हॉकी की दुर्दशा! मेजर ध्यानचंद तक नहीं चाहते थे उनके बेटे खेलें राष्ट्रीय खेल
नई दिल्ली: हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद नहीं चाहते थे कि उनका कोई बेटा हॉकी खेले। यह खुलासा उनके ओलंपियन बेटे अशोक ध्यान चंद ने बुधवार को प्रेस क्लब में किया।
डॉक्टर आशीष गुप्ता की पुस्तक, 'खेल पत्रकारिता के आयाम' के विमोचन के अवसर पर उन्होंने बताया कि तीन ओलंपिक स्वर्ण विजेता और कप्तान रहे उनके पिता एक समय हॉकी से इतना ऊब गए थे कि अपने बेटों को हॉकी से दूर रहने की सलाह देने लगे थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाली भारतीय टीम को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी हकदार थी।
किताब का विमोचन अशोक ध्यानचंद, आज तक के खेल संपादक विक्रांत गुप्ता, उत्तम हिन्दू के वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेन्द्र सजवान, वार्ता के खेल संपादक राजेश राय और जानी मानी लेखक पत्रकार डा. स्मिता मिश्र की उपस्थिति में किया गया। इस अवसर पर पत्रकार विजय कुमार, उमेश राजपूत आदि भी मौजूद थे।
डॉक्टर द्विवेदी की किताब में तमाम खेलों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के साथ साथ खेल पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी गई है। उनके अनुसार भारतीय खिलाड़ी इसलिए पीछे हैं क्योंकि देश में स्पोर्टस साक्षरता मात्र बीस प्रतिशत है और खेलों को किसी भी स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता। उदासीन और उपेक्षापूर्ण माहौल खिलाड़ियों को आगे बढ़ने से रोकता है।
लेखक ने जानना चाहा कि उपेक्षित खिलाड़ियों के मामले में देश का सिस्टम मौन क्यों है! उन्होंने महिला खिलाड़ियों की समस्याओं और उनकी राह में आनेवाली बाधाओं को भी बखूबी निर्भीकता से उद्घाटित किया है। हालांकि लेखक कभी खिलाड़ी या कोच नहीं रहे फ़िर भी उन्होंने खिलाड़ियों की बुनियादी जरुरतों और समस्याओं को उद्घाटित किया है। सभी अतिथियों और वक्ताओं ने माना कि उनकी पुस्तक खेल पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालती है और स्कूल कालेज के खिलाड़ी छात्र छात्राओं का सही मार्गदर्शन करने में सक्षम है।
सभी वक्ताओं और पत्रकारों ने माना कि भारत की खेल पत्रकारिता बस क्रिकेट पत्रकारिता बन कर रह गई है। खेल खबरों के नाम पर बस क्रिकेट छपता है। बाकी खेल इस स्थिति के लिए खुद जिम्मेदार हैं क्योंकि उनका सिस्टम कारगर नहीं है। क्रिकेट ने अपने लिए जो जगह बनाई है बाकी खेल ऐसा क्यों नहीं कर पाए। उन्हें अपनी गिरेबान में जरुर झांकना चाहिए।
अशोक ध्यान चंद ने हॉकी की बदहाली के लिए, फेडरेशन और हॉकी इंडिया को दोषी माना लेकिन यह भी कहा कि देश में खेलों को लेकर कुछ भी सराहनीय नहीं हो रहा। जो थोड़े बहुत खिलाड़ी निकलते हैं, उनके माता पिता और खुद की मेहनत है।(वार्ता)