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डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने बताए सस्टेनेबल शादी के राज, न शादी में कचरा करें न अपनी शादी का कचरा करें

डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने बताए सस्टेनेबल शादी के राज, न शादी में कचरा करें न अपनी शादी का कचरा करें - janak palta sustainable marriage
डॉ. जनक पलटा मगिलिगन ने अपनी शादी की 33 वीं सालगिरह के अवसर अपने जीवन के अनुभव और विचार साझा किए.... 
 
 
जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निदेशिक सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री से सम्मानित  डॉ. जनक पलटा मगिलिगन अपने जीवन से जुड़े हर अवसर को सामाजिक आयोजन में बदल कर मार्गदर्शन देती हैं....चाहे वह उनके जन्मदिन पर आयु के अनुसार पौधारोपण हो या फिर शादी की सालगिरह....इस साल अपनी शादी की सालगिरह पर क्रिश्चियन एमिनेंट कॉलेज के छात्र-छात्राओं और विवाहित युगलों को सस्टेनेबल शादी : शादी में और शादी का 'कचरा' नहीं करना  विषय पर उन्होंने संबोधित किया....और जीवन से जुड़े मर्मस्पर्शी अनुभव को साझा किए...।
 
 स्वस्थ जीवनशैली और सस्टेनेबल शादी के सूत्रों पर केंद्रित इस  कार्यक्रम की रूपरेखा 2 भागों में प्र्स्तुत की, पहले भाग का उद्देश्य यह था कि कैसे शादी समारोह के बाद होने वाला कचरा भी कम से कम हो| इंदौर को विश्व पटल पर अंकित करने वाली जनक दीदी ने जीरो वेस्ट शादी को एक मुहिम की तरह अपनाए जाने का आग्रह किया।
 
दीदी जनक पलटा ने कहा कि सस्टेनेबल मैरिज के लिए अपने जीवन साथी के साथ किस तरह सामंजस्य बिठाकर जीवन को अर्थवान  बनाया जा सकता है...उन्होंने अपने जीवन के कुछ मार्मिक प्रसंग साझा किये... उनके अनुसार उनके पति जिम्मी मगिलिगन के साथ उनकी बहाई शादी सेवाप्रिय जीवन को इसीलिए समर्पित रही क्योंकि उनके सामने विवाह नामक संस्था का दिव्य और पवित्र उद्देश्य स्पष्ट था।
 
वे अपने 1988 -2011 तक सफल रहे दाम्पत्य जीवन को  याद करती है...कैसे वे और उनके पति मानवता रुपी पक्षी के दो समान पंख की तरह जीने की दिशा में  प्रयासरत रहे। शादी के पहले से ही दोनों मानते थे -मानव जीवन आध्यात्मिक वास्तविकता है, न कि केवल भौतिक, सामाजिक....
 
 उन्होंने बताया  21 अप्रैल 2011 को जिम्मी मगिलिगन के चले जाने के बाद  मैंने अपने आप को उनकी आत्मा और परमात्मा से ऊर्जा और शक्ति के साथ सस्टेनेबल बनाया ! 
 
भारतीय संस्कृति में वैवाहिक वर्षगांठ  की परम्परा का इतना चलन नहीं था और पति के चले जाने के बाद, शादी सालगिरह मनाने का प्रश्न नहीं उठता !  महिला विधवा हो जाती है और सुहाग की सभी निशानीयां  भी हटा देती है जैसे मांग में सिंदूर, बिंदी, मंगल- सूत्र, बिछिया  ,चूड़ियाँ , श्रृंगार आदि ! वह अशुभ हो जाती है उसे  पारिवारिक शादियों और शुभ अवसरों में भाग लेने की अनुमति  नहीं होती है| ”  
 
समाज के इस रूढ़ दृष्टिकोण के प्रति मुझे समाज में अपनी  भूमिका का एहसास हुआ और अपने पति के चले जाने के बाद 2011 से खुद पहले जैसा जीवन जी  रही हूं कि मैं  एक सुखी शादी-शुदा महिला हूँ और सामाजिक प्राणी भी हूँ। 

कार्यक्रम में  जिम्मी  और जनक मगिलिगन फाउंडेशन  फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के ट्रस्टी  श्री वीरेंद्र गोयल ने कहा कि  दीदी के जीवन से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए और युवाओं को बताया कि खाने का वेस्ट भी क्रिमिनल वेस्ट  है। हमें ऑनलाइन खरीद की संस्कृति  को कम से कम प्रयोग में लाते हुए स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए।
 
  वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी ''स्वाहा'' से जुड़े समीर शर्मा ने बताया इंदौर में प्रतिदिन 1300 टन वेस्ट  कचरा निकलता है और शादी-ब्याह के सीजन में एक शादी में  कम से कम 500 किलो कचरा अतिरिक्त निकलता है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि  सैकड़ों की संख्या में होने वाली शादियों से प्रतिदिन कितना कचरा निकलता होगा यह कचरा पर्यावरण के साथ-साथ जेबों पर भी भारी पड़ता है ।   
 
कार्यक्रम में जनक दीदी द्वारा अपने सामाजिक दायित्वों  के निर्वहन में परिवार और जीवन साथी के साथ सामंजस्य  पर उनके अनुभव सुनकर श्रोता भावुक हो गए।