असम : दरांग में 'अवैध कब्जाधारी' किसानों से खाली कराई जमीन पर सरकारी खेती परियोजना शुरू
धलपुर (असम)। असम के दरांग जिले में 7000 से ज्यादा किसानों को कथित तौर पर 'अवैध कब्जेवाली जमीन' से हटाने के बाद वहां प्रदेश सरकार की 'आधुनिक कृषि तकनीकों' को लाने की महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू हो गई है।
करीब 500 मूल निवासी युवाओं को गोरुखुटी कृषि परियोजना के लिए काम पर रखा गया है। यह परियोजना अल्पसंख्यक समुदाय के किसानों को हटाए जाने के बाद खाली हुई जमीन पर शुरू की गई है।
असम सरकार का दावा है कि हटाए गए लोग 'अनधिकृत तौर पर जमीन पर खेती' कर रहे थे और उन्हें बेदखली अभियान चलाकर इस महीने के शुरू में जमीन से हटाया गया था। इस दौरान किसानों और पुलिस के बीच हुई झड़प के दौरान पुलिस गोलीबारी में 12 साल के एक लड़के समेत दो लोगों की मौत भी हो गई थी।
लोकसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिलीप सैकिया ने कहा कि “कुछ लोग” पूरी परियोजना का 'राजनीतिकरण और सांप्रदायिकरण' करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकार “राज्य के विकास” की दिशा में आगे बढ़ने के लिए दृढ़संकल्पित है।
उन्होंने कहा, हमने करीब 40-50 बीघा (लगभग 15 एकड़) भूमि पर खेती शुरू कर दी है। हमने पालक, लौकी और कद्दू की खेती के साथ शुरुआत की है। बेदखली के मुद्दों के कारण काम में थोड़ी देर हुई। अधिकतर विपक्षी दलों और स्थानीय किसानों द्वारा बेदखली का विरोध किया गया है।
इन किसानों का दावा है कि वे भाजपा समेत पूर्ववर्ती सरकारों की जानकारी में दशकों से जमीन पर खेती करते रहे हैं। प्रदेश सरकार का हालांकि तर्क है कि चर भूमि (नदी के मार्ग स्थानांतरण के कारण बने रेत के हिस्से) पर खेत हमेशा राज्य के थे और उन पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया था।
सैकिया ने कहा कि हमने परियोजना के लिए लड़कियों सहित 500 युवाओं को काम पर रखा है। हम उन्हें अन्य सुविधाओं के अलावा 6,000 रुपये प्रति माह देने की सोच रहे हैं। अब हम परियोजना स्थल पर उनके (नए श्रमिकों के) लिए शिविरों का निर्माण करेंगे।
सैकिया गोरुखुटी कृषि परियोजना समिति के सदस्य हैं, जिसकी अध्यक्षता भाजपा विधायक पद्मा हजारिका के पास है। विधायक मृणाल सैकिया और परमानंद राजबोंगशी भी समिति के सदस्य हैं।
असम सरकार ने इस परियोजना के लिए चालू वित्त वर्ष में 9.60 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं ताकि क्षेत्र में 77,420 बीघा भूमि में 'आधुनिक कृषि तकनीक और वैज्ञानिक पशु पालन प्रथाओं' को अपनाया जा सके। इस क्षेत्र को सिपाझर भी कहा जाता है।(भाषा)