1953 से पहले के परमिट सिस्टम की याद दिला रही लखनपुर की पाबंदियां
जम्मू। पंजाब के पठानकोट के रहने वाले 88 साल के मग्गर सिंह को उस समय वर्ष 1953 से पूर्व के परमिट सिस्टम की याद आ गई जब उसने कल जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने की खातिर लखनपुर में फार्म भरकर जमा करवाया और फिर उसे कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जम्मू कश्मीर में प्रवेश की अनुमति दी गई।
मग्गर सिंह के बकौल, 1953 से पहले भी ऐसा ही होता था जब रावी दरिया पर बने पुल को पार कर लखनपुर में परमिट लेना पड़ता था, उसके उपरांत ही शेष भारत के लोगों को जम्मू कश्मीर में प्रवेश मिलता था। यह परमिट ठीक उसी प्रकार के वीजा की तरह होता था, जिसे आपको विदेशों में जाने के लिए प्राप्त करना पड़ता है। अब के परमिट प्राप्त करने की प्रक्रिया में इतना ही अंतर है कि प्रत्येक उस व्यक्ति को प्रदेश में आने के लिए अनुमति लेनी पड़ रही है जो प्रदेश से बाहर जाता है, चाहे वह जम्मू कश्मीर का नागरिक ही क्यों न हो।
दरअसल कोरोनावायरस (Coronavirus) के नाम पर लगी पाबंदियां फिलहाल जम्मू कश्मीर में जारी हैं। चाहे सारे देश में एक दूसरे राज्य में प्रवेश करने की पाबंदियां कई महीने पहले हटा ली गई थीं, पर जम्मू कश्मीर में ऐसा नहीं है। जम्मू के प्रवेश द्वार लखनपुर और कश्मीर के प्रवेश द्वार जवाहर टनल पर यह जारी है। इस सच्चाई के बावजूद कि कोरोना पीड़ितों को तलाशने की खातिर की गई कवायद में लखनपुर में जनवरी में सिर्फ 3 लोग ही हाथ आए, जबकि हजारों लोगों को इस प्रक्रिया के तहत प्रताड़ित किया गया।
जम्मू कश्मीर से देश के अन्य हिस्सों में जाने वाली यात्री बसें भी बंद हैं। चाहे वे सरकारी हैं या फिर प्रायवेट। निजी वाहनों पर रोक तो नहीं है, लेकिन आपको प्रदेश में प्रवेश से पहले एक लंबी और परेशान करने वाली प्रक्रिया के दौर से गुजरना होगा।
उन लोगों के लिए, जिनमें वैष्णोदेवी आने वाले श्रद्धालु और टूरिस्ट सबसे ज्यादा हैं, सबसे अधिक दिक्कतें पेश आ रही हैं जिन्हें सरकारी या प्रायवेट यात्री बसों का इस्तेमाल करते हुए प्रदेश में प्रवेश करना है। शेष देश से आने वाली यात्री बसों को फिलहाल प्रदेश में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई और यात्रियों को रावी दरिया पर बने पुल के पंजाब की तरफ वाले किनारे पर उतरकर लखनपुर में बनाए गए कैंप तक आने के लिए एक किमी का सफर तय करना पड़ रहा है।
फिलहाल प्रशासन इसके प्रति कुछ बोलने को राजी नहीं है कि इस परमिट सिस्टम को कब तक समाप्त किया जाएगा, बावजूद इस सच्चाई के कि केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह इसके प्रति कई महीनों से आश्वासन दे रहे हैं। यही नहीं अधिकारियों का खुद मानना है कि ये पाबंदियां जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था को भी क्षति पहुंचा रही हैं और पांबदियों के नाम पर हजारों लोगों को परेशान किया जा रहा है।