ज्येष्ठ शुक्ल दशमी हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतरित हुई थीं। गंगा मां ह मारे 10 विशेष पापों को नष्ट करती है। गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के पर्व को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है। इसलिए इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। इस वर्ष 12 जून को गंगा दशहरा मनाया जाएगा।
गंगा मैया हम भारतवासियों के लिए देवलोक का महाप्रसाद हैं। मां गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। हमारे यहां मृत्यु से ठीक पूर्व गंगा जल की कुछ बूंदें मुंह में डालना मोक्ष का पर्याय माना जाता है। इसके जल में स्नान करने से जीवन के सभी संतापों से मुक्ति मिलती हैं।
सरकारी प्रयास के साथ इस पवित्र नदी को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सब की भी है। किसी भी प्रकार से इसे दूषित न करने का संकल्प लेना होगा। नदी की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए गंगाजी में स्नान करते समय साबुन का प्रयोग नहीं करें और न ही साबुन लगाकर कपड़े धोना चाहिए।
गंगा दशहरा तन के साथ-साथ मन की शुद्धि का पर्व भी है, इसलिए इस दिन गंगाजी में खड़े होकर अपनी पूर्व में की हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए और भविष्य में कोई भी बुरा कार्य नहीं करने का संकल्प लेना चाहिए।
गंगा के अवतरण की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के महाप्रतापी राजा राज्य करते थे। उन्होंने सातों समुद्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। उनकी केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियां थीं। पहली रानी के एक पुत्र असमंजस का उल्लेख मिलता है, परंतु दूसरी रानी सुमति के साठ हजार पुत्र थे।
एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा। इंद्र ने उस यज्ञ को भंग करने के लिए यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध आए। राजा ने उसे खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा।
सारा भूमंडल छान मारा, फिर भी अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को खोजते-खोजते जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो वहां उन्होंने महर्षि कपिल को तपस्या करते देखा। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। सगर के पुत्र उन्हें देखकर चोर-चोर चिल्लाने लगे।
इससे महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने नेत्र खोले, त्यों ही सब जलकर भस्म हो गए। अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब मुनि के आश्रम में पहुंचा तो महात्मा गरुड़ ने भस्म होने का सारा वृत्तांत सुनाया।
गरुड़ जी ने यह भी बताया, यदि इन सबकी मुक्ति चाहते हो तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ेगा। इस समय अश्व को ले जाकर अपने पितामह के यज्ञ को पूर्ण कराओ, उसके बाद यह कार्य करना।
अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञमंडप पर पहुंचकर सगर से सारा वृत्तांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरांत अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप जीवन पर्यंत तपस्या करके भी गंगाजी को मृत्युलोक में ला न सके।
सगर के वंश में अनेक राजा हुए, सभी ने साठ हजार पूर्वजों की भस्मी के पहाड़ को गंगा के प्रवाह के द्वारा पवित्र करने का प्रयत्न किया, किंतु वे सफल न हुए। अंत में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगाजी को इस लोक में लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की।
इस प्रकार तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गए। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वर मांगने को कहा तो भागीरथ ने 'गंगा" की मांग की। भागीरथ के गंगा मांगने पर ब्रह्माजी ने कहा, 'राजन! तुम गंगा को पृथ्वी पर तो ले जाना चाहते हो, परंतु गंगाजी के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शिव में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।"
महाराज भागीरथ ने वैसा ही किया। भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। राजा भगीरथ की गंगा को पृथ्वी पर लाने की कोशिशों के कारण इस नदी का एक नाम भगीरथी भी है।
गंगा दशहरा हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसमें स्नान, दान, व्रत तथा पूजन होता है। स्कंद पुराण में लिखा हुआ है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सरमुखी है। इसमें किसी भी नदी पर जाकर अर्घ्य (पूजादिक) एवं तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। इस दिन मथुरा में पतंगबाजी का विशेष आयोजन होता है।
गंगा स्नान का महत्व
भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार 'ॐ नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा" स्तोत्र पढ़ता है, चाहे वह दरिद्र हो, असमर्थ हो, वह गंगा की पूजा का पूर्ण फल पा लेता है।
यदि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन मंगलवार हो तथा हस्त नक्षत्र तिथि हो तो यह सब पापों को हरने वाली होती है।
वराह पुराण में लिखा है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतरित हुई थी। वह 10 बड़े पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं।