परोपकार शब्द को सार्थक करती युवाओं की टोली
इंदौर। परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई। रामचरितमानस की यह पंक्ति आज के जमाने में कहां सार्थक होती है, लेकिन इंदौर में इसकी मिसाल देखने को मिल रही है।
इंदौर के सबसे बड़े अस्पताल महाराजा यशवंतराव हॉस्पिटल में कुछ युवाओं की टोली परोपकार के काम जुटी हुई है। दूर-दूर से इंदौर में इलाज के लिए आने वाले रोगियों और उनके परिजनों को भोजन, रैनबसेरा और दवा उपलब्ध कराकर सेवा का कार्य कर रहे है।
इंदौर के सुदामा नगर निवासी विक्की मालवीय ने बताया कि उनके ग्रुप में पचास युवा परमार्थ के काम से जुड़े हुए हैं। सभी अपनी पॉकेट मनी का उपयोग करके इस कार्य में योगदान दे रहे हैं। विक्की ने आगे कहा कि बारिश के समय दूर के गांवों से आने वाले रोगियों और उनके परिजनों को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिए हमारी तरफ से कुछ व्यवस्थाएं की गई हैं। युवा हॉस्पिटल में रोगियों के लिए दवा का प्रबंध कराने, भोजन उपलब्ध कराने और ठहरने के लिए रैनबसेरा की सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
विक्की ने आगे बताया कि उन्हें यह सब करने की प्रेरणा गुरुजी पुरुषोत्तम नारायण कोरोन्ने से मिली। जो करता है सेवा, उसको मिलता है मेवा की पंक्ति को सार्थक करते हुए इस टोली के युवा निस्वार्थ भाव से कार्य कर रहे है। उन्होंने आगे जोड़ा कि इस कार्य को आगे बढ़ाने और सतत जारी रखने का हमने प्रण लिया है। इस परोपकारी कार्य से धीरे-धीरे और युवा जुड़ते जा रहे हैं। आगे उनका यह लक्ष्य है कि एमवाय हॉस्पिटल में आने वाला कोई भी मरीज परेशान न हो।