• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. प्रादेशिक
  4. political crisis in uttarakhand
Written By निष्ठा पांडे
Last Modified: शुक्रवार, 2 जुलाई 2021 (20:10 IST)

उत्तराखंड में सियासी संकट, CM तीरथ रावत दे सकते हैं इस्तीफा

उत्तराखंड में सियासी संकट, CM तीरथ रावत दे सकते हैं इस्तीफा - political crisis in uttarakhand
देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक पत्र सौंपा है, जिसमें लिखा है कि उत्तराखंड में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। लिहाजा वो मौजूदा समय में मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह सकते। एक तरह से इस पत्र के जरिए रावत ने इस्तीफे की घोषणा कर दी है। 
 
अब यह कहा जा रहा है कि नया मुख्यमंत्री विधायकों के बीच से ही चुना जाएगा। सूत्रों की मानें तो तीरथ ने शनिवार को राज्यपाल से मुलाकात का भी वक्त मांगा है। माना जा रहा है कि वे राज्यपाल को इस्तीफा सौंपेंगे। हालांकि रावत चुनाव आयोग को पत्र देकर उपचुनाव कराने की गुहार भी लगा चुके हैं, लेकिन उपचुनाव की संभावना कम होने से वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
 
देहरादून में जुटने लगे हैं विधायक : नए मुख्यमंत्री के चुनाव के लिए देहरादून में विधायक जुटने लगे हैं। 
उत्तराखंड में सियासी संकट को लेकर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तीन दिन से दिल्ली थे। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने मीडिया से कहा कि उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से विकास कार्यों को लेकर मुलाकात हुई। तेजी से उत्तराखंड में विकास कार्यों को बढ़ाया जाएगा।
 
सियासी संकट को लेकर उठे सवालों में उन्होंने विपक्ष को लेकर कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि केंद्र ने जो कहा है, उसे करेंगे। उसी हिसाब से बढ़ेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि उपचुनाव का मसला चुनाव आयोग को देखना है। इस बीच सीएम तीरथ सिंह रावत दिल्ली से देहरादून के लिए रवाना हुए हैं।
 
 
उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्द्वानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होगा। इसका मतलब है कि इस विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने ही बचे हैं। लोकसभा सदस्य तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के छह माह के भीतर विधायक बनना जरूरी है। अगर ऐसे देखा जाए तो 9 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत के बने रहने संभव नहीं है।
 
क्या कहती है धारा 151-ए : जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151-ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी है। वहीं, तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा का उपचुनाव लड़ना और जीतना जरूरी है। अब जबकि तीरथ ने राज्यपाल से मुलाकात का वक्त मांगा है तो एक बार राज्य में कहानी कुछ मार्च माह की तरह ही नजर आ रही है। तब विधानसभा के गैरसैंण में आयोजित सत्र को अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था।
 
तत्कालीन सीएम सहित समस्त विधायकों को देहरादून तलब किया गया था। छह मार्च को भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून आए थे। उन्होंने भाजपा कोर कमेटी की बैठक के बाद फीडबैक लिया था। इसके बाद उत्तराखंड में आगामी चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला केंद्रीय नेताओं ने लिया था। इसके बाद मंगलवार नौ मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं, दस मार्च को भाजपा की विधानमंडल दल की बैठक में तीरथ सिंह रावत को नया नेता चुना गया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। 
 
दस मार्च की शाम चार बजे उन्होंने एक सादे समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की।
 ठीक उसी तर्ज पर इस बार भी रामनगर में आयोजित भाजपा के तीन दिनी चिंतन शिविर में भाग लेकर मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री देहरादून पहुंचे। बुधवार सुबह वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए। देर रात ही उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात करने की सूचना मिली। इसके साथ ही कई तरह की चर्चाओं ने तेजी से जोर पकड़ा हुआ है। ये बुलावा भी अचानक आया। 
 
बुधवार के उनके कई कार्यक्रम उत्तराखंड में थे, लेकिन उन्हें छोड़कर सीएम दिल्ली दरबार में उपस्थित होने के लिए रवाना हो गए थे। बताया गया कि पार्टी हाईकमान ने उन्हें दिल्ली तलब किया। इस बीच तीरथ सिंह रावत उसी रात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। वह गृहमंत्री अमित शाह से भी मिले। इसके बाद आज उन्होंने उत्तराखंड में उपचुनाव कराने को लेकर चुनाव आयोग को पत्र दिया। 
 
हालांकि चुनाव आयोग पहले ही कोविड काल में उपचुनाव कराने से मना कर चुका है। 
पिछले तीन दिन से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आलाकमान से बैठकों में व्यस्त मुख्यमंत्री रावत ने शुक्रवार को बीजेपी के अध्यक्ष नड्डा से मुलाकात की। ये मुलाकात कुल 40 मिनट तक चली। बैठक के बाद सीएम कावेरी अपार्टमेंट पहुंचे। बाद में उन्होंने कहा कि वे विकास को लेकर नड्डा से मिले।
 
अब सवाल ये उठता है कि जून माह में ही उन्होंने तीन बार दिल्ली दौरे किए। क्या पहले विकास की बात नहीं हुई, जो फिर से उत्तराखंड में अपने कार्यक्रम खारिज कर जेपी नड्डा से मिलना पड़ा। 
बुधवार से तीन दिन तीरथ सिंह रावत दिल्ली रहे। उनकी स्थिति असमंजस की बनी रही। उनकी सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई। वह अन्य किसी नेता से नहीं मिले। 
 
नजर निर्वाचन आयोग पर : पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज भी दिल्ली में डेरा जमाए रहे। हर बार दिल्ली दौरे की तरह न तो उनकी कोई फोटो जारी हुई और न ही कोई प्रेस नोट। न ही वे मीडिया से मिले। ऐसे में उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं भी जोरों पर रही। तीरथ को गुरुवार को देहरादून पहुंचना था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें रुकने के लिए कहा। हांलाकि चुनाव को लेकर गेंद निर्वाचन आयोग के पाले में है।
 
ये भी पढ़ें
19 जुलाई से संसद का मानसून सत्र, समापन 13 अगस्त को