आल्हा ऊदल की प्रेम कहानी Alha Udal Ki Prem Katha
प्राचीन समय पहले शिवगढ़ नामक जिले में एक बहुत ही प्रतापी और बहादुर राजा रहा करता था। उस राजा का नाम मकरंदी था। मकरंदी नामक राजा नरवर किले में रहा करते थे और वहीं से अपने राज्य पर राज करते थे। राजा को अस्त्र शस्त्र का बहुत अच्छे से ज्ञान था। राजा बहुत ही बलवान थे। कोई भी शत्रु उनके राज्य पर आक्रमण करने से पहले बहुत सोच विचार करा करता था और ऐसा कोई भी शत्रु नहीं था, जिसको राजा ने पराजित ना किया हो।
राजा के राज्य में राजा की प्रजा बहुत खुशी खुशी रहा करती थी। राजा के राज्य में सभी लोग एक दूसरे से मिलजुल कर रहा करते थे और प्रजा भी अपनी राजा का बहुत सम्मान किया करती थी और उनको बहुत प्रेम करती थी। राजा की एक बहन थी, जिसका नाम राजकुमारी फुलवा था। राजकुमारी फुलवा देखने में बहुत ही सुंदर और सुशील थी।
राजकुमारी फुलवा भारत देश की सुंदर कन्याओं में से एक थी। प्राचीन समय से चली आ रही रीति के अनुसार राजकुमारी को भी फूलों से तोला जाता था। राजकुमारी फुलवा के सुंदर रूप को देखने के लिए लोग बहुत प्रयत्न किया करते थे। राजा मकरंदी के राज्य में दो बहुत ही प्रतापी और हर कला में निपुण अस्त्र शस्त्रों के ज्ञान से भरपूर दो भाई रहा करते थे, जिन्होंने अपनी योग्यता का प्रदर्शन हर तरफ किया हुआ था।
चारों तरफ दोनों भाइयों के चर्चे हुआ करते थे। उन दोनों भाइयों के नाम आल्हा, जो बड़ा भाई था तथा छोटा भाई का नाम उदल था। उदल देखने में बहुत ही सुंदर था। दोनों भाई अपना समय बाहर घूमने में ही व्यतीत किया करते थे। एक बार जब आल्हा और उदल घूमते हुए नरवर आ गए थे। तब उदल ने राजा मकरंदी की बहन राजकुमारी फुलवा को पहली बार देखा था।
वह फुलवा को देखकर बहुत मंत्रमुग्ध हो गए थे और उदल को राजकुमारी फुलवा से प्रेम हो गया था। पूरे राज्य में जब आल्हा और उदल की चर्चाएं होने लगी थी कि दो भाई में से छोटा भाई सबसे सुंदर है जिसकी सुंदरता देखने लायक है। जब यह बात राजकुमारी फुलवा तक पहुंची तब राजकुमारी फुलवा को भी उदल को देखने का मन करने लगा और राजकुमारी फुलवा को उदल से मिलने की इच्छा होने लगी।
एक दिन जब उदल को राजकुमारी के बारे में पता लगा तब वह राजकुमारी के महल नरवल किले में आ गए और यह खोजबीन करने लगे कि राजकुमारी फुलवा तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
तब उदल को पता लगा कि राजकुमारी के लिए उनकी एक नौकरानी रोज फूलों का हार बना कर ले जाया करती थी। यह देख कर उदल ने राजकुमारी फुलवा की नौकरानी से कहा कि मैं आज तुमको एक फूलों का हार बना कर दे रहा हूं जिसको तुम अपनी महारानी को दे देना।
उदल को फूलों की माला बनाने में बहुत ही महारत हासिल थी। वह बहुत ही सुंदर सुंदर माला बनाया करता था जिसको देखकर लोग उसकी सुंदरता का पता नहीं लगा पाते थे। जब उदल ने राजकुमारी के नौकरानी को माला बनाकर दे दिया ,तो वह नौकरानी तुरंत उसे लेकर राजकुमारी फुलवा के पास चली गई और उनको उदल के द्वारा बनाई हुई माला दे दी। राजकुमारी ने जैसे ही उस माला को देखा तो वह उसे देखकर मंत्रमुग्ध हो गई।
और उन्होंने अपनी नौकरानी से कहा कि आज माला तो बहुत सुंदर बनी है। यह माला आज तक तुमने कभी भी मेरे सामने नहीं लाई। तब राजकुमारी फुलवा की नौकरानी ने कहा कि महारानी यह माला मैंने नहीं बनाई है। यह माला तो किसी और ने बनाई है। तब राजकुमारी फुलवा ने अपनी नौकरानी से कहा कि मैं उस व्यक्ति से मिलना चाहती हूं, जिसने यह सुंदर सी माला बनाई है।
कल तुम उसको मेरे पास लेकर आना। जिसके बाद राजकुमारी फुलवा की बात सुनकर नौकरानी ने उदल को राजकुमारी फुलवा से मिलने के लिए कहा और नौकरानी उदल को महिला के कपड़े पहना कर महल के अंदर राजकुमारी फुलवा के पास ले गई।
राजकुमारी ने जैसे ही उदल को देखा तो वह उदल के रूप को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई और एक ही नजर में वह उदल से प्यार करने लगी और फिर राजकुमारी फुलवा ने उदल को अपने ही पास रोक लिया और उसको अपने ही कक्ष में छुपा लिया उदल और राजकुमारी फुलवा बहुत दिनों तक एक साथ रहे।
एक बार जब राजा मकरंदी ने अपनी बहन राजकुमारी फुलवा को फूलों से एक बार फिर से तौलवाया तो, राजकुमारी का वजन बढ़ा हुआ पाया जिससे राजा मकरंदी को शक हो गया कि राजकुमारी फुलवा को किसी पुरुष ने छुआ है। जिसके कारण राजा बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने सभी सैनिकों और नौकरों से कहा कि तुम लोग जाकर राजकुमारी फुलवा के कमरे में चेक करो कि कोई पुरुष तो वहां पर नहीं है।
और पूरे महल में भी तलाशी करो। राजा की आज्ञा के कारण सभी नौकरों ने और उनके सिपाहियों ने जैसे ही राजकुमारी फुलवा का कमरा चेक किया तो. राजकुमारी के कमरे में उदल को पाया जिसके बाद सारे सैनिक ऊदल को पकड़कर राजा के पास ले गए। राजा ने उदल को बंदीगृह में डाल दिया और उसको कारागार में रहने की सजा सुनाई। धीरे धीरे छह महीने बीत चुके थे।
उधर आल्हा को अपने छोटे भाई की चिंता होने लगी थी। जिसके बाद आल्हा ने तुरंत अपने छोटे भाई उदल को खोजने के लिए इधर उधर जांच करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों के पश्चात जब आल्हा को पता चला कि उसके छोटे भाई उदल को नरवर किले के राजा मकरंदी ने अपने कारागार में बंदी बनाकर रखा है। यह सुनकर आल्हा को नरवर के राजा पर बहुत क्रोध आया और आल्हा ने अपने गुरु के पास जाकर सारी बातें बता दी।
आल्हा के गुरु ने आल्हा को युद्ध करने की सलाह दी जिसके बाद आल्हा नरवर के लिए पर आक्रमण कर दिया और उसके सारे सैनिकों को मार गिराया। आल्हा ने नरवर किले को तोड़ते हुए किले के अंदर प्रवेश किया। किले के अंदर छिपे हुए सैनिकों को बहुत बुरी तरीके से घायल कर दिया। सैनिक अपनी जान बचाते हुए राजा के पास पहुंच गए। जब राजा ने अपने घायल सैनिकों को देखा तो, उन्होंने अपने सैनिकों से पूछा कि यह हालत तुम्हारी किसने की है?
सैनिकों ने बताया कि उदल के बड़े भाई आल्हा ने हम लोगों पर आक्रमण कर दिया है और हमारे सारे सैनिकों को मार दिया है। यह सुनकर राजा बहुत डर गए और तुरंत भागते हुए आल्हा के पास चले गए। आल्हा के पास जाकर उन्होंने अपने आपको आल्हा को सौंप दिया और तुरंत आल्हा के छोटे भाई उदल को रिहा करने का आदेश दे दिया।
राजा ने आल्हा से अपने किए हुए दुष्कर्म की क्षमा भी मांगी। आल्हा ने राजा को माफ कर दिया और फिर उदल और फुलवा का विवाह बहुत खुशी खुशी करवा दिया गया जिसके बाद वह दोनों खुशी-खुशी अपना जीवन यापन करना शुरू कर दिए।