अमरनाथ यात्रा मार्ग पर लगा पहला सोलर कॉन्सन्ट्रेटर, धुएं व प्रदूषण से मिलेगी मुक्ति
जम्मू। सन् 2022 की अमरनाथ यात्रा अपने साथ कुछ नई राहें और भविष्य की नई संभावनाएं लेकर आई है। इसमें तीर्थयात्रा से पुण्य कमाने के साथ आने वाली पीढ़ियां बरसों तक ताजी हवा की सांस ले सकें, इसके भी भागीदार श्रद्धालु बन रहे हैं। इसी दिशा में पिछले सप्ताह बालटाल बेसकैंप में पहला पैराबोलिक सोलर कॉन्सन्ट्रेटर इंस्टॉल किया गया है।
पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए उठाए गए कदमों में से यह एक महत्वपूर्ण कदम है। बाबा अमरनाथ, पहाड़ों के बीच गुफा में स्थित है जिसे पवित्र गुफा कहा जाता है। यहां तक जाने के लिए श्रद्धालुओं को कई पड़ाव पार करना होते हैं। ऐसे में भोजन बनाना, गर्म पानी आदि के लिए लगातार प्रकृति का दोहन सालों से किया जाता रहा है। पहाड़ों पर लगे पेड़ों की लकड़ी, कोयला, कार्ड बोर्ड, प्लास्टिक सब आग में जलाए जाते हैं। इससे लगातार धुआं पर्यावरण को प्रदूषित करता जा रहा है।
बालटाल में लगे सोलर कॉन्सन्ट्रेटर पर 16-16 स्क्वेयर मीटर की 2 सोलर डिश लगाई गई हैं। इन डिशों पर लगे कांच पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो उसका रिफ्लेक्शन एक फोकल पॉइंट पर इकट्ठा होता है जिससे सोलर एनर्जी एक जगह कॉन्सन्ट्रेट होती है। उसकी मदद से हम कुकिंग कर सकते हैं। सामान्य परिस्थिति में ये 700 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान अचीव किया जा सकता है।
मालूम हो कि इस बार जम्मू-कश्मीर रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट एवं पंचायत विभाग ने अमरनाथ तीर्थयात्रा मार्ग की सफाई का जिम्मा लिया है। इसी पहल का हिस्सा है इस सोलर कॉन्सन्ट्रेटर को स्थापित करना। इस काम को करने की जिम्मेदारी मिली है इंदौर के स्टार्टअप 'स्वाहा' को। ये पायलट प्रोजेक्ट सफल होता है तो लंगरों में भोजन बनाने या गर्म पानी के लिए लकड़ी या कोयला जैसे फ्यूल जलाने की जरूरत ही नहीं होगी। इससे धुएं से तो मुक्ति मिलेगी ही, पेड़ों की कटाई भी रुकेगी। अमरनाथ यात्रा के बाद वायु प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है यह सोलर कॉन्सन्ट्रेटर के बाद बहुत कम हो सकता है।
'स्वाहा' के समीर शर्मा ने बताया कि यूनाइटेड नेशन के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल 20-30 मिशन के अंतर्गत भारत सरकार लगातार यह प्रयास कर रही है कि जल्द से जल्द रिन्यूएबल एनर्जी सोर्सेस और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अंतर्गत आने वाले इनोवेशन्स को जगह दी जाए। इससे न सिर्फ प्रदूषण घटता है बल्कि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की तरफ हम आगे बढ़ते हैं। अगर ये प्रयोग सफल रहा तो आने वाले सभी धार्मिक आयोजनों में लकड़ी, कचरा व अन्य फॉसिल फ्यूल का न सिर्फ प्रयोग घटेगा प्रदूषण भी कम होगा।
कैसे काम करता है सोलर कॉन्सन्ट्रेटर? : 'स्वाहा' की टीम ने बताया कि इसे शेफलर सोलर डिश या पेराबोलिक सोलर कॉन्सन्ट्रेटर भी कहते हैं। बालटाल में लगे सोलर कॉन्सन्ट्रेटर पर 16-16 स्क्वेयर मीटर की 2 डिश लगाई गई हैं। इन डिश पर लगे कांच पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो उसका रिफ्लेक्शन एक फोकल पॉइंट पर इकट्ठा होता है। सोलर एनर्जी एक जगह कॉन्सन्ट्रेट होती है और उसकी मदद से हम कुकिंग कर सकते हैं। दूसरे थर्मल काम भी कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि यह तकनीक 20-25 वर्ष पहले भारत में आई। सरकार ने देशभर में इसे 4 जगह लगाया। एक डिश इंदौर में बरली संस्थान में लगाई गई जिसे डॉ. जनक पलटा मगिलिगन और जेम्स मगिलिगन के साथ लगाया और चलाया। मात्र वो एक ऐसी संस्था रही़, जहां भोजन भी सोलर इनर्जी से बनता था और पानी भी उसी से गर्म होता रहा। बालटाल में लगा यह सोलर कॉन्सन्ट्रेटर एक सक्सेसफुल डिजाइन है जिसमें 700 डिग्री तक तापमान अचीव किया जा सकता है।