रक्षा बंधन की राखी को पौराणिक काल में यह कहा जाता था, जानिए 5 रहस्य
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष श्रावण महा की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह पर्व 22 अगस्त 2021 रविवार को मनाया जाएगा। आओ जानते हैं कि रक्षा बंधन या राखी को पौराणिक काल में क्या कहा जाता था।
1. मणिबंध : प्राचीनकाल में सबसे पहले मणिबंध नाम का प्रचलन था। हाथों की कलाई को मणिबंध कहते हैं। वैदिक काल में यज्ञ के दौरान, मांगलिक कार्यों के दौरान एक सूत का धागा बांध कर संकल्प मंत्र पढ़ा जाता था, जो आज भी प्रचलन में है। इस सूत के धागे को मणिंबध कहते थे।
2. मौली : यह मणिबंध का विकसित रूप माना जा सकता है। जैसे पहले मात्र सूत के तीन सफेद धागे ही हल्दी में रंग कर बाधें जाते थे परंतु बाद में तीनों धागे अलग अलग रंगे के हो गए। लाल, पीले और हरे रंग में रंगे जाने लगे थे। कभी कभी यह पांच रंगी में होते हैं। जिसमें नीला और सफेद रंग भी होता है। तीन रंग त्रिदेव के प्रतीक और 5 रंग पंचदेव के प्रतीक माने गए। मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है.
3. कलावा : कलाई बर बांधे जाने के कार इसे कलावा कहते हैं। इस ही मौली और नाड़ा भी कहते हैं।
4. रक्षा सूत्र : मणिबंध, मौली या कलावा सभी को संकल्प और रक्षा सूत्र कहा जाता है। यदि मन्नत मांगी है तो इस मन्नत का धागा भी कहते हैं। मन्नत मांगते वक्त भी संकल्प व्यक्त किया जाता है कि मेरी मन्नत पूर्ण हुई तो में प्रसाद चढ़ाऊंगा या यथाशक्ति कोई भी कार्य करूंगा।
5. राखी : उक्त रक्षा सूत्र के कारण ही रक्षा बंधन पर राखी का प्रचनल हुआ। भाई-बहन के इस पवित्र त्योहार को प्रचीनकाल में अलग रूप में मनाया जाता था। पहले सूत का धागा होता था, फिर नाड़ा बांधने लगे, फिर नाड़े जैसा एक फुंदा बांधने का प्रचलन हुआ और बाद में पक्के धाके पर फोम से सुंदर फुलों को बनाकर चिपकाया जाने लगा जो राखी कहलाने लगी। वर्तमान में तो राखी के कई रूप हो चले हैं। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।