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Pongal 2023 : कैसे मनाते हैं पोंगल, जानिए पोंगल पर्व का खास अंदाज

Pongal 2023 : कैसे मनाते हैं पोंगल, जानिए पोंगल पर्व का खास अंदाज - Pongal 2023 Significance
pongal 2023 
 
- मोनिका पाण्डेय 
 
एक तरफ जहां उत्तर भारत में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है तो वहीं दूसरी तरफ भारत के दक्षिणी हिस्से में इस दिन पोंगल (Pongal) का पर्व मनाया जाता है। तमिलनाडु में इस पर्व को पूरे चार दिनों तक मनाया जाता है। जिसका पहला दिन भोगी पोंगल, दूसरा दिन सूर्य पोंगल, तीसरा दिन मट्टू पोंगल और चौथा दिन कन्या पोंगल कहलाता है। दिनों के हिसाब से अलग-अलग तरीके से पूजा की जाती है।

दक्षिण भारत के लोग फसल को काटकर और उसे अपने घर लाने के बाद खुशी प्रकट करने और आने वाली फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। पोंगल पर्व में सुख समृद्धि के लिए लोग धूप, सूर्य, इन्द्रदेव और पशुओं की पूजा कर उनका आभार प्रकट करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन तमिल के लोग अपनी बुरी आदतों का त्याग करते हैं। यह त्योहार पारम्परिक रूप से ये संपन्नता को समर्पित होता है। 
 
क्या है पोंगल का धार्मिक महत्व 
 
इस पर्व के पहले दिन भगवान इंद्र देव की आराधना की जाती है, क्योंकि इंद्र देव वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए खेती के लिए अच्छी बारिश की कामना की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों से पुराने और खराब सामानों को निकालकर उन्हें जला देते हैं। दूसरे दिन सूर्य देव की आराधना की जाती है। इस दिन विशेष तरह की खीर बनाकर और उसे भगवान सूर्य को अर्पित किया जाता है। पर्व के तीसरे दिन पशुओं जैसे गाय, बैल की पूजा की जाती है। उन्हें नहला धुला कर तैयार किया जाता है। बैलों के सींगों को कलर किया जाता है। पोंगल के चौथे दिन घर को फूलों से सजाया जाता है। इस मौके पर घर की महिलाएं अपने आंगन में रंगोली बनाती हैं। ये इस पर्व का आखिरी दिन होता है लोग एक दूसरे को मिठाई बांटकर इस त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं।
 
कैसे मनाते हैं पोंगल 
 
यह त्योहार भी नव वर्ष के रूप में मनाया जाने वाला त्योहार है। कहते हैं कि किसान अपने खेतों से नए अनाज को काटकर अपने घर ले आते हैं। उन फसलों में शामिल है चावल, गन्ना, तिल। इस त्योहार में मिट्टी के बर्तन में चावल, गुड़, दूध डालकर धूप में रख दिया जाता है। मिट्टी के बर्तन को सजाने के लिए आटे से पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें अलग-अलग तरह का आकर दिया जाता है जैसे तलवार, चिड़िया हंसिया।

इन सभी पकवानों को एक माला में पिरोया जाता है और उसे उस मिट्टी के बर्तन में पहनाया जाता है। 2-3 बजे के बीच धूप इतनी तेज़ हो जाती है की उस मिट्टी के बर्तन में रखे उस खीर में उबाल आती है और चारों तरफ से पोंगल-पोंगल-पोंगल के स्वर सुनाई देने शुरू हो जाते हैं। कुछ इस अंदाज में मनाया जाता है पोंगल का त्योहार। 
 
पोंगल पर्व का इतिहास
 
पोंगल तमिलनाडु का एक प्राचीन त्योहार है। हरियाली और समृद्धि को समर्पित पोंगल त्योहार पर भगवान सूर्य देव जी की पूजा की जाती है। भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को पोंगल कहा जाता है। इसी कारण इस पर्व का नाम पोंगल पड़ा। पोंगल का इतिहास 200 से 300 ईसा पूर्व का है। संस्कृत पुराणों में भी पोंगल पर्व का उल्लेख हमें देखने को मिलता है। पोंगल पर्व से कुछ पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। जिसमें भगवान शिव की कथा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
 
क्यों मनाया जाता है पोंगल
 
पोंगल का त्योहार संपन्नता को समर्पित है। इस त्योहार में धान की फसल को एकत्र करने के बाद पोंगल त्योहार के रूप में अपनी खुशी प्रकट की जाती हैं, और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आने वाली फसलें भी अच्छी हों। पोंगल पर समृद्धि लाने के लिए वर्षा, सूर्य देव, इंद्रदेव और मवेशियों को पूजा जाता है।