राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया का मानना है कि प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए भाजपा को कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, वह अपने कर्मों से ही गिर जाएगी।
क्या भविष्य में खुद को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश करेंगे? 2023 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा माने जा रहे पूनिया इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि मेरे लिए हमेशा पद से ज्यादा पार्टी महत्वपूर्ण रही है। पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, उसे मैं हमेशा चुनौती के रूप में स्वीकार करूंगा।
पूनिया कहते हैं कि फिलहाल तो अध्यक्ष के रूप में मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी और चुनौती यह है कि संगठनात्मक रूप से पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत बनाऊं और इस काम में कार्यकर्ताओं के साथ मैं पूरे मनोयोग से जुटा हुआ हूं, जिसके भविष्य में निश्चित ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
काम के प्रति निष्ठा ने बनाया प्रदेशाध्यक्ष : पूनिया बताते हैं कि मैं भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष अपने काम की वजह से एवं पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा के कारण बना हूं। मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूं तथा मेरी राजनीतिक पहुंच भी नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा में सबसे अच्छी सकारात्मक बात यह है कि यहां सिर्फ काम को महत्व मिलता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी साधारण व्यक्ति से आज प्रधानमंत्री पद के मुकाम तक पहुंचे हैं। यह भाजपा में ही संभव है। एमपी में शिवराजसिंह चौहान, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर एवं यूपी में योगी आदित्यनाथ भी इसके बड़े उदाहरण हैं।
मुख्यमंत्री पद का चेहरा : आपको 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में भी देखा जा रहा है? इसके जवाब में पूनिया कहते हैं कि सबसे अहम बात तो यह है कि कठोर परिश्रम कर पार्टी चुनाव में विजय दिलवाएं। जहां तक मुख्यमंत्री पद की बात है तो यह तय करना पार्टी का काम है।
मेरा मानना है कि सत्ता अथवा कुर्सी के लिए कोई संघर्ष नहीं होना चाहिए। हालांकि मुझे उम्मीद है कि जिस प्रकार पार्टी ने मुझे प्रदेशाध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया है, उसी प्रकार पार्टी मेरे काम को ध्यान में ध्यान में रखकर भविष्य में भी सम्मान देगी। पूनिया कहते हैं कि कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए नेता को स्वयं को साबित करना होता है। इसके लिए वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उदाहरण सामने रखते हैं, जिनसे कार्यकर्ता प्रेरित होते हैं।
पूनिया कहते हैं कि कोरोना काल में जिस तरह हम कार्य कर रहे हैं, इसकी कल्पना भी नहीं की थी। हमने करीब डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों तक भोजन पहुंचाया। 50 लाख से अधिक लोगों के बीच सूखे राशन की सामग्री बांटी। प्रधानमंत्री सहायता कोष में पचास करोड़ से भी अधिक की सहायता राशि पहुंचाई। प्रदेश में करीब दो लाख भाजपा कार्यकर्ता कोरोना राहत कार्यों में दिन-रात लगे रहे।
हार को चुनौती के रूप में स्वीकार किया : पूनिया कहते हैं कि 2013 में भाजपा की लहर के बावजूद भाग्य ने साथ नहीं दिया और वे मात्र 329 वोटों से आमेर सीट से चुनाव हार गए। इस हार से वे निराश नहीं हुए बल्कि इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया। परिणाम के बाद ही फिर से जुट गए। लगातार मतदाताओं और कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहे। यही कारण रहा कि 2018 में विपरीत स्थितियों के बावजूद पूनिया चुनाव जीतने में सफल रहे। इसी के साथ विशेष अभियान चलाकर राजस्थान में 69 लाख भाजपा सदस्य बनवाए। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। पूनिया अब भी पार्टी के लिए रोज 15 से 18 घंटे काम करते हैं।
खुद गिर जाएगी गहलोत सरकार : पूनिया मानते हैं कि राजस्थान की गहलोत सरकार को भाजपा को गिराने की जरूरत नहीं है। यह सरकार अपने कर्मों से ही गिर जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य की कांग्रेस सरकार काम कम और राजनीति ज्यादा कर रही है। कांग्रेस के भीतर अंतर्कलह ही सरकार को ले डूबेगी। यदि भविष्य में यह सरकार गिरती है तो इसमें भाजपा की कोई भूमिका नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि मैं महत्वाकांक्षी हूं, लेकिन अति-महत्वाकांक्षी बिलकुल भी नहीं हूं। मेरी मेहनत का पुरस्कार पार्टी ने हमेशा से ही मुझे दिया है। इसके लिए मुझे कभी भी कुछ मांगना नहीं पड़ा। वर्तमान में तो अध्यक्ष होने के नाते मेरा पूरा फोकस इस बात पर है कि संगठन मजबूत बने। अभी मेरा एकमात्र लक्ष्य है कि अगले चुनाव पार्टी को भारी बहुमत से विजय हासिल करे।
वह अद्भुत क्षण जब पीएम ने प्रशंसा की : पूनिया कहते हैं कि मेरा प्रधानमंत्री से मिलना एवं उनका मुझे शाबासी देना एक अद्भुत एवं खुशी देने वाला क्षण था। कोरोना महामारी के दौरान किए गए कार्यों के लिए भी शीर्ष नेतृत्व की सराहना मुझे मिली। वे कहते हैं कि दूसरे प्रदेशों के मुकाबले राजस्थान भाजपा ने विपक्ष में होते हुए भी बेहतरीन काम किया है।
पोकरण परीक्षण ने बदली हवा : पूनिया कहते हैं कि 1998 के चुनाव में भाजपा को 33 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। इससे कार्यकर्ताओं के मनोबल में भी गिरावट आई थी। लेकिन, तत्कालीन अटलबिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पोकरण में किए गए परमाणु परीक्षण ने हवा बदल दी। इससे न सिर्फ भाजपा के पक्ष में माहौल बना बल्कि कार्यकर्ताओं में अद्भुत उत्साह का संचार हुआ। पार्टी को मजबूत करने के लिए पूनिया ने विभिन्न यात्राएं निकालीं एवं प्रदेश भर में कार्यकर्ताओं को जोड़ने का काम किया।
संगठन ही राजनीतिक गुरु : राजनीति में गुरु जैसा तो कुछ भी नहीं है। संगठन को ही हम गुरु मानते हैं। पूनिया कहते हैं कि मैं कभी व्यक्ति के पीछे नहीं भागा, लेकिन पुराने नेताओं हमेशा सीखने की कोशिश की और उन्हें पूरा सम्मान भी दिया। इनमें भैरोंसिंह शेखावत, ललित किशोर चतुर्वेदी, रघुवीरसिंह कौशल, हरिशंकर भाभड़ा, भंवरलाल शर्मा, वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला आदि के साथ काम करने और सीखने का मौका मिला। कहीं न कहीं इन सबने मेरे राजनीतिक जीवन में गुरु की ही भूमिका निभाई।
कोई भी पूर्ण नहीं होता : डॉ. सतीष पूनिया मानते हैं कि कोई भी व्यक्ति 24 कैरेट का नहीं होता है। उसमें कुछ सकारात्मकता होती है तो कुछ नकारात्मकता भी होती है। वे अपनी अपनी सफलता का श्रेय अपने संस्कारों और परिजनों को देते हैं। सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, ब्रिटेन आदि देशों की यात्राएं भी पूनिया कर चुके हैं।
भैरोंसिंह शेखावत का सच होता बयान : पूनिया कहते हैं कि मैंने 2000 में करीब 20 साल पहले राजगढ़-सादुलपुर (चूरू) से उपचुनाव लड़ा था। राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने कहा था कि सतीश पूनिया को मैंने खड़ा किया है। मैंने इनको जिताने की जिम्मेदारी भी ली है। सारे आपस के मतभेद भूल जाओ। कोई भी यदि उनके प्रति मतभेद रखेगा तो आज भले ही सतीश घाटे में रहेंगे, मगर जो मतभेद रखेंगे वे भविष्य में घाटे में रहेंगे। आज जब पूनिया भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष हैं, तब शेखावत की वह बात सच ही प्रतीत होती है।
लीडरशिप अनुवांशिक गुण : पूनिया मानते हैं कि पैतृक संस्कारों के कारण ही व्यक्ति में लीडरशिप के गुण आते हैं। भूगोल में पीएचडी डॉ. पूनिया का उच्च शिक्षा के लिए जयपुर आने तक राजनीति में आने का कोई विचार नहीं था। कॉलेज के दिनों में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। राजस्थान विश्वविद्यालय से एलएलबी की शिक्षा भी पूर्ण की। पत्रकारिता में भी हाथ आजमाने चाहते थे, लेकिन अपरिहार्य कारणों से डिग्री पूरी नहीं कर पाए। पिताजी एवं भाई की मौत ने विचलित किया। इन दोनों घटनाओं से उबरने में काफी वक्त भी लगा।
पारिवारिक पृष्ठभूमि : चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के बेवड़ गावं में 20 दिसंबर 1964 में जन्मे सतीश पूनिया को राजनीति विरासत में मिली। ताऊ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, वहीं पिता सुभाष पूनिया 1964 से 1977 तक राजगढ़ पंचायत समिति के प्रधान रहे।
छात्र राजनीति : पूनिया कहते हैं कि मैं सबसे पहले विद्यार्थी परिषद के संपर्क में आया। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़ गया। संघ की शाखाओं में भी गया। परिजन चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं या फिर फौज में जाऊं, लेकिन नियति मुझे राजनीति में ले आई और मैं यही रम गया।
वर्ष 1989 में राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव रहे पूनिया 1992 से 1998 तक भाजयुमो के प्रदेश मंत्री रहे तथा 1998 से 1999 तक भाजयुमो के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे। 2004 से 2014 तक प्रदेश महामंत्री के रूप में भी काम किया। इसके अलावा पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों का दायित्व भी निभाया। पूनिया ने बताया कि वे भाजपा की कोर समिति का सदस्य होने के नाते 2019 के लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक भी रहे। वर्तमान में आमेर विधानसभा सीट से विधायक एवं राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं। पूनिया अपने राजनीतिक करियर में कई बार विभिन्न आंदोलनों में भी जेल गए।