भारत में अधिकतर महिलाएं भगवान शंकर की पूजा करती हैं और उन्हें मानती हैं। अच्छे पति की कामना से वह शिव और पार्वती जी के व्रत भी रखती हैं। शिवजी के बाद श्रीकृष्ण और श्रीराम के भक्तों की संख्या ज्यादा है। सवाल यह है कि अधिकतर महिलाएं क्यों चाहती हैं कि शिवजी जैसा हो उनका पति? आदर्श पति के रूप में वह शिवजी को क्यों देखती हैं? आओ जानते हैं कुछ खास बातें।
1. शिवजी का प्रेम सिर्फ अपनी पत्नी के लिए : भगवान शिव एक पत्निव्रता हैं। उन्होंने राजा दक्ष की पुत्री सती से विवाह किया था। माता सती के अलावा उन्होंने कभी भी किसी अन्य स्त्री को अपने हृदय में नहीं आने दिया। श्रीकृष्ण का प्रेम कई महिलाओं के बीच बंटा हुआ है, श्रीराम एक पत्नीव्रता जरूर हैं लेकिन उनके लिए पत्नी से बढ़कर अपना कर्तव्य है, जबकि शिवजी का प्रेम सिर्फ और सिर्फ माता सती या पार्वती के लिए ही है। किसी अन्य स्त्री की ओर उनकी दृष्टि नहीं जाती। महाकाव्यों में कहा गया है कि भगवान शिव से ज्यादा अपनी पत्नी का ख्याल रखने वाले कोई दूसरे देवता नहीं हैं।
2. पत्नि के प्रति सपर्पण : शिवजी भोलेनाथ है। उन्होंने कभी भी अपनी पत्नी से किसी भी प्रकार का कलह नहीं किया। शिवजी ने कभी भी माता सती या पार्वतीजी पर अपने विचार नहीं थोपे। जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यहां जाने की जिद की तो शिवजी ने उनकी जिद के आगे समर्पण कर दिया। मां पार्वती को जो सही लगता है, वह वही करती हैं। वह कई बार पति शिव का विरोध भी करती हैं लेकिन भगवान शिव उनकी राय का सम्मान करते हैं। वे अपनी पत्नी के साथ प्रेम और सम्मान के साथ पेश आते हैं और कभी भी क्रोध नहीं करते हैं। हालांकि आज के जमाने के किसी पति को उसके ससुराल की कोई भी बात जरा सी भी चुभ जाए तो वो सबसे पहले अपनी पत्नी का मायका जाना ही बंद कर दे, लेकिन शिवजी ने ऐसा नहीं किया। उनका राजा दक्ष यानी की अपने ससुर से विवाद था फिर भी वे माता को मायके जाने से रोकते नहीं थे।
3. संन्यासी से गृहस्थ बने : जैसा कि विष्णुजी सांसारिक है लेकिन शिवजी सांसारिक नहीं है। उनमें धर्म और संन्यास के प्रति समर्पण है। वे अच्छे और बुरे के बीच भेद करते हैं। वे हमेशा नैतिक बने रहते हैं। तप, साधना और संन्यासी भाव ही उनका चरित्र है। हर महिला चाहती है कि उनका पति धार्मिक स्वभाव का और चरित्र का उत्तम हो। दुनिया में उल्टा होता है- लोग गृहस्थ से संन्यासी बनते हैं लेकिन शिवजी एकमात्र ऐसे पति हैं जो संन्यासी से गृहस्थ बने हैं। वह भी सिर्फ किसी महिला के अगाथ समर्पण और तप के कारण। शिवजी किसी राजा की तरह नहीं रहते हैं। वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं।
4. पत्नी के प्रति लगाव : जब माता सती अपने पति शिवजी के अपमान से दु:खी होकर राजा दक्ष के यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी देह का अंत कर दिया तब शिवजी को जो दु:ख और क्रोध हुआ उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। शिवजी माता पार्वती के वियोग में उनकी मृत देह को लेकर भटकते रहे। हालांकि वे जानते थे कि देह तो नश्वर है फिर भी वे इतने दु:खी थे कि उनका दु:खी किसी भी देवी या देवता से देखा नहीं गया। तब श्रीहरि विष्णु ने अपने चक्र से माता के देह के 108 टुकड़े कर दिए। तब जाकर शिवजी की तंद्रा भंग हुए और फिर वे हमेशा के लिए तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने सती के जाने के बाद कभी दूसरा विवाह नहीं किया।
5. पार्वती से विवाह : माता सती के देह त्यागने के बाद उन्होंने दूसरे जन्म में राजा हिमावान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता सती ने पार्वती बनकर फिर से शिवजी को प्राप्त करने के लिए तप किया। सभी देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने शिवजी की समाधि को भंग किया और अंत में जब शिवजी को यह विश्वास हो गया कि पार्वती ही सती है तब उन्होंने माता से विवाह किया। यानी शिवजी ने जन्मों-जन्म तक माता सती को ही चाहा। माता पार्वती ने शिवजी को प्राप्त करने के लिए घोर तप किया और वे भी पूर्णत: शिवजी के प्रति ही सपर्पित रहीं।
6. मित्र और गुरु : शिवजी अपनी पत्नी के मित्र भी हैं और गुरु भी। माता पार्वती के कई प्रश्नों का समाधान करके शिवजी ने उन्हें मोक्ष का ज्ञान दिया और जन्म-मरण के चक्र से बाहर निकलने में माता पार्वती का सहयोग किया। अमरनाथ की गुफा में उन्होंने माता को 'ब्रह्म ज्ञान' दिया। दूसरी ओर शिवजी और माता पार्वती मित्र बनकर कभी चौपड़ तो कभी चतुरंग खेलते हुए नजर आते हैं और कभी वे मिलकर भक्तों को वरदान देते हैं। ज्यादातर पुराण और व्रतों की कहानियों में शिवजी ही पार्वती को कथा सुनाते हैं। फिर वह चाहे श्रीराम की कथा हो या श्रीकृष्ण जी की।
7. बराबरी का दर्जा : भगवान शिव अपनी पत्नी को बराबरी का दर्जा देते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी को इस योग्य बनाया कि दुनिया आज शिवजी से ज्यादा मां पार्वती को पूजती है। रुक्मिणी, सीता या सत्यभामा का उतना दर्जा नहीं है जितना की मां पार्वती का। यदि शिवरात्रि है तो नवरात्रि भी। मात्र शिवजी की पत्नी ही है जो शिवजी के बराबर है। शिव से ही शक्ति है और शक्ति से ही शिव। अर्धनारीश्वर के रूप में आधा हिस्सा पार्वती का और आधा हिस्सा उनका रहता है। यही रिश्तों की सच्ची साझेदारी है। जब शिवजी समुद्र मंथन से निकले विष को पी जाते हैं तो मां पार्वती जाकर उनके विष को गले से नीचे उतरने से रोक देती हैं। पार्वती ने सैंकड़ों जगहों पर शिवजी की रक्षा की है या उनकी आज्ञा का पालन करते हुए असुरों का संहार किया है। शिवजी तप के लिए जब परिवार छोड़कर वषों के लिए पहाड़ या जंगल चले जाते हैं तो शिव के गण, सेवक और परिवार के भरण पोषण की सारी जिम्मेदारी माता पार्वती सकुशल निभाती हैं। इसलिए भी वह एक आत्मनिर्भर महिला हैं।
8. शिव जैसा हो पति : लोक मान्यता है कि बेटा हो तो श्री राम जैसा, प्रेमी हो तो श्री कृष्ण जैसा और पति हो तो भगवान शिव जैसा। विवाह के मांगलिक कार्यक्रमों में भगवान शिव और माता पार्वती के ही गीत गाए जाते हैं। माता पार्वती के व्रत अच्छे पति की कामना के लिए ही होते हैं। महाशिवरात्रि पर शिव विवाह की ध़ूम रहती है। शिवजी की बारात का ही सभी ओर चित्रण किया जाता है।
9. क्या चहती है महिलाएं : कोई स्त्री जब किसी से प्रेम करती है तो अपना सर्वस्व लुटा देती है। ऐसे में हर स्त्री चाहती है कि जिन्हें मैं अपना तन और मन सौंप रही हूं वह भी मेरे प्रति सपर्मण भाव रखे या मेरी भावनाओं को समझें। इसीलिए महिलाएं शिवजी की तरह ही पति चाहती हैं क्योंकि शिवजी अपनी पत्नी की भावना का पूर्णत: सम्मान करते हैं।
10. शिव पूजा : माता पार्वती संसार की संभवत: एकमात्र ऐसी महिला है जिनके लिए उनका पति ही उनका ईश्वर है। वे शिव की पूजा करती हैं, तप करती हैं और दुनिया की सभी महिलाओं के सामने वह एक आदर्श पत्नी के रूप में खुद को प्रस्तुत करती हैं। हर महिला इस वजह से भी शिव और पार्वती जैसे दंपत्ति के प्रति आकर्षित होकर वह भी इसी तरह के पति की कामना और पार्वती की तरह पत्नी बनने की इच्छा रखती हैं।