सोमवार, 30 सितम्बर 2024
  • Webdunia Deals
  1. चुनाव 2022
  2. विधानसभा चुनाव 2022
  3. चर्चित विधानसभा क्षेत्र
  4. People of Karhal consider Akhilesh as 'boy of the house'
Written By
Last Modified: शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022 (16:56 IST)

अखिलेश को ‘घर का लड़का’ मानते हैं करहल के लोग, भाजपा को 'खामोश इंकलाब' की उम्मीद

अखिलेश को ‘घर का लड़का’ मानते हैं करहल के लोग, भाजपा को 'खामोश इंकलाब' की उम्मीद - People of Karhal consider Akhilesh as 'boy of the house'
करहल (मैनपुरी)। भाजपा ने उत्तर प्रदेश के करहल में समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ कद्दावर नेता को चुनाव मैदान में उतारा है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता दिख रहा हैं क्योंकि यहां के लोग अखिलेश यादव को ‘घर का लड़का’ मानते हैं।
 
भाजपा ने मैनपुरी जिले के करहल विधानसभा क्षेत्र में अखिलेश के खिलाफ केंद्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है, जहां 20 फरवरी को तीसरे चरण का मतदान होगा। कांग्रेस ने सपा प्रमुख के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है, जबकि बसपा ने इस निर्वाचन क्षेत्र में कुलदीप नारायण को उम्मीदवार बनाया है।
 
बघेल और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर एक लहर दिखाई देती है, जबकि बहुत से लोगों को उम्मीद है कि ‘भविष्य के मुख्यमंत्री’ का चुनाव करने से क्षेत्र में तेजी से प्रगति होगी। अखिलेश विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, जिसमें राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और जाति-आधारित क्षेत्रीय दलों का एक समूह शामिल है।
 
करहल इटावा जिले में अखिलेश के पैतृक गांव सैफई से महज चार किलोमीटर दूर है। यह निर्वाचन क्षेत्र मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी लोकसभा सीट का हिस्सा है। अखिलेश ने विधान परिषद सदस्य के रूप में मुख्यमंत्री के पद पर कार्य किया और वर्तमान में आजमगढ़ से सांसद भी हैं। अखिलेश अपने गृह क्षेत्र से पहला विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
 
खामोश इंकलाब की उम्मीद : भाजपा नेताओं और समर्थकों का कहना है कि निर्वाचन क्षेत्र ‘खामोश इंकलाब’ का गवाह बनेगा और उनका उम्मीदवार विजयी होगा। बघेल ने कहा कि करहल में मुकाबले को ‘एकतरफा’ रूप में देखना गलत होगा। उन्होंने अखिलेश को आजमगढ़ से भी नामांकन दाखिल करने के बारे में एक बार सोचने की बात कही।
 
बघेल एक पुलिस अधिकारी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा में सेवा दे चुके हैं। उन्होंने कहा है कि किसी भी क्षेत्र को ‘गढ़’ नहीं कहा जा सकता क्योंकि राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसी हस्तियों ने भी अपने गढ़ों में हार का स्वाद चखा है। बनर्जी 2021 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से अपने पूर्व सहयोगी एवं भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से हार गई थीं, जबकि राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी में भाजपा की स्मृति ईरानी ने हराया था।
 
भाजपा समर्थक आशुतोष त्रिपाठी ने बताया कि यह सीट अखिलेश के लिए आसान हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है। बघेल जी को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है और नरेंद्र मोदी एवं योगी आदित्यनाथ की सरकारों द्वारा गरीबों के लिए शुरू की गई योजनाओं के कारण लोग भाजपा को वापस लाना चाहते हैं।
 
सपा जिलाध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव ने बताया कि किसी और के लिए कोई मौका नहीं है। चुनाव एकतरफा है। जीत का अंतर (अखिलेश का) 1.25 लाख से अधिक होगा। आप जाकर लोगों से बात करें, आपको वास्तविकता का पता चल जाएगा। यदि आप इतिहास को देखते हैं इस निर्वाचन क्षेत्र में आपको सपा के लिए यहां के लोगों के प्यार और स्नेह का पता चलेगा।
 
करहल सीट 1993 से सपा का गढ़ रही है। हालांकि, 2002 के विधानसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के सोबरन सिंह यादव के खाते में गई थी, लेकिन बाद में वह सपा में शामिल हो गए।
 
37 फीसदी वोटर यादव : सूत्रों के मुताबिक करहल में लगभग 3.7 लाख मतदाता हैं, जिनमें 1.4 लाख (37 प्रतिशत) यादव, 34,000 शाक्य (ओबीसी) और लगभग 14,000 मुस्लिम शामिल हैं। बघेल के लिए सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे भाजपा जिलाध्यक्ष प्रदीप चौहान ने कहा कि अब कोई ‘गुंडा राज’ नहीं है। भाजपा सीट जीतेगी। जाति ही सब कुछ नहीं है, यादवों में भी सपा के प्रति नाराजगी है। उन्होंने विश्वास के साथ कहा इस चुनाव में ‘खामोश इंकलाब’ होगा।
 
घर का लड़का : सब्जी मंडी के सब्जी विक्रेता प्रदीप गुप्ता के लिए यह चुनाव क्षेत्र के विकास की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अखिलेश जी जीतेंगे। यहां के लोग उनकी जीत चाहते हैं जैसे ही वह मुख्यमंत्री बनेंगे, निर्वाचन क्षेत्र में विकास दिखाई देगा। वह ‘घर के लड़का’ हैं। केवल वे ही यहां विकास सुनिश्चित कर सकते हैं। आसपास के 8 जिलों- फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज और फरुखाबाद के 29 निर्वाचन क्षेत्रों को ‘समाजवादी बेल्ट’ माना जाता है।
 
2012 में जब सपा ने राज्य में सरकार बनाई, तो इन 29 सीटों में से उसने 25 सीटें जीती थीं, जबकि 2017 में चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ अखिलेश के झगड़े के कारण उसे हार का सामना करना पड़ा और केवल छह सीटें मिलीं। अब, चाचा-भतीजे वोट के बंटवारे को रोकने के लिए एक साथ हैं।
 
एकतरफा मुकाबला : इस क्षेत्र को समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया की ‘कर्मभूमि’ के रूप में भी जाना जाता है। कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष रहे राजनीतिक विश्लेषक उदयभान सिंह को भी लगता है कि करहल में चुनाव एकतरफा होगा। उन्होंने कहा कि अखिलेश के अलावा, केवल दो उम्मीदवार बचे हैं। इसलिए अब निर्दलीय द्वारा वोट नहीं काटा जाएगा। यह अखिलेश के लिए एकतरफा चुनाव होगा और इसका परिणाम और उनके पक्ष में होगा।
 
यह दूसरी बार है जब बघेल अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद सीट पर अखिलेश के साथ उनका मुकाबला हुआ था और बघेल चुनाव हार गये थे। 2009 के फिरोजाबाद लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव से भी बघेल हारे थे और 2014 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद से मुलायम के चचेरे भाई राम गोपाल यादव के बेटे अक्षय के खिलाफ भी बघेल को हार का मुंह देखना पड़ा था। (भाषा)
 
ये भी पढ़ें
आप के CM फेस भगवंत मान पर पंजाब के अटारी में हमला