं में मशगूल थीं कि उनमें से एक से मैंने मुखातिब होकर इंटरव्यू देने की गुजारिश की, जिसे उसने सहजता से स्वीकार कर लिया। चचेरी बहन बबीता फोगाट के साथ बैठी ये लड़की कोई और नहीं बल्कि स्टार महिला पहलवान विनेश फोगाट थीं, जो 2016 के रियो ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में घुटने की चोट की वजह से ओलंपिक पदक जीतने से चूक गई थीं...इस दुर्भाग्य पर तो खुद विनेश रोई थीं और टीवी पर लाइव मुकाबला देख रहे करोड़ों देशवासियों की आंखें भी नम हो गई थीं।
रियो ओलंपिक में हुए दुर्भाग्य से ही बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। तब मेरे सामने केवल विनेश थीं लेकिन जैसे ही रिपोर्टरों को इस स्टार पहलवान के बारे में भनक लगी, देखते ही देखते वहां जमघट लग गया और एक साथ कई कैमरों के फ्लैश चमकने लगे। 23 साल की विनेश आज स्टार पहलवान हैं, लेकिन बातचीत में कहीं भी नहीं लगा कि आप महिला कुश्ती में 2014 के राष्ट्रमण्डल खेल की स्वर्ण पदक विजेता से बात कर रहे हैं।
विनेश ने कहा कि ओलंपिक पदक मेरा सपना था और यह घुटने की चोट से टूट गया। मैं फ्रीस्टाइल स्पर्धा के 48 किलोग्राम भार वर्ग में चीन की सुन यानान के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मुकाबला लड़ रही थी और 1-0 से आगे भी थी लेकिन तभी सुन के दांव में मेरा घुटना चोटिल हो गया और मुझे स्ट्रेचर से बाहर लाया गया।
ओलंपिक की याद को कभी भूल नहीं पाऊंगी। बहुत बुरा पल था। सपना अधूरा रह गया। जब सपने अधूरे रह जाते हैं तो सुकून नहीं देते हैं। सपना टूटता है तो बहुत तकलीफ होती है लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी है और मैं 2020 के टोक्यो ओलंपिक खेलों की तैयारियों में दोगुने उत्साह के साथ जुटी हुई हूं। रोजाना सात घंटे अभ्यास कर रही हूं।
मेरा जन्म 25 अगस्त 1994 को हरियाणा के बलाली गांव में हुआ। परिवार में कुश्ती का माहौल पहले से ही था। मेरे पिता नहीं हैं और ताऊजी यानी महावीर सिंह जी (जिनके जीवन पर आमिर खान ने फिल्म दंगल बनाई) ने कुश्ती के गुर सिखाए। मेरी चचेरी बहनें गीता, बबीता, संगीता और ऋतु हैं जबकि सगी बहन प्रियंका अभी कुश्ती लड़ रही है। एक भाई है, जो कुश्ती से जुड़ा रहा है।
देश की लगभग सभी महिला पहलवानों को कोचिंग देने वाले इंदौर के अर्जुन अवॉर्डी कृपाशंकर बिश्नोई सर ने मुझे 2009 से सब जूनियर वर्ग से ट्रेनिंग देनी शुरू की। 2013 में मैंने दिल्ली में एशियन गेम्स में 51 किलोग्राम में कांस्य और इसी साल जोहानसबर्ग में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता।
2014 में ग्लास्गो में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में मैंने 48 किलोग्राम भार वर्ग में सोने का तमगा पहना तो 2014 में इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य पदक पाया। 2015 में दोहा में एशियन कुश्ती में रजत और 2016 में बैंकॉक में 53 किलोग्राम में कांस्य पदक जीता। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैं अब तक 35 पदक जीत चुकी हूं।
मेरा अगला लक्ष्य ओलंपिक खेल है, जिसके लिए मेरी तपस्या जारी है। मैं अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास कर रही हूं। विदेशी महिला पहलवान की वीडियो क्लीपिंग्स के आधार अपनी रणनीति बना रही हूं। इससे खुद की स्ट्रेंथ का भी पता चलता है। कुश्ती केवल ताकत का खेल नहीं रह गया है। इसमें स्टेमिना और स्ट्रेंथ का काफी योगदान रहता है।
भारत में सुशील कुमार जी के ओलंपिक पदक जीतने के बाद कुश्ती क्रांति हुई है। महिलाओं में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक जीतकर देश की बेटियों में नया उत्साह जगाया है। मेरा ऐसा मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितने भी भारतीय पहलवान गए हैं, उनके कारण ही भारतीय कुश्ती का स्तर ऊंचा हुआ है।
देश में भी महिला कुश्ती के लिए तेजी से बदलाव आ रहा है। ओलंपिक खेलों में हमारी भागीदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है। यदि आप ओलंपिक में जाते हैं तो पूरा देश आपसे पदक की उम्मीद बांधने लग जाता है। हमारी कोशिश रहती है कि हम उन्हें निराश नहीं करें।
रियो ओलंपिक में लगी चोट अब ठीक हो गई है। कुश्ती ही क्यों, हर खेल में इंजुरी होना नई बात नहीं है। मैं इंदौर दूसरी बार आई हूं। इससे पहले 2009 में किसी कार्यक्रम में आई थी। इस बार मैं राष्ट्रीय सीनियर कुश्ती में 55 किलोग्राम भार वर्ग में उतर रही हूं और यहां पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए बेताब हूं।