Inside story :सोनिया गांधी कांग्रेस के लिए जरूरी या मजबूरी ?
एक सुबह उठकर कांग्रेस गांधी परिवार से अलग हो जाए ऐसा मुमकिन नहीं
सोमवार का दिन कांग्रेस के इतिहास में ‘द ग्रेट पॉलिटिकल ड्रामा’ के रूप में याद रखा जाएगा। सात घंटे चली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद आखिरकार जिस तरह सोनिया गांधी को ही नए अध्यक्ष के चुनाव होने तक पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला किया गया उससे कई सवाल खड़े हो गए है।
बैठक शुरु होते ही सोनिया गांधी का अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश करना और उसके बाद राहुल गांधी का पार्टी के उन बड़े नेताओं पर सीधा हमला बोल देना,जिन्होंने नेतृत्व परिवर्तन को लेकर पार्टी अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी थी। राहुल ने पत्र लिखने की टाइमिंग पर सवाल उठाने के साथ ऐसा करने वाले नेताओं की पार्टी के प्रति वफादारी को भी कठघरे में खड़ा करते हुए उन पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप भी लगा दिया।
पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के इस हमले से हर कोई हैरान रह गया और आनन- फानन में चिट्टी लिखने वालों में शामिल रहे कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर वफादारी के सबूत गिनाने के साथ लिखा कि पिछले 30 सालों से किसी मुद्दें पर भाजपा के पक्ष कोई बयान नहीं दिया फिर भी हम भाजपा के साथ साठगांठ कर रहे हैं।
कपिल सिब्बल के इस ट्वीट ने कांग्रेस पार्टी के घर की अंदर की बात चौराहे पर ला दी। बात बिगड़ती देख पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला सामने आए और सफाई देते हुए कहा कि राहुल ने ऐसी कोई बात नहीं कही है। इसके बाद खुद कपिल सिब्बल ने अपना ट्वीट डिलीट करते राहुल से बात होने की बात कहीं और पूरे मामले के नाटकीय पटाक्षेप करने की कोशिश भी की।
कपिल सिब्बल भले ही लाख सफाई पेश करें लेकिन कानून के जानकार,राज्यसभा सांसद और 10 जनपथ के करीबी नेताओं में गिने जाने वाले सिब्बल क्या इतने अपरिपक्व नेता हैं कि उन्होंने सुनी सुनाई बात पर पार्टी के सबसे बड़े नेता के खिलाफ एक तरह से बगावती बिगुल फूंक दिया।
आखिरकार सात घंटे लंबे चले नाटकीय सियासी घटनाक्रम के बाद पार्टी ने एक बार फिर सोनिया गांधी के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया और सीडब्ल्यूसी के सभी सदस्यों ने एक राय से सोनिया गांधी को पार्टी के नए अध्यक्ष चुने जाने तक अध्यक्ष बने रहने पर राजी कर लिया।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में करारी हार के बाद अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद अंतरिम अध्यक्ष बनाई गई सोनिया गांधी का एक साल का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो गया था और अब जब पार्टी में नए अध्यक्ष को लेकर पार्टी के बड़े नेताओं ने पत्र लिखकर और राहुल के कथित बयान पर नाराजगी जताकर एक तरह से गांधी परिवार को खुली चुनौती दे दी है तब सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बना रहने कांग्रेस के लिए जरूरी और मजबूरी भी था।
सोनिया गांधी की आत्मकथा Sonia: A Biography लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि कि कांग्रेस का सौ फीसदी कार्यकर्ता चाहता हैं या तो सोनिया गांधी अध्यक्ष पद पर बनीं रहे या राहुल गांधी अध्यक्ष बनें। ऐसे में अब राहुल अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं है तब सोनिया गांधी का अध्यक्ष पद पर बने रहना जरूरी और मजबूरी दोनों ही था। कांग्रेस न तो ऐसा संगठन है और न वहां ऐसी राजनीतिक सभ्यता नहीं हैं कि वह एक सुबह सोकर उठे और गांधी परिवार से अलग हो जाने का फैसला कर लें।
सोनिया गांधी का पार्टी के अंदर एक आदर और सम्मान है वह एक सर्वमान्य चेहरा है,जिनके नेतृत्व में कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के साथ खड़ी हुई है। बैठक के बाद पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का यह बयान कि पार्टी और उसके नेतृत्व को कमजोर करने की अनुमति न तो किसी को दी जा सकती है और न दी जाएगी, पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले नेताओं की साफ शब्दों में स्पष्ट संदेश दे दिया है।
सीडब्ल्यूसी की बैठक में आगले छह महीने में पार्टी में बदलाव को लेकर नए सिरे से दृढ़ता भी दिखाई गई है। पार्टी ने अगले छह महीने में संगठनात्मक स्तर पर बड़े बदलाव के संकेत दिए है। कांग्रेस संगठन में बदलाव पर चर्चा होने के लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि असल में कांग्रेस में आज संगठनात्मक बदलाव की जरूरत है जिसकी बात कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में भी उठी है। वह कहते हैं कि अन्य पार्टियों के तरह कांग्रेस में भी अब संगठन स्तर मनोनयन कल्चर हावी है और कांग्रेस को अगर फिर से जीवित होना हो तो उसको डेमोक्रेटिक तरीके अपनाकर ब्लॉक लेवल से लेकर एआईसीसी के सर्वोच्च पद तक चुनाव कराने होंगे और पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र को बहाल करना होगा।