आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्मार्ग पर चलने की राह दिखाई। पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है।
जानिए क्या कहते हैं महर्षि वाल्मीकि के वचन...
* जीवन में सदैव सुख ही मिले यह बहुत दुर्लभ है।
* अतिसंघर्ष से चंदन में भी आग प्रकट हो जाती है, उसी प्रकार बहुत अवज्ञा किए जाने पर ज्ञानी के भी हृदय में भी क्रोध उपज जाता है।
* संत दूसरों को दु:ख से बचाने के लिए कष्ट सहते रहते हैं, दुष्ट लोग दूसरों को दु:ख में डालने के लिए।
* नीच की नम्रता अत्यंत दुखदायी है, अंकुश, धनुष, सांप और बिल्ली झुककर वार करते हैं।
* संसार में ऐसे लोग थोड़े ही होते हैं, जो कठोर किंतु हित की बात कहने वाले होते है।
* इस दुनिया में दुर्लभ कुछ भी नहीं है, अगर उत्साह का साथ न छोड़ा जाए।
* माया के दो भेद हैं- अविद्या और विद्या।
* दुखी लोग कौन सा पाप नहीं करते?
* अहंकार मनुष्य का बहुत बड़ा दुश्मन है। वह सोने के हार को भी मिट्टी का बना देता है।
* किसी भी मनुष्य की इच्छाशक्ति अगर उसके साथ हो तो वह कोई भी काम बड़े आसानी से कर सकता है। इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना देती है।
* जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
* प्रण को तोड़ने से पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
* असत्य के समान पातक पुंज नहीं है। समस्त सत्य कर्मों का आधार सत्य ही है।
* माता-पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन जैसा दूसरा धर्म कोई भी नहीं है।
* प्रियजनों से भी मोहवश अत्यधिक प्रेम करने से यश चला जाता है।
* दुख और विपदा जीवन के दो ऐसे मेहमान हैं, जो बिना निमंत्रण के ही आते हैं।