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52 साल की उम्र में 104 बार रक्तदान कर इंदौर के फिरोज दाजी ने कायम की मिसाल

Firoze Daji | 52 साल की उम्र में 104 बार रक्तदान कर इंदौर के फिरोज दाजी ने कायम की मिसाल
पिछले साल 21 सितंबर की ही बात है, जब समाजसेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले इंदौर के फिरोज दाजी ने 100वीं बार 'रक्तदान करने का शतक' पूरा किया था। उम्र के 52वें साल के पड़ाव पर रहने वाले फिरोज ने एक बार फिर 21 सितंबर 2019 को 104वीं बार स्वेच्छिक रूप से रक्तदान कर पूरे शहर के लिए नई मिसाल कायम की है।

चुपचाप जाकर किया रक्तदान : इंदौर के भविष्य निधि कार्यालय में पदस्थ फिरोज दाजी की सामाजिक सेवा की मिसालें दी जाती हैं। उन्होंने एक बार फिर 104वीं बार रक्तदान कर किसी मरीज को नया जीवन दिया है। जब उन्होंने रक्तदान का शतक पूरा किया था, तब पूरे शहर में उनकेकाफी चर्चे हुए थे लेकिन हमेशा की तरह वे चुपचाप एक अस्पताल पहुंचे और रक्तदान किया। इसके लिए न तो प्रचार किया गया और न ही मीडिया को जानकारी दी गई।

सिर्फ अपना नागरिक कर्तव्य निभा रहा हूं : फिरोज ने बताया कि मैं जब भी रक्तदान करके वापस आता हूं, मन में अजीब-सी शांति मिलती है कि अपन भी समाज को कुछ दे रहे हैं। समाज से हमने हमेशा पाया ही है। हमारे भी कुछ नागरिक कर्तव्य हैं। हर व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर सामाजिक कार्य करता है। मेरा रक्त किसी इंसान के काम आए, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। यह सब मैं किसी नाम या रिकॉर्ड के लिए नहीं करता हूं, बल्कि मुझे खुशी होती है कि मेरे इस कार्य से दूसरे लोग प्रेरित होते हैं। इंदौर में तेजी से रक्तदाताओं की संख्या में इजाफा हो रहा है।

किसी की जिंदगी बचाना सबसे बड़ा पुण्य : फिरोज के अनुसार मैंने अकसर देखा है कि जब किसी का अपना अस्पताल के बिस्तर पर जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहा होता है और डॉक्टर्स जान बचाने के लिए खून की बोतलों का इंतजाम रखने का कहते हैं, तब पीड़ित के परिजनों पर क्या गुजरती है। यही कारण है कि मैं खुद ही नहीं बल्कि मेरे सर्कल में सभी लोग समय-समय पर रक्तदान कर लोगों की जिंदगी बचाने में अपना छोटा सा योगदान कर रहे हैं।

'रक्तदान के शतक' पर 100 से ज्यादा लोगों ने किया था रक्तदान : फिरोज दाजी ने जब 21 सितंबर 2018 को जीएसआईटीएस के सामने स्थित बाल विनय मंदिर स्कूल में 100वीं बार रक्तदान किया था, तब उनसे प्रेरित होकर एक ही दिन में 108 लोगों ने ब्‍लड बैंक की वैन में रक्तदान किया था। इनमें बाल विनय मंदिर के पूर्व छात्र-छात्राएं भी शामिल थे, क्योंकि फिरोज दाजी की स्कूली शिक्षा यहीं पर हुई थी।

रक्तदान की रोचक दास्तां : एक विशेष मुलाकात में 52 वर्षीय फिरोज दाजी ने बताया कि मैंने पहली बार रक्तदान 1988-89 में किया था। तब मैं पलासिया इलाके में रहता था और घर के पास ही अंतरराष्ट्रीय अंपायर नरेन्द्र सेन रहा करते थे। उनके एक रिश्तेदार बंगाल से आए हुए थे। तबीयत खराब होने के कारण वे एमवाय अस्पताल में भर्ती थे। तब उन्हें खून देकर मैंने उनकी जान बचाई थी।

पत्नी और बेटा भी महादान में शरीक : फिरोज ने बताया कि मेरी पत्नी वंदना दाजी इंदौर के प्रतिष्ठित सत्य सांईं स्कूल में वाइस प्रिंसीपल हैं और वे भी रक्तदान करती हैं। मेरे 100वें रक्तदान पर उन्होंने 6ठी बार और बड़े बेटे अनोश ने भी 6ठी मर्तबा रक्तदान किया था। मुझे दिली खुशी है कि मेरे साथ मेरा परिवार भी इस समाज सेवा में हर कदम पर मेरा उत्साह बढ़ा रहा है।

भविष्य निधि की भारतीय टीम में खेल चुके हैं फिरोज : फिरोज ने स्कूल स्तर पर क्रिकेट खेला और फिर ओपन क्रिकेट के बाद इंदौर की भविष्य निधि टीम का प्रतिनिधित्व किया। वे भारतीय भविष्य निधि टीम में भी अपनी छाप छोड़ चुके हैं। पिछले 3 साल से ही उन्होंने खेलना छोड़ा है लेकिन अपनी फिटनेस को बरकरार रखने के लिए व्यायाम करना नहीं छोड़ा।

पहले सिद्धांत की राजनीति, अब मौके की राजनीति : कॉमरेड होमी दाजी इंदौर के सांसद रह चुके हैं। उनकी ईमानदारी की मिसाल आज तक दी जाती है। फिरोज होमी दाजी के भतीजे हैं। फिरोज ने कहा कि पहले सिद्धांतों की राजनीति होती थी लेकिन अब मौके की राजनीति का चलन हो गया है। इसके बाद भी इंदौर के कई राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने शहर के लिए अच्छा काम किया है।
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