हमारी फौज में रेजिमेंट्स सिस्टम एक ट्रेडिशन है, जिसमें रहकर मर मिटने का जज्बा आता है, 4 साल में वो जज्बा कहां से आएगा?
सरकार की अग्निपथ योजना प्रासंगिक नहीं है और न ही इसमें पारदर्शिता नाम की चीज है। अगर इसे लाना ही था तो सबसे पहले इसकी खामियों को देखना था उसे दूर करना था। सरकार चाहती तो पहले एक मॉडल के रूप में लागू कर उसके फायदे-नुकसान देखती, इसके बाद इसके संचालन के बारे में फैसला किया जाना था। इस तरह से कई दशकों से चले आ रहे रेजिमेंट ट्रेडिशन और कल्चर को डिस्टर्ब करना ठीक नहीं है। इससे जवानों में वो जज्बा नहीं होगा, जो अलग-अलग रेजिमेंट्स के जवानों में होता है। लंबे वक्त तक सेवाएं देने के बाद फौज से रिटायर्ड हुए कर्नल आईके जैन ने वेबदुनिया से खास चर्चा में यह बात कही।
बता दें कि सरकार ने हाल ही में अग्निपथ योजना लागू करने का ऐलान किया है, जिसके बाद देशभर में बवाल है। जगह-जगह प्रदर्शन किए जा रहे हैं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि बतौर एक जवान अपने भीतर देश-सेवा और मर मिटने का जज्बा पैदा करने के लिए कई साल गुजर जाते हैं, ऐसे में चार साल के छोटे से वक्त में किसी को सेना में भर्ती करना, उसे ट्रेनिंग देना और यह अपेक्षा करना कि वो उसमें वही जज्बा और जुनून होगा, यह एक भूल है। ऐसा मुमकिन भी नहीं।
कर्नल जैन बताते हैं कि यह कोई यूज एंड थ्रो वाली चीज नहीं है और न ही फौज में काम करना किसी कॉर्पोरेट सिस्टम में काम करने जैसा काम है। उन्होंने बताया कि रेजिमेंट्स एक ट्रेडिशन है, एक कल्चर है। इसमें रचने-बसने के बाद ही एक फौजी तैयार होता है। भारतीय सेना का पूरी दुनिया में खौफ है, आज तक हम कोई लड़ाई हारे नहीं है।
मद्रास रेजिमेंट हमारी सबसे पुरानी रेजिमेंट है। इसी तरह से गोरखा, सिख और तमाम रेजिमेंट के जवान देश सेवा और देश के लिए मर मिटने के जज्बे के साथ काम करते हैं। ऐसे में महज 4 साल में सैनिकों में वो जज्बा कहां से आएगा। चार साल के समय में भी जवान ट्रेनिंग पर रहेगा, अवकाश पर जाएगा और कुछ दिनों में रिटायर्ड हो जाएगा। रिटायरमेंट के बाद 11-12 लाख की उसकी सेविंग इतनी भी ज्यादा नहीं है, जिसमें उसका भविष्य सुरक्षित हो सके।
कर्नल जैन ने बताया कि जहां तक नौकरियों में प्राथमिकता की बात है तो इसकी क्या गारंटी है, क्या सरकार के पास इसे लेकर कोई पारदर्शिता है। दूसरा यह समय और खर्च के लिहाज से भी प्रासंगिक नहीं है। चार साल के लिए किसी को भर्ती करना और उसकी ट्रेनिंग पर खर्च करने से बेहतर है हम पहले से ही सेना की अलग-अलग विंग में काम कर रहे प्रशिक्षित जवानों को नियुक्त करें, उनकी सेवाएं लें। हमारे पास एक से एक जांबाज सैनिक और फौजी हैं।
कर्नल आईके जैन ने बताया कि मुझे लगता है कि यह सरकार का सिर्फ पेंशन का बोझ कम करने का एक तरीका है। लेकिन सैनिकों की अग्निपथ योजना के तहत भर्ती करना कोई कारगर विचार नहीं है। सरकार को जवानों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। 21-22 साल में रिटायर्ड होने के बाद वो क्या करेगा। उसके भविष्य का क्या होगा। कहीं फौज में ट्रेंड जवान गलत रास्ते पर भी जा सकता है। ऐसे कई संशय हैं, जो सरकार की अग्निपथ योजना पर सवाल खड़े करते हैं।