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Written By एन. पांडेय
Last Updated : गुरुवार, 25 नवंबर 2021 (14:41 IST)

चारधाम देवस्थानम बोर्ड को शीघ्र भंग कर सकती है उत्तराखंड सरकार, विधान परिषद के विरोध में भी उठ रहे स्वर

चारधाम देवस्थानम बोर्ड को शीघ्र भंग कर सकती है उत्तराखंड सरकार, विधान परिषद के विरोध में भी उठ रहे स्वर - Uttarakhand government will soon dissolve Chardham Devasthanam Board
देहरादून। उत्तराखंड में चारधाम देवस्थानम बोर्ड को सरकार शीघ्र भंग कर सकती है। इस मुद्दे पर संतों और अखाड़ों ने भी तीर्थ पुरोहित के समर्थन में सक्रियता शुरू कर दी है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव श्रीमहंत रवीन्द्र पुरी और महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि ने कहा कि प्रदेश सरकार से लगातार वार्ता चल रही है। सरकार का रुख सकारात्मक है और जल्द ही बोर्ड भंग हो जाएगा।
 
उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद देवस्थानम बोर्ड को लेकर पहले ही सरकार से वार्ता कर चुका है। तीर्थ पुरोहितों के हित में ही अखाड़ा परिषद ने सरकार से वार्ता कर देवस्थानम बोर्ड को जल्द से जल्द भंग करने के लिए कहा था। सरकार जल्द देवस्थानम बोर्ड बंद करने की घोषणा कर देगी। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्र भी अब यह संकेत दे रहे हैं कि सरकार इस बोर्ड को भंग करने की घोषणा कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक 27 नवंबर से पहले सरकार देवस्थानम बोर्ड एक्ट को रद्द करने की घोषणा कर सकते हैं।
 
साधु-संत और पुरोहित समाज का विरोध और गर्मी न पकड़े, इस डर से सरकार इसको लेकर माथापच्ची करने में लगी है। चुनाव पूर्व अगर आक्रोश रैली हुई तो भाजपा को लगता है कि इससे विपक्षियों को उसकी खिलाफत को हवा देने में मदद मिल सकती है। मंगलवार को ही कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल के आवास पर तीर्थ पुरोहित हक हकूकधारी महापंचायत के बैनर तले पंडों व पुरोहितों ने प्रदर्शन करते हुए शीर्षासन कर विरोध किया था।
 
27 नवंबर 2019 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने देवस्थानम बोर्ड एक्ट बनाया था। इसी तारीख को 'काले दिन' के रूप में मनाते हुए पुरोहितों ने इस बार 'आक्रोश रैली' की घोषणा कर दी है। इस मामले में सीएम धामी ने हाईपॉवर कमेटी बनाकर पुरोहित समाज को संतुष्ट करने की कोशिश की भी थी लेकिन पुरोहित समाज आरोप लगा रहा है कि इस कवायद से इस मामले में सरकार टालमटोल कर रही है ताकि चुनाव तक यह मामला लटका ही रह जाए।



उत्तराखंड में विधान परिषद की वकालत के विरोध में भी उठ रहे स्वर : कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के उत्तराखंड में विधान परिषद की वकालत करने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने इसको खारिज किया है। सतपाल महाराज ने कहा है कि देशभर के छोटे राज्यों में विधान परिषद का कोई उदाहरण नहीं है। इसलिए उत्तराखंड में विधान परिषद बनाए जाने की बात कहना सरासर बेईमानी और जनता के पैसों की बर्बादी के सिवाय और कुछ नहीं है।
 
इसकी वकालत करते हुए रावत ने उत्तराखंड में 21 सदस्यीय विधान परिषद की वकालत फेसबुक पोस्ट के माध्यम से की थी। उत्तराखंड में विधान परिषद बनाए जाने के विषय पर हरीश की वकालत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सतपाल महाराज ने कहा कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में विधान परिषद का गठन औचित्यहीन और जनता के पैसे की बर्बादी है।
 
उन्होंने कहा कि वे प्रदेश के कांग्रेस नेता को याद दिलाना चाहते हैं कि उन्हीं की पार्टी के एक प्रमुख नेता तत्कालीन चुनाव प्रभारी सुरेश पचौरी के सामने भी जब 2002 में विधान परिषद के गठन का विषय आया था तो उन्होंने स्पष्ट कहा था कि यह व्यवस्था छोटे राज्य में नहीं है। तब उन्होंने इस विषय को चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल करने से इंकार कर दिया था। इसलिए उत्तराखंड में विधान परिषद का कोई औचित्य नहीं है। 
महाराज ने कहा कि हिमाचल के साथ-साथ नवगठित छत्तीसगढ़, झारखंड और देश के अन्य किसी भी छोटे राज्य में विधान परिषद नहीं है। आंध्रप्रदेश तक ने अपने यहां विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव तक पारित किया हुआ है।
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